उत्तर:
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना: विजयनगर साहित्य के बारे में संक्षेप में लिखिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- क्षेत्रीय संस्कृति को आकार देने में विजयनगर साहित्य के महत्व पर चर्चा कीजिए।
- शास्त्रीय भाषाओं और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने पर विजयनगर साहित्य के प्रभाव पर चर्चा कीजिए।
- निष्कर्ष: इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।
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प्रस्तावना:
विजयनगर साम्राज्य एक प्रमुख दक्षिण भारतीय साम्राज्य था जो 14वीं से 17वीं शताब्दी तक फला-फूला। विजयनगर साहित्य उन साहित्यिक कृतियों को संदर्भित करता है जो विजयनगर साम्राज्य के दौरान उभरीं। उदाहरण- जैन संत कवि मधुरा का ‘धर्मनाथपुराण‘।
मुख्य विषयवस्तु:
क्षेत्रीय संस्कृति को आकार देने में विजयनगर साहित्य का महत्व
- कन्नड़ और तेलुगु भाषा का प्रचार: कन्नड़ कवि कुमार व्यास ने 15वीं शताब्दी में प्रसिद्ध महाभारत की रचना की, जो कन्नड़ साहित्य में एक मील का पत्थर साबित हुई।
- क्षेत्रीय परंपराओं का एकीकरण: तेलुगु कवि अल्लासानी पेद्दाना की कृति “मनुचरितम” स्थानीय तेलुगु संस्कृति को संस्कृत काव्य परंपराओं के साथ मिश्रित किया।
- साहित्यिक संरक्षण: विजयनगर के शासकों ने कवियों और विद्वानों को सक्रिय रूप से संरक्षण दिया, जिससे एक समृद्ध साहित्यिक संस्कृति को बढ़ावा मिला। कृष्णदेवराय ने तेनाली रामकृष्ण जैसे अष्टदिग्गजों को संरक्षण दिया।
- भक्ति और भक्ति साहित्य: विजयनगर काल में भक्ति साहित्य में वृद्धि देखी गई, जो भक्तों की गहन भक्ति और व्यक्तिगत अनुभवों पर केंद्रित था। पुरंदर दास, कनकदास और अन्य संत कवियों की कृतियों ने आध्यात्मिक शिक्षाओं और नैतिक मूल्यों को व्यक्त करते हुए देवताओं के प्रति अपनी गहरी भक्ति व्यक्त की।
- अन्य कार्यों पर प्रभाव: 15वीं सदी के तेलुगु कवि श्रीनाथ की महाकाव्य कविता “श्रीनाथ महाकाव्यम” ने विजयनगर साहित्यिक परंपरा से प्रेरणा ली।
शास्त्रीय भाषाओं और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने पर विजयनगर साहित्य का प्रभाव
- शास्त्रीय भाषाओं का संरक्षण एवं संवर्धन: विजयनगर काल को तेलुगु साहित्य का स्वर्ण काल कहा जाता है। विजयनगर के शासकों द्वारा कन्नड़, तेलुगु, संस्कृत कवियों को दिए गए संरक्षण ने इन भाषाओं को उच्च साहित्यिक स्थिति तक पहुंचाने में मदद की। उदाहरण- सायण का “वेदार्थ प्रकाश”।
- साहित्यिक कृतियों का अनुवाद: उन्होंने इन भाषाओं में संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद को प्रोत्साहित किया, जिससे साहित्यिक और धार्मिक ज्ञान आम लोगों के लिए अधिक सुलभ हो गया।
- नैतिक और सदाचारपूर्ण मूल्यों को बढ़ावा: विजयनगर साहित्य ने अपनी रचनाओं में नैतिक और सदाचारपूर्ण मूल्यों पर जोर दिया। महाकाव्यों, कविता और अन्य साहित्यिक कृतियों ने सामाजिक और नैतिक सिद्धांतों को व्यक्त किया,साथ ही नैतिक व्यवहार, करुणा, न्याय और सदाचारी जीवन को बढ़ावा दिया। उदाहरण- कुमार व्यास द्वारा “गडुगिना भारत”।
- धार्मिक समावेशिता: कवि-संत पुरंदर दास, जिन्होंने कन्नड़ में कई पुस्तकों की रचना की, एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने विष्णु और शिव दोनों के प्रति भक्ति का प्रचार किया।
- अंतरधार्मिक संवाद: सूफी कवि मोहम्मद शिराज़ी ने “रसमंजरी” नामक एक तेलुगु कृति की रचना की, जिसमें हिंदू और इस्लामी विषयों का मिश्रण था, जो अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देता था।
निष्कर्ष:
कुल मिलाकर, विजयनगर साहित्य ने न केवल क्षेत्रीय भाषाओं को समृद्ध किया, बल्कि विविध सांस्कृतिक तत्वों के संश्लेषण को भी सुविधाजनक बनाया, जिससे दक्षिण भारत की साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत पर स्थायी प्रभाव पड़ा।
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