प्रश्न की मुख्य माँग
- मौजूदा पश्चिमी नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था के समक्ष चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
- बताएँ कि भारत और ईरान, दक्षिण-दक्षिण सहयोग के माध्यम से, एक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था को आकार देने में कैसे योगदान दे सकते हैं।
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उत्तर
पश्चिमी नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था वर्तमान में वैधता संबंधी संकट का सामना कर रही है, जिसका प्रतिबिंब व्यापार युद्धों और अंतरराष्ट्रीय विधि की उपेक्षा में दिखाई देता है। वर्ष 2025 तक, 60 से अधिक ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों ने UNGA में एकतरफा प्रतिबंधों एवं मीडिया संबंधी बदलावों पर चिंता व्यक्त की है। भारत और ईरान, अपनी साझा उपनिवेश-विरोधी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ, दक्षिण-दक्षिण सहयोग के माध्यम से बहुध्रुवीय विश्व की स्थापना की दिशा में अग्रसर हैं।
पश्चिमी नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था के समक्ष चुनौतियाँ
- अंतरराष्ट्रीय कानून और बहुपक्षवाद का क्षरण: एकतरफा कार्रवाई और चयनात्मक प्रवर्तन संस्थानों में वैश्विक विश्वास को कमजोर करते हैं।
- उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में प्रमुख बहुपक्षीय समझौतों से पीछे हटना और बार-बार वीटो का प्रयोग अमेरिका द्वारा अपनाया गया रुख है, जो संघर्ष-समाधान तंत्र को कमजोर कर रहा है।
- व्यापार और प्रतिबंधों का शस्त्र के रूप में उपयोग: विकासशील राष्ट्रों पर राजनीतिक नियंत्रण के लिए आर्थिक प्रतिबंधों का तेजी से उपयोग किया जा रहा है।
- उदाहरण: वर्ष 2012-22 के बीच एकतरफा प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था को 200 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ है।
- मीडिया और संज्ञानात्मक परिवर्तन: मीडिया पर पश्चिमी वर्चस्व पब्लिक नैरेटिव को विकृत करता है और ग्लोबल साउथ के दृष्टिकोण को हाशिए पर रखता है।
- जलवायु अन्याय और पर्यावरणीय शोषण: विकासशील राष्ट्रों को उचित वित्तपोषण के बिना जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान संबंधी लागत का असमान रूप से वहन करना पड़ता है।
- उदाहरण: ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों के लिए COP-28 में की गई लॉस एंड डैमेज फंड (Loss and Damage Fund) की प्रतिज्ञाएँ अनुमानित आवश्यकताओं के 30% से कम हैं।
- तकनीकी और वित्तीय एकाधिकार: महत्त्वपूर्ण तकनीकों एवं वैश्विक वित्त पर नियंत्रण स्वतंत्र विकास को प्रतिबंधित करता है।
- उदाहरण: AI फिनटेक पेटेंट में अमेरिका की 45% वैश्विक हिस्सेदारी है, जिसके बाद चीन 38% के साथ है।
- भू-राजनीतिक सैन्यीकरण और प्रॉक्सी संघर्ष: पश्चिमी हस्तक्षेप अक्सर पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया में अस्थिरता को बढ़ावा देता है।
- उदाहरण: सीरिया, इराक और यमन में सत्ता परिवर्तन के लिए समर्थन ने विस्थापन संकट को और तेज कर दिया है।
दक्षिण-दक्षिण सहयोग के माध्यम से भारत और ईरान कैसे योगदान दे सकते हैं?
- बहुपक्षीय मंचों (BRICS, NAM, SCO) को मजबूत करना: व्यापार और वित्त में समावेशी निर्णय लेने और डी-डॉलराइजेशन को बढ़ावा देना।
- उदाहरण: वर्ष 2024 में BRICS+ का विस्तार (ईरान सहित) वैश्विक तेल उत्पादन का 45% और वैश्विक व्यापार का लगभग 40% है।
- अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) को आगे बढ़ाना: यूरेशिया और अफ्रीका में व्यापार और ऊर्जा के प्रवाह के लिए कनेक्टिविटी बढ़ाना।
- उदाहरण: INSTC का उद्देश्य भारत और रूस के बीच माल ढुलाई की लागत को लगभग 30% तक कम करना है।
- शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा और प्रौद्योगिकी साझाकरण को बढ़ावा देना: ग्लोबल साउथ के लिए ऊर्जा सुरक्षा और तकनीकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
- सांस्कृतिक और सभ्यतागत कूटनीति: सांस्कृतिक वर्चस्व का मुकाबला करने और संवाद को बढ़ावा देने के लिए साझा विरासत का लाभ उठाना।
- फिलिस्तीन और क्षेत्रीय स्थिरता पर समन्वित रुख: संघर्ष क्षेत्रों में संप्रभु समानता और क्षेत्रीय अखंडता की वकालत करना।
- उदाहरण: भारत ने गाजा में तत्काल युद्धविराम के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का समर्थन किया; ईरान क्षेत्रीय मध्यस्थता प्रयासों का नेतृत्व करता है।
- संयुक्त रक्षा और सुरक्षा सहयोग: बाहरी हस्तक्षेप का मुकाबला करना और स्वदेशी क्षेत्रीय सुरक्षा वास्तुकला का समर्थन करना।
- दक्षिण-दक्षिण विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग: पश्चिमी तकनीकी निर्भरता को कम करने के लिए स्वदेशी नवाचार प्रणालियों का विकास करना।
- उदाहरण: क्षेत्र में आपदाओं से निपटने की क्षमता के लिए उपग्रह डेटा साझाकरण पर ISRO-ईरान सहयोग (वर्ष 2025)।
निष्कर्ष
ग्लोबल साउथ की समानता और संप्रभुता की आकांक्षा के बीच पश्चिमी नेतृत्व वाली व्यवस्था धीरे-धीरे कमजोर हो रही है। ऐसे परिदृश्य में, भारत और ईरान BRICS, INSTC तथा दक्षिण-दक्षिण सहयोग के माध्यम से एक निष्पक्ष और संतुलित व्यवस्था को आकार दे सकते हैं। न्याय और गैर-वर्चस्व के उनके साझा मूल्य एक समावेशी वैश्विक व्यवस्था के लिए स्पष्ट रोडमैप प्रस्तुत करते हैं।
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