उत्तर:
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना
- सांस्कृतिक सापेक्षवाद और सार्वभौमिकता को परिभाषित कीजिये।
- मुख्य विषयवस्तु:
- सांस्कृतिक सापेक्षवाद का नैतिक अर्थ बताइए और नैतिक निर्णय लेने पर इसके होने वाले प्रभावों को समझाएं।
- संबंधित समस्याओ का वर्णन कीजिये।
- आगे की राह लिखिए।
- निष्कर्ष: एक सकारात्मक अवतरण से उत्तर की समाप्ति कीजिये।
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प्रस्तावना:
सांस्कृतिक सापेक्षवाद या सांस्कृतिक अनुपालन से आशय है कि प्रत्येक संस्कृति के नैतिक मूल्य और निर्णय उन संस्कृतियों के स्वयं के मानदंडो के अनुसार निर्धारित होते हैं। चूँकि अलग-अलग जगह की संस्कृति अलग-अलग होती है। इसका अर्थ है कि एक स्थान पर सही माने जाने वाले मूल्य और निर्णय कहीं दूसरी संस्कृति में गलत भी हो सकते हैं। जबकि सार्वभौमिकता नैतिक सिद्धांतों के सब जगह एक जैसे लागू होने अर्थात उनके सार्वभौम होने में विश्वास करती है, इस प्रकार सार्वभौमिकता मानती है कि कुछ मूल नैतिक सिद्धांत हैं जो सभी व्यक्तियों पर लागू होंते है चाहे उनमे जो भी सांस्कृतिक या समाजिक भिन्नताए हों।
मुख्य विषयवस्तु:
सांस्कृतिक सापेक्षवाद का नैतिक निहितार्थ एवं नैतिक निर्णय लेने पर इसका प्रभाव:
- स्वायत्तता का सम्मान: सांस्कृतिक अनुपालन/ सापेक्षवाद व्यक्तियों के अपने नैतिक कार्यक्षेत्र को स्वयं परिभाषित करने वाले अधिकारो का सम्मान करता है। अर्थात वे अपने नैतिक नियम बनाने हेतु स्वतंत्र है।
- उदाहरण: किसी समुदाय के पारंपरिक उपचार पद्धतियों का सम्मान करना, उनके चयन को समझना और मान्यता देना।
- सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: सांस्कृतिक सापेक्षवाद सांस्कृतिक परंपराओं और रीति-रिवाजों की सुरक्षा को महत्व देता है। उदाहरण: लुप्तप्राय देशी भाषाओं की रक्षा करना।
- अंतर-सांस्कृतिक समझ में बढोतरी: सांस्कृतिक सापेक्षवाद एक दूसरे की संस्कृतियो के प्रति सहानुभूति और अंतर-सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देता है।
- उदाहरण: सांस्कृतिक विनिमय कार्यक्रमों में संलग्न होना।
- सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का विरोध: सांस्कृतिक सापेक्षवाद मुख्य सांस्कृतिक मूल्यों को थोपने का विरोध करता है। अर्थात हमें सभी सांस्कृतिक मूल्यों को समझना और समर्थन करना चाहिए, न कि केवल कुछ ही को।
- उदाहरण: मीडिया प्रतिनिधित्व में विविध सांस्कृतिक आख्यानों की वकालत करना। इसका मतलब है कि हमें विभिन्न सांस्कृतिक कथाएं, किस्से और विचारों को मीडिया में देखना चाहिए ताकि किसी एक सांस्कृतिक का ही नहीं, बल्कि सभी का प्रतिनिधित्व हो।
प्रमुख मुद्दे:
- नैतिक सापेक्षवाद: सांस्कृतिक सापेक्षवाद सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों के अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न करता है जिससे नैतिकता पर व्यक्तिपरक विचारों को बढ़ावा मिलता है।
- सांस्कृतिक आधिपत्य: सापेक्षवाद से शक्ति असंतुलन को बढ़ावा मिल सकता है और हाशिये पर पड़ी संस्कृतियों या अल्पसंख्यक समूहों को दबाया जा सकता है।
- स्वायत्तता और सार्वभौमिक मूल्यों को संतुलित करना: सांस्कृतिक प्रथाओं और सार्वभौमिक मानवाधिकारों के बीच संघर्ष को सुलझाने के लिए सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
सार्वभौमिकता का नैतिक निहितार्थ और नैतिक निर्णय लेने पर इसका प्रभाव:
- मानवाधिकारों को बढ़ावा देना: सार्वभौमिकता मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा को प्राथमिकता देती है। उदाहरण: विश्व स्तर पर अभिव्यक्ति और सभा की स्वतंत्रता के अधिकार का समर्थन करना।
- नैतिक स्थिरता: सार्वभौमिकता नैतिक सिद्धांतों को लागू करने में स्थिरता सुनिश्चित करती है। उदाहरण: संस्कृतियों में ईमानदारी और सच्चाई के सिद्धांत को बनाए रखना।
- साझा नैतिक जिम्मेदारी: सार्वभौमिकता वैश्विक नैतिक चुनौतियों के लिए सामूहिक कार्रवाई को प्रोत्साहित करती है। उदाहरण: जलवायु परिवर्तन और कमज़ोर तबके की आबादी पर इसके प्रभाव से निपटने के लिए सहयोग करना।
- वैश्विक नैतिक रुपरेखा: सार्वभौमिकता अंतर-सांस्कृतिक नैतिक चर्चाओं के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है। उदाहरण: रासायनिक हथियारों के उपयोग के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ स्थापित करना।
प्रमुख मुद्दे:
- सांस्कृतिक असंवेदनशीलता: इसका अर्थ है कि सार्वभौमिकता विभिन्न सांस्कृतिक छोटी-मोटी बातों को नजरअंदाज कर सकती है और सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं की विविधता को समझने में असफल हो सकती है।
- नैतिक दुविधाएँ: सार्वभौमिकतावाद को उन सांस्कृतिक प्रथाओं में सामंजस्य स्थापित करते समय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो सार्वभौमिक मानवाधिकार मानकों के साथ मेलजोल नही खाती हैं।
- सीमित सांस्कृतिक विविधता: सीमित सांस्कृतिक विविधता से आशय है कि जब विभिन्न संस्कृतियों को समझने का प्रयास किया जाता हैं तो वहाँ सार्वभौमिक मानवाधिकारों के साथ उस विविधता को बनाए रखने में परेशानी हो सकती है।
आगे की राह:
- सांस्कृतिक संवेदनशीलता: विविध सांस्कृतिक मूल्यों को समझना और उनका सम्मान करना।
- नैतिक संवाद: खुली और सम्मानजनक अंतर-सांस्कृतिक चर्चाओं को बढ़ावा देना।
- संतुलन: सार्वभौमिक मूल्यों और सांस्कृतिक संदर्भों के बीच एक मध्य मार्ग खोजना।
- अंतर-सांस्कृतिक शिक्षा: शिक्षा के माध्यम से अंतर-सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष:
एक संतुलित दृष्टिकोण खोजना जो सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों के साथ सांस्कृतिक संवेदनशीलता को जोड़ता हो। साथ ही वैश्वीकृत संसार में अधिक सामंजस्यपूर्ण और नैतिक रूप से जागरूक भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता हो।
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