उत्तर:
प्रश्न का समाधान कैसे करें
- भूमिका
- भारत के राष्ट्रपति की स्थिति और वीटो शक्तियों के बारे में संक्षेप में लिखें
- मुख्य भाग
- राष्ट्रपति की वीटो शक्तियों के प्रकार और प्रासंगिक अनुप्रयोग के बारे में लिखें
- भारतीय राजनीति के संदर्भ में उनके महत्व के बारे में लिखिए
- निष्कर्ष
- इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए
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भूमिका
राष्ट्रपति (अनुच्छेद 52-62) राज्य का प्रमुख और संघ कार्यकारिणी का अभिन्न अंग है। राष्ट्रपति के पास धन विधेयक को छोड़कर, संसद द्वारा पारित किसी भी विधेयक पर अनुच्छेद 111 के तहत वीटो करने या अपनी सहमति रोकने की शक्ति है । यह राष्ट्रपति को उस विधायी विधेयक पर सहमति देने से इंकार करने का अधिकार देता है जिसे विधायिका पारित कर चुकी है लेकिन अभी तक अंतिम रूप से अधिनियमित नहीं हुई है। जब संसद के दोनों सदन किसी विधेयक को पारित करते हैं, तो यह तभी अधिनियम बन सकता है जब इसे राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हो।
मुख्य भाग
राष्ट्रपति की वीटो शक्तियों के प्रकार और प्रासंगिक अनुप्रयोग:
- पूर्ण वीटो: राष्ट्रपति किसी विधेयक को सीधे अस्वीकार कर सकता है और उसे कानून बनने से रोक सकता है। यह शक्ति भारत में बहुत कम प्रयोग की जाती है, क्योंकि यह संवैधानिक संकट उत्पन्न कर सकती है। अंतिम बार इसका प्रयोग 1954 में किया गया था जब राष्ट्रपति ने PEPSU विनियोग विधेयक को अस्वीकार कर दिया था।
- निलम्बित वीटो: राष्ट्रपति किसी विधेयक (धन विधेयक के अलावा) को पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा सकता है। यदि संसद संशोधन के साथ या बिना संशोधन के विधेयक को दोबारा पारित करती है और राष्ट्रपति को वापस भेजती है, तो उसे अपनी सहमति देनी होगी। उदाहरण के लिए, 2006 में राष्ट्रपति ने लाभ के पद विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा दिया था।
- पॉकेट वीटो: राष्ट्रपति किसी विधेयक को न तो अस्वीकार कर और न ही लौटाकर उस पर अपनी सहमति को अनिश्चित काल तक विलंबित कर सकता है। यह इस तथ्य से लिया गया है कि किसी विधेयक पर कार्रवाई करने के लिए राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा निर्दिष्ट नहीं है। उदाहरण: 1986 में, राष्ट्रपति ने भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक पर अपनी सहमति रोक दी।
भारतीय राजनीति के संदर्भ में राष्ट्रपति की वीटो शक्तियों का महत्व:
- नियंत्रण और संतुलन को मूर्त रूप देना: जहां राष्ट्रपति सामान्यतः मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है, वहीं वीटो शक्ति जल्दबाजी या मनमाने कानून के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, 1999 में राष्ट्रपति ने निलम्बित वीटो का प्रयोग करते हुए “पेटेंट (संशोधन) अधिनियम” संबंधी विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा दिया।
- संघवाद को सुदृढ़ करना: यह सुनिश्चित करके कि केंद्रीय कानून राज्यों के अधिकारों का उल्लंघन न करे, यह संघीय संतुलन की रक्षा करता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति ने 1986 में “भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक” के लिए पॉकेट वीटो का इस्तेमाल किया , जिससे केंद्र सरकार को डाक संचार को बाधित करने की व्यापक शक्तियां मिल सकती थीं।
- संविधान का संरक्षक: वीटो शक्तियां राष्ट्रपति को संविधान की पवित्रता की रक्षा करने वाले एक प्रहरी की भूमिका प्रदान करती हैं। यह तब स्पष्ट हुआ जब 2006 में राष्ट्रपति ने संविधान के मूल्यों को बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हुए “लाभ का पद विधेयक” को पुनर्विचार के लिए लौटा दिया।
- विधायी जांच को बढ़ावा देना: किसी बिल को पुनर्विचार के लिए वापस भेजकर या अतिरिक्त विवरण मांगकर, यह सुनिश्चित करता है कि कानून पारदर्शी और जवाबदेह है। राष्ट्रपति ज़ैल सिंह ने इस विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए 1986 में “भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक” को मंजूरी नहीं दी, क्योंकि इससे नागरिकों की गोपनीयता को संभावित खतरा उत्पन्न हो गया था।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, राष्ट्रपति की वीटो शक्तियां , इन क्षमताओं में प्रकट होकर, भारत की मजबूत लोकतांत्रिक मशीनरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालाँकि इनका प्रयोग वर्षों से विवेकपूर्ण तरीके से किया गया है, लेकिन इनका अस्तित्व यह सुनिश्चित करता है कि विधायी प्रक्रिया पारदर्शी, जवाबदेह और, सबसे महत्वपूर्ण, संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप बनी रहे।
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