प्रश्न की मुख्य मांग
- केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के आकलन से पता चला है, कि भूजल में अत्यधिक रासायनिक संदूषकों से उत्पन्न चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
- संदूषण से निपटने के लिए प्रभावी उपचारात्मक रणनीतियों का प्रस्ताव कीजिए।
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उत्तर
भूजल में अत्यधिक रासायनिक संदूषक, जैसा कि केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) ने उजागर किया है, भारत की जल सुरक्षा एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बढ़ती चिंता है। राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NWQMP) की रिपोर्ट है कि भारत के अधिकांश भूजल स्रोत आर्सेनिक, फ्लोराइड तथा नाइट्रेट जैसे रसायनों से दूषित हैं, जिससे स्वास्थ्य जोखिम एवं पर्यावरणीय गिरावट हो रही है।
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भूजल में अत्यधिक रासायनिक संदूषकों से उत्पन्न चुनौतियाँ
- स्वास्थ्य जोखिम: अत्यधिक नाइट्रेट स्तर विशेष रूप से शिशुओं में मेथेमोग्लोबिनेमिया एवं ब्लू बेबी सिंड्रोम का कारण बन सकता है, जिससे उनकी ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता प्रभावित होती है तथा गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएँ पैदा होती हैं।
- उदाहरण के लिए: राजस्थान, कर्नाटक एवं तमिलनाडु में नाइट्रेट संदूषण में वृद्धि के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में ब्लू बेबी सिंड्रोम के मामले बढ़ रहे हैं।
- पारिस्थितिक प्रभाव: उच्च नाइट्रेट सांद्रता झीलों एवं तालाबों में शैवाल के खिलने में योगदान करती है, ऑक्सीजन की कमी करके जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करती है तथा जलीय जीवन को नुकसान पहुंचाती है।
- उदाहरण के लिए: कर्नाटक एवं तमिलनाडु में अत्यधिक नाइट्रेट के कारण जल निकायों में यूट्रोफिकेशन हो गया है, जिससे मछली की आबादी तथा जैव विविधता गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है।
- भूवैज्ञानिक कारक: राजस्थान एवं मध्य प्रदेश जैसे कुछ क्षेत्रों में प्राकृतिक नाइट्रेट का स्तर उच्च है, जिससे प्रदूषण अधिक लगातार बना रहता है तथा इसका प्रबंधन करना मुश्किल हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: राजस्थान का भूजल लंबे समय से भूवैज्ञानिक नाइट्रेट संदूषण से प्रभावित है, शमन प्रयासों के बावजूद वर्ष 2017 के बाद से इसके स्तर में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं हुआ है।
- कृषि पद्धतियाँ: उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भरता एवं गहन कृषि पद्धतियाँ, विशेष रूप से मध्य एवं दक्षिणी भारत में, भूजल में नाइट्रेट संदूषण में प्रमुख योगदानकर्ता हैं।
- जागरूकता एवं कार्रवाई का अभाव: नियमित आकलन के बावजूद, भूजल प्रदूषण के प्रभावों के संबंध में नीति कार्यान्वयन एवं सार्वजनिक जागरूकता में अंतर है।
संदूषण से निपटने के लिए प्रभावी उपचारात्मक रणनीतियाँ
- सतत कृषि को बढ़ावा देना: जैविक खेती एवं नियंत्रित उर्वरक उपयोग को प्रोत्साहित करने से भूजल में नाइट्रेट के रिसाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: मध्य प्रदेश में, जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाने से रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में कमी आई है एवं परिणामस्वरूप नाइट्रेट संदूषण कम हुआ है।
- जल गुणवत्ता निगरानी: उन्नत निगरानी प्रणाली स्थापित करने एवं भूजल के नियमित परीक्षण से संदूषण हॉटस्पॉट की पहचान करने तथा त्वरित कार्रवाई करने में मदद मिल सकती है।
- उदाहरण के लिए: जल की गुणवत्ता की निगरानी के लिए उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की तमिलनाडु की पहल ने वास्तविक समय डेटा प्रदान किया है, जिससे जल प्रबंधन के लिए निर्णय लेने में सुधार हुआ है।
- जन जागरूकता अभियान: स्थानीय सरकारों के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान समुदायों को स्वास्थ्य जोखिमों को समझने एवं सुरक्षित जल उपयोग प्रथाओं को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: राजस्थान में, जल शुद्धिकरण तकनीकों पर समुदाय-संचालित शिक्षा ने ग्रामीण क्षेत्रों में फ्लोराइड संदूषण के प्रसार को कम करने में मदद की है।
- उन्नत विनियमन एवं प्रवर्तन: रासायनिक उर्वरक के उपयोग को नियंत्रित करने एवं वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने के लिए नियामक उपायों को मजबूत करने से अत्यधिक भूजल दोहन तथा प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: वर्षा जल संचयन प्रथाओं के साथ रासायनिक उर्वरक के उपयोग को सीमित करने के कर्नाटक के विनियमन से नाइट्रेट के स्तर में उल्लेखनीय कमी देखी गई है।
- हरित प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना: दूषित भूजल को साफ करने के लिए जैव-उपचार एवं अन्य पर्यावरण-अनुकूल प्रौद्योगिकियों का समर्थन करना दीर्घकालिक समाधान प्रदान कर सकता है।
- उदाहरण के लिए: गुजरात ने रासायनिक प्रदूषण को कम करने एवं भूजल की गुणवत्ता को बहाल करने के लिए माइक्रोबियल तकनीक का उपयोग करके प्रभावित क्षेत्रों में बायोरेमेडिएशन लागू किया है।
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भूजल में रासायनिक संदूषण की चुनौतियों से निपटने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सख्त नियामक प्रवर्तन, बेहतर जल गुणवत्ता निगरानी एवं NALCO के जल शुद्धिकरण कार्यक्रमों तथा वर्षा जल संचयन पहल जैसी उपचारात्मक योजनाओं का कार्यान्वयन शामिल है। इन रणनीतियों को मेक इन इंडिया एवं अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT) के साथ एकीकृत करके, भारत भविष्य की पीढ़ियों के लिए अपने भूजल संसाधनों को सुरक्षित कर सकता है।
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