Q. व्याख्या कीजिए कि यूक्रेन पर प्रस्तावित अमेरिका-रूस शांति पहल अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में शक्ति प्रतिद्वंद्विता से व्यावहारिक जुड़ाव की ओर परिवर्तन को कैसे दर्शाती है। भारत की सामरिक स्वायत्तता और बहु-संरेखण नीति के लिए इस तरह के विकास के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • शक्ति प्रतिद्वंद्विता से व्यवाहारिक सहभागिता की ओर परिवर्तन
  • भारत की सामरिक स्वायत्तता के लिए निहितार्थ

उत्तर

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का 28-बिंदु यूक्रेन शांति प्रस्ताव दशकों से चली आ रही अमेरिका-रूस प्रतिद्वंद्विता को समाप्त करने का प्रयास करता है। इसमें रूस की क्रीमिया और NATO संबंधी माँगों को मान्यता देते हुए मास्को की आर्थिक और रणनीतिक भूमिका को बहाल करने का लक्ष्य रखा गया है। यह पहल प्रतिद्वंद्विता को एक अवसर के रूप में प्रस्तुत करती है, जो व्यावहारिक जुड़ाव और वैश्विक व्यवस्था के पुनःसंरचनाकरण की संभावना खोलती है।

शक्ति प्रतिद्वंद्विता से व्यावहारिक जुड़ाव की ओर परिवर्तन

  1. दीर्घकालीन शत्रुता से दूरी: यह संकेत देता है कि अमेरिका-दो दशक लंबी रूस संबंधी प्रतिद्वंद्विता को पीछे छोड़ने के लिए तैयार है।
    • उदाहरण: ट्रंप इस मान्यता को चुनौती देते हैं कि यह प्रतिद्वंद्विता “स्थायी” है।
  2. आर्थिक पुनःसंयोजन: प्रतिबंध और अलगाव के बजाय सहयोग पर ध्यान केंद्रित।
    • उदाहरण: रूस को वैश्विक अर्थव्यवस्था में पुनः शामिल करने का प्रस्ताव।
  3. संस्थागत समावेशन: पश्चिमी ब्लॉकों में बहिष्कार से जुड़ाव की ओर बदलाव।
    • उदाहरण: रूस को G7 में पुनः शामिल करने पर विचार।
  4. संधि आधारित सुरक्षा समाधान: यूरोप को स्थिर करने के लिए प्रतिद्वंद्वी की माँगों को स्वीकार करना।
    • उदाहरण: क्रीमिया, पूर्वी यूक्रेन और NATO पर रूस के रुख को स्वीकार करना।
  5. रणनीतिक साझेदारी दृष्टिकोण: सैन्य प्रतिस्पर्द्धा से व्यापक सहयोग की ओर।
    • उदाहरण: अमेरिका-रूस आर्थिक साझेदारी का प्रस्ताव।

भारत की रणनीतिक स्वायत्तता पर प्रभाव

  1. संतुलित महाशक्ति संबंध: अमेरिका-रूस तनाव में कमी से भारत दोनों के साथ संबंध मजबूत कर सकता है। 
    • उदाहरण: रक्षा या यूक्रेन युद्ध में पक्ष चुनने की आवश्यकता नहीं।
  2. बहुआयामी संरेखण में लचीलापन: साझेदारियों को एक साथ गहरा करने की संभावना।
    • उदाहरण: भारत के ऊर्जा संबंध रूस के साथ और तकनीकी सहयोग अमेरिका के साथ।
  3. यूरेशियाई भू-राजनीति में स्थिरता: तनाव में कमी से भारत को प्रभावित करने वाले वैश्विक सुरक्षा जोखिम घटते हैं।
    • उदाहरण: NATO-रूस प्रतिद्वंद्विता में कमी से भारत के हित सुरक्षित रहते हैं।
  4. आर्थिक और रक्षा सहयोग सुगम: प्रतिबंधों के दबाव में कमी से रूस से रक्षा उपकरणों की खरीद में वरीयता।
    • उदाहरण: भारत के सैन्य प्लेटफॉर्म के लिए निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित।
  5. कूटनीतिक लाभ का संवर्द्धन: भारत को मध्यस्थता करने और बहुपक्षीय परिणामों को आकार देने का अधिक अवसर।
    • उदाहरण: अमेरिका-रूस संबंध सुधारने पर वैश्विक मंचों में भारत की भूमिका मजबूत।

निष्कर्ष

जैसे-जैसे अमेरिका-रूस संबंधों में नरमी की प्रक्रिया तेज होती है, भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का लाभ उठाकर दोनों महाशक्तियों के साथ संबंध गहरे करने चाहिए और बहुआयामी संरेखण नीति बनाए रखनी चाहिए। भारत की कूटनीति का ध्यान संबंधों का संतुलन, रक्षा एवं आपसी लाभ पर आधारित आर्थिक सहयोग का विस्तार तथा संवाद एवं स्थिरता पर आधारित नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था को प्रोत्साहित करने पर होना चाहिए।

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