उत्तर:
प्रश्न का समाधान कैसे करें
- भूमिका
- एमएसपी और उससे संबंधित हालिया खबरों के बारे में लिखें।
- मुख्य भाग
- किसानों के हितों की रक्षा में एमएसपी की भूमिका लिखें।
- उन कारकों का उल्लेख कीजिए जो कृषि संकट को रोकने में इसकी प्रभावशीलता में बाधा बन रहे हैं।
- इस संबंध में आगे का उपयुक्त उपाय लिखें।
- निष्कर्ष
- इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।
|
भूमिका
एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) प्रणाली किसानों को बाजार में उतार-चढ़ाव के बावजूद उनकी उपज के लिए एक निश्चित मूल्य की गारंटी देती है। नवंबर 2021 में कृषि कानूनों को निरस्त करने के बाद , एमएसपी की गारंटी की मांग नए सिरे से उठी क्योंकि किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान यह दूसरी प्रमुख मांग थी।
मुख्य भाग
किसानों के हितों की सुरक्षा में एमएसपी की भूमिका:
- आय सुरक्षा: एमएसपी सुनिश्चित करता है कि बाजार में अस्थिरता के बावजूद किसानों को आय की गारंटी मिले। उदाहरण के लिए, यदि अधिक आपूर्ति के कारण गेहूं की बाजार कीमतें गिरती हैं, तो एमएसपी यह सुनिश्चित करता है कि किसानों को तब भी प्रति क्विंटल एक निर्धारित मूल्य मिले , जिससे उनकी आजीविका सुरक्षित रहे।
- जोखिम न्यूनीकरण: कृषि में अप्रत्याशित मौसम और कीटों सहित अन्य जोखिम होते हैं। एमएसपी ,बीमा के एक रूप के रूप में कार्य करता है। यदि किसी किसान की फसल खराब हो जाती है है, तो उसका प्रभाव कुछ हद तक कम हो जाता है क्योंकि उनकी फसल की कीमत सुनिश्चित रहती है।
- ऋण उपलब्धता: एमएसपी प्रणाली लागू होने पर बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा किसानों को ऋण देने की अधिक संभावना होती है, क्योंकि यह फसलों पर न्यूनतम रिटर्न की गारंटी देता है । इससे किसानों को बेहतर कृषि उपकरण और तकनीकों में निवेश करने में मदद मिलती है।
- शोषण के विरुद्ध बफर: छोटे और सीमांत किसानों जो भारतीय कृषि का एक बड़ा हिस्सा हैं में अक्सर सौदेबाजी की शक्ति का अभाव होता है। वे बिचौलियों के शोषण का शिकार हो जाते हैं, इसलिए एमएसपी इन किसानों की रक्षा करने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें उचित मूल्य मिले।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रोत्साहन: एमएसपी ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं में नकदी प्रवाह करता है, जिससे ग्रामीण गरीबी को कम करने में मदद मिलती है। यह किसानों को वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करने की अनुमति देता है, जिससे स्थानीय आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिलता है।
- बाज़ार की शक्ति: एमएसपी किसानों को खुले बाज़ार में अपनी उपज बेचते समय अधिक सौदेबाजी की शक्ति देता है। यदि बाजार मूल्य एमएसपी से नीचे है, तो सरकारी खरीद प्रतिस्पर्धी खरीदार के रूप में कार्य कर सकती है, जिससे निजी खरीदारों से भी बेहतर कीमतें मिल सकती हैं।
वे कारक जो कृषि संकट को रोकने और निरंतर कृषि आय सुनिश्चित करने में इसकी प्रभावशीलता में बाधा डाल रहे हैं:
- सीमित कवरेज: एमएसपी 23 फसलों के लिए घोषित किया जाता है, परन्तु बड़े पैमाने पर खरीद चावल और गेहूं के लिए होती है , जिससे अन्य फसलों के किसान असुरक्षित हो जाते हैं। यह 2018 में प्याज की कीमत में गिरावट के दौरान देखा गया, जिससे किसानों को गंभीर परेशानी हुई।
- असमान कार्यान्वयन: एमएसपी का कार्यान्वयन अलग-अलग राज्यों में भिन्न है। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा में एमएसपी कार्यान्वन का मजबूत तंत्र है लेकिन बिहार जैसे राज्यों में, खरीद प्रणाली अपर्याप्त है, जिससे एमएसपी अप्रभावी हो जाता है।
- अपर्याप्त मूल्य निर्धारण: किसानों द्वारा वहन की जाने वाली लागत को पर्याप्त रूप से ध्यान में नहीं रखने के लिए एमएसपी की गणना की आलोचना की गई है। लहसुन के लिए कम एमएसपी को लेकर 2017 में राजस्थान में किसानों द्वारा किया गया विरोध इस मुद्दे को उजागर करता है ।
- मोनोकल्चर प्रोत्साहन: कुछ फसलों के लिए एमएसपी के आश्वासन ने मोनोकल्चर को जन्म दिया है, जिससे विशेष रूप से पंजाब में मिट्टी की गुणवत्ता में कमी और भूजल की कमी जैसे पर्यावरणीय मुद्दे उत्पन्न हुए हैं।
- अप्रभावी मूल्य समर्थन योजना: द प्राइस सपोर्ट स्कीम (पीएसएस) का उद्देश्य दालों और तिलहनों की एमएसपी पर खरीद करना है, जो अक्सर लॉजिस्टिक मुद्दों और बजट की कमी के कारण विफल हो जाती है, जैसा कि 2017 में महाराष्ट्र में अरहर की कीमत में कमी के दौरान देखा गया था।
- जागरूकता की कमी: कई किसान, विशेषकर छोटे और सीमांत किसान, एमएसपी प्रणाली और इसके लाभों के बारे में पूरी तरह से जागरूक नहीं हैं। जागरूकता की कमी के कारण किसान एमएसपी मांगने के बजाय बिचौलियों या निजी व्यापारियों को कम कीमत पर अपनी उपज बेच सकते हैं। उदाहरण- रबी सीजन में रागी उगाने वाले केवल 4.3% किसान ही एमएसपी के बारे में जानते हैं।
इस संबंध में आगे बढ़ने का उपयुक्त रास्ता
- समावेशी एमएसपी: विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए एमएसपी का विस्तार किसानों के एक बड़े समूह को मूल्य आश्वासन प्रदान करेगा। उदाहरण के लिए, बाजरा जैसी फसलों के लिए एमएसपी का विस्तार उनकी खेती को प्रोत्साहित कर सकता है , जिससे पोषण और पर्यावरणीय लाभ दोनों मिलेंगे।
- मजबूत खरीद तंत्र: एक कुशल खरीद तंत्र एमएसपी से समान लाभ सुनिश्चित कर सकता है। बिहार की पहल, “धान का सम्मान”, एक प्रमुख उदाहरण है , जहां खरीद केंद्रों में सुधार और प्रत्यक्ष हस्तांतरण के कारण धान की खरीद में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- अवसंरचना में सुधार: उदाहरण के लिए, गुजरात की ग्रामीण भंडारण योजना , जहां किसानों को खेत पर भंडारण की सुविधा प्रदान की जाती है। यह फसल के बाद के नुकसान को रोकने और किसानों को अनुकूल कीमतों पर बेचने में सक्षम बनाने के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकती है।
- जागरूकता कार्यक्रम: किसानों को एमएसपी और खरीद प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित करने के प्रयासों को बढ़ाना। बिहार और ओडिशा में ‘डिजिटल ग्रीन’ पहल जैसे डिजिटल प्लेटफार्मों का सफल उपयोग दर्शाता है कि डिजिटल तकनीक जागरूकता पैदा करने में कैसे मदद कर सकती है।
- बिचौलियों को सीमित करना: किसानों को सीधे खरीदारों से जोड़ने के लिए ई-एनएएम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) जैसी तकनीकों का लाभ उठाया जा सकता है, जिससे बिचौलियों का प्रभाव कम हो जाएगा। उदाहरण के लिए, ई-एनएएम की बदौलत कई किसान अपनी उपज बेहतर कीमतों पर बेचने में सक्षम हुए हैं।
- वैज्ञानिक लागत की गणना: खेती की व्यापक लागत, बाजार के रुझान और क्षेत्रीय विविधताओं जैसे कारकों पर विचार करते हुए एमएसपी की गणना के लिए एक वैज्ञानिक और पारदर्शी तंत्र लागू करना चाहिए।
निष्कर्ष
जैसे-जैसे भारत कृषि सुधार की दिशा में आगे बढ़ रहा है, पुनर्जीवित एमएसपी प्रणाली एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी। एमएसपी के कार्यान्वयन के लिए जागरूकता को बढ़ावा देने और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए, भारत एक स्थायी और समृद्ध कृषि भविष्य की आशा कर सकता है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments