प्रश्न की मुख्य मांग:
- भारत में आकाशीय बिजली गिरने के कारणों की व्याख्या करें।
- भारत में आकाशीय बिजली गिरने के प्रभावों पर प्रकाश डालिए।
- खतरे से निपटने के लिए उपलब्ध प्रबंधन तकनीकों पर चर्चा करें।
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उत्तर:
आकाशीय बिजली वायुमंडल में आकाशीय बिजली की एक विशाल चिंगारी है , जो सामान्यतः गरज के साथ उत्पन्न होती है। भारत में , आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएँ पूर्वी एवं मध्य क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रचलित हैं , जहां ओडिशा में सबसे अधिक मौतें दर्ज की गई हैं। वायुमंडलीय अस्थिरता एवं मानसून के मौसम एवं जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएँ एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक खतरा हैं ।
भारत में आकाशीय बिजली गिरने के कारण:
- गरजते बादलों का निर्माण : तूफान के दौरान , आसमान में बादलों का निर्माण होता जहाँ जल की छोटी-छोटी बूँदें एवं बर्फ के कण आपस में टकराते हैं , जिससे आकाशीय बिजली के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं ।
उदाहरण के लिए: पूर्वी एवं मध्य क्षेत्रों में , तूफानों की अधिक आवृत्ति गरजते बादलों का निर्माण करते हैं जिससे विशेष रूप से मानसून के दौरान कई बार आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएँ होती हैं ।
- विद्युत आवेश असंतुलन: गरजते बादलों के भीतर जल की बूंदों एवं बर्फ के कणों के टकराने से विद्युत आवेशों में असंतुलन उत्पन्न होता है , जिससे बादल के शीर्ष पर सकारात्मक आवेश एवं निचले हिस्से पर नकारात्मक आवेश संग्रहित होते हैं ।
उदाहरण के लिए: वार्षिक आकाशीय बिजली रिपोर्ट 2023-2024 के अनुसार, यह आवेश पृथक्करण प्रक्रिया पूर्वी एवं मध्य भारत में सामान्य है ,आकाशीय बिजली गिरने की सबसे ज़्यादा घटनाएँ दर्ज की गई हैं ।
- मजबूत विद्युत क्षेत्र: बादलों के अंदर आवेश के पृथक्करण से बादलों के शीर्ष एवं निचले हिस्से के मध्य एक मजबूत विद्युत क्षेत्र का निर्माण होता है। जब यह क्षेत्र पर्याप्त रूप से मजबूत हो जाता है, तो यह वायु के प्रतिरोध को दूर कर सकता है, जिससे आकाशीय बिजली गिरने की संभावना बढ़ जाती है ।
उदाहरण के लिए: ओडिशा की गर्म, शुष्क जलवायु में , प्रायः मजबूत विद्युत क्षेत्र विकसित होते हैं , जिससे राज्य में आकाशीय बिजली गिरने की उच्च घटनाएं होती हैं।
- आकाशीय बिजली के लिए पथ : जब आकाशीय बिजली का क्षेत्र काफी मजबूत होता है, तो यह वायु के माध्यम से आकाशीय बिजली के लिए एक प्रवाहकीय पथ का निर्माण करता है, जिसके परिणामस्वरूप आकाशीय बिजली जमीन पर गिर सकती है।
उदाहरण के लिए: ओडिशा में 2 सितंबर, 2023 को केवल दो घंटों में 61,000 आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं दर्ज की गईं , जो तीव्र तूफान के दौरान आकाशीय बिजली के लिए प्रवाहकीय पथों के निरंतर निर्माण को दर्शाता है ।
- जलवायु परिस्थितियाँ: उच्च तापमान एवं आर्द्रता जैसी विशिष्ट जलवायु परिस्थितियाँ , गरज के साथ तूफान आने एवं उसके बाद आकाशीय बिजली गिरने की संभावना को बढ़ाती हैं ।
उदाहरण के लिए: ओडिशा की उष्णकटिबंधीय जलवायु , जो उच्च तापमान एवं आर्द्रता की विशेषता रखती है , गरज के साथ तूफान और आकाशीय बिजली गिरने के लिए आदर्श परिस्थितियाँ प्रदान करती है , जिसके कारण प्रत्येक वर्ष आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली मौतों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
भारत में आकाशीय बिजली गिरने के प्रभाव:
- उच्च मृत्यु दर: भारत में प्रत्येक आकाशीय बिजली गिरने से अधिक लोगों की मृत्यु होती है , कुछ राज्यों में यह संख्या बहुत अधिक है।
उदाहरण के लिए: ओडिशा में पिछले 11 वर्षों में आकाशीय बिजली गिरने से कुल 3,790 लोगों की मृत्यु हुई है । पिछले तीन वित्तीय वर्षों में ही आकाशीय बिजली गिरने से 791 लोगों की मृत्यु हुई है।
- राज्य-विशिष्ट आपदाएँ: कुछ राज्यों ने आकाशीय बिजली को एक महत्वपूर्ण मुद्दा मानते हुए उन्हें राज्य-विशिष्ट आपदा के रूप में नामित किया है, तथा प्रभावित परिवारों को वित्तीय मुआवजा प्रदान किया है।
उदाहरण के लिए: ओडिशा ने 2015 में आकाशीय बिजली गिरने को राज्य-विशिष्ट आपदा के रूप में नामित किया तथा आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली प्रत्येक मृत्यु के लिए 4 लाख रुपये की अनुग्रह राशि प्रदान की है ।
- आर्थिक प्रभाव: आकाशीय बिजली से सम्बंधित आर्थिक बोझ में संपत्ति की क्षति, स्वास्थ्य सेवा एवं प्रभावित परिवारों को वित्तीय क्षतिपूर्ति देने से सम्बन्धित लागतें शामिल हैं । उदाहरण के लिए : ओडिशा में
विशेष राहत आयुक्त के कार्यालय ने आकाशीय बिजली गिरने के प्रभाव को कम करने के लिए 19 लाख ताड़ के वृक्ष के रोपण लिए 7 करोड़ रुपये मंजूर किए , जो इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए राज्य की पर्याप्त वित्तीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि: आकाशीय बिजली की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है, जिससे मानव जीवन एवं संपत्ति दोनों के लिए खतरा बढ़ गया है ।
- पर्यावरण और संरचनात्मक क्षति: आकाशीय बिजली से महत्वपूर्ण पर्यावरणीय क्षति हो सकती है,जिससे वनों में आग एवं आधारभूत संरचना जैसे इमारतों की क्षति की घटनाएं होती है ।
खतरों का सामना करने के लिए प्रबंधन तकनीकें:
- जोखिम मूल्यांकन एवं विश्लेषण: गुणात्मक एवं मात्रात्मक तरीकों के माध्यम से संभावित खतरों की पहचान करना एवं उनका मूल्यांकन करना ताकि खतरे की संभावना एवं प्रभाव का अनुमान लगाया जा सके ।
उदाहरण के लिए: संभावित क्षति का पूर्वानुमान करने के लिए संवेदनशील क्षेत्रों में भेद्यता का मूल्यांकन करना ।
- खतरों को कम करने की योजना : जोखिमों को कम करने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों को विकसित एवं कार्यान्वित करना, जिसमें संरचनात्मक तथा गैर-संरचनात्मक उपाय मुख्य हैं।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ: आसन्न खतरों का पता लगाने तथा उनके संबंध में चेतावनी देने के लिए तकनीकी समाधानों का उपयोग करना तथा , समय पर निकासी एवं तैयारी सुनिश्चित करना ।
- सामुदायिक शिक्षा एवं तत्परता: समुदायों को शिक्षित करने के लिए जागरूकता तथा अभ्यास कार्यक्रम आयोजित करना ,साथ ही जोखिम प्रबंधन योजनाओं में स्थानीय भागीदारी को प्रोत्साहित करना ।
उदाहरण के लिए: स्कूलों एवं कार्यस्थलों में अग्नि सुरक्षा अभ्यास आयोजित करना ।
- सतत भूमि उपयोग नियोजन: जोखिम को कम करने के लिए शहरी नियोजन में खतरा प्रबंधन को एकीकृत करने के साथ , रणनीतिक भूमि उपयोग के माध्यम से जोखिम को कम करना।
भविष्य में, उन्नत तकनीकें एवं डेटा-संचालित रणनीतियाँ भारत में आकाशीय बिजली के खतरे के प्रबंधन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाएँगी । सटीक पूर्वानुमान के लिए एआई को एकीकृत करना, सामुदायिक जागरूकता बढ़ाना तथा ओडिशा में ताड़ के वृक्षों के रोपण की पहल जैसे अभिनव समाधानों को लागू करना, मृत्यु एवं क्षति को में कमी करेगा साथ ही सक्रिय एवं सतत दृष्टिकोण बढ़ती जलवायु चुनौतियों के बीच सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करेंगे ।
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