प्रश्न की मुख्य माँग
- परमाणु परीक्षण पर भारत के निरंतर प्रतिबंध से स्वायत्तता कैसे मजबूत होती है।
- परमाणु परीक्षण पर भारत के निरंतर स्थगन से स्वायत्तता कैसे बाधित होती है।
- विश्वसनीय निवारण और जिम्मेदार परमाणु आचरण के बीच संतुलन बनाने के तरीके।
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उत्तर
नवीन वैश्विक अनिश्चितता के दौर में, जब अमेरिका, रूस और चीन पुनः परमाणु परीक्षणों पर विचार कर रहे हैं, भारत की वर्ष 1998 की स्वैच्छिक परमाणु परीक्षण स्थगन नीति उसकी रणनीतिक संयम और वैश्विक विश्वसनीयता का प्रतीक है। किंतु, बदलते प्रौद्योगिकीय परिदृश्य और क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों के बीच यह पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है कि क्या यह निरंतर संयम भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को सुदृढ़ करता है या सीमित करता है।
कैसे निरंतर परमाणु परीक्षण स्थगन, भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को सुदृढ़ करता है
- वैश्विक विश्वसनीयता और वैधता को सुदृढ़ करता है: भारत के स्वैच्छिक संयम ने उसे एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया है, जिससे वर्ष 2008 का भारत–अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता और NSG छूट जैसे समझौते संभव हुए।
- उदाहरण: भारत ने NPT पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद वैश्विक परमाणु तकनीक और ईंधन बाजारों तक पहुँच प्राप्त की।
- राजनयिक प्रभाव और सॉफ्ट पॉवर को बढ़ाता है: संयम ने भारत को वैश्विक निरस्त्रीकरण के पक्षधर के रूप में विश्वसनीयता दी है और पश्चिमी व विकासशील देशों दोनों के साथ विश्वास कायम रखा है।
- उदाहरण: “नो फर्स्ट यूज” और “क्रेडिबल मिनिमम डेटरेंस” की नीति ने भारत की नैतिक शक्ति को बढ़ाया है।
- आर्थिक एवं तकनीकी पहुँच बनाए रखता है: संयम बनाए रखने से भारत पर प्रतिबंधों का खतरा नहीं रहता, जिससे रक्षा और उच्च-प्रौद्योगिकी सहयोग कार्यक्रम — जैसे “आत्मनिर्भर भारत” — बाधित नहीं होते।
- स्थिर लोकतंत्र की छवि को सुदृढ़ करता है: जिम्मेदार संयम शासन की जवाबदेही और स्थिरता को दर्शाता है, जिससे वैश्विक मंचों पर भारत की छवि सुदृढ़ होती है।
- क्षेत्रीय हथियार प्रतिस्पर्द्धा को रोकता है: संयम से दक्षिण एशिया में हथियारों की दौड़ कम होती है, जिससे पाकिस्तान और चीन के साथ रणनीतिक स्थिरता बनी रहती है।
कैसे निरंतर परीक्षण स्थगन भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को सीमित करता है
- निवारण की विश्वसनीयता समय के साथ घटती है: भारत का परमाणु शस्त्रागार वर्ष 1998 में सत्यापित डिजाइनों पर आधारित है।
- उदाहरण: अग्नि-V और आने वाले MIRV सिस्टम्स के लिए परीक्षण आधारित आँकड़ों की आवश्यकता है ताकि रणनीतिक भरोसा बना रहे।
- वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति सीमित होती है: परीक्षण के अभाव में वैज्ञानिक केवल सिमुलेशन और उप-आलोचनात्मक प्रयोगों पर निर्भर रहते हैं, जो नई पीढ़ी के वारहेड को पूर्ण रूप से सत्यापित नहीं कर सकते।
- रणनीतिक लचीलापन: जैसे-जैसे प्रमुख शक्तियाँ पुनः परीक्षणों पर विचार कर रही हैं, भारत का एकतरफा संयम, भविष्य के हथियार नियंत्रण वार्तालापों में उसे कमजोर स्थिति में ला सकता है।
- उदाहरण: रूस का हथियार नियंत्रण संधियों से हटना और चीन के Lop Nur केंद्र का विस्तार बदलते वैश्विक संकेत हैं।
- बाहरी सहयोग पर निर्भरता बढ़ती है: असैन्य परमाणु साझेदारी के तहत विदेशी तकनीक पर निर्भरता स्वदेशी हथियार नवाचार की क्षमता को सीमित करती है।
- रणनीतिक संकेत कमजोर पड़ते हैं: परीक्षण की अनुपस्थिति में भारत की निवारक क्षमता को स्थिर माना जा सकता है, जिससे प्रतिद्वंद्वियों के बीच मनोवैज्ञानिक भरोसा कम हो सकता है।
विश्वसनीय निवारण और जिम्मेदार परमाणु आचरण में संतुलन
- उन्नत सिमुलेशन और उप-आलोचनात्मक परीक्षणों में निवेश: DRDO और BARC के माध्यम से स्वदेशी अनुसंधान को सशक्त किया जाए ताकि बिना परीक्षण के भी विश्वसनीयता बनी रहे।
- तत्परता बनाए रखना: परीक्षण अवसंरचना को वैज्ञानिक रूप से अद्यतन रखा जाए, ताकि रणनीतिक आवश्यकता पड़ने पर परीक्षण शीघ्र आरंभ किया जा सके।
- भारत-नेतृत्व वाले अंतरराष्ट्रीय ढाँचे को बढ़ावा देना: एक वैश्विक “जिम्मेदार परमाणु संयम व्यवस्था” की वकालत करना, जो सत्यापन और निवारण स्थिरता पर जोर देना।
- प्रौद्योगिकीय आत्मनिर्भरता और रणनीतिक विवेक का समन्वय: “मेक इन इंडिया” के तहत परमाणु आधुनिकीकरण को “नो फर्स्ट यूज” और “न्यूनतम निवारण” जैसे नैतिक सिद्धांतों के साथ संरेखित करना।
निष्कर्ष
भारत का परमाणु परीक्षण स्थगन उसकी परिपक्वता का प्रतीक है, कमजोरी का नहीं। परंतु वास्तविक रणनीतिक स्वायत्तता के लिए लचीलापन और संतुलन आवश्यक है संयम को बनाए रखते हुए तकनीकी विश्वसनीयता और तत्परता को सशक्त करना। इसी मार्ग से भारत अपनी नैतिक प्रतिष्ठा और रणनीतिक हितों दोनों की रक्षा कर सकेगा।
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