उत्तर:
दृष्टिकोण
- भूमिका
- प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों के बारे में संक्षेप में लिखिए।
- मुख्य भाग
- प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में लिखिए।
- प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेने से भारत को क्या लाभ हुआ , इसके बारे में लिखिए।
- लाभों का उल्लेख करते हुए, प्रथम विश्व युद्ध में भारत ने क्या खोया इसके बारे में भी लिखिए।
- निष्कर्ष
- इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।
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भूमिका
प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान, दस लाख से अधिक भारतीय सैनिकों ने विश्व स्तर पर सेवा की । उन्होंने यूरोप, अफ्रीका और मध्य पूर्व में कठिन परिस्थितियों को सहते हुए बहादुरी से लड़ाई लड़ी और मित्र राष्ट्रों के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। हालाँकि, उनके बलिदान, जिन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है, भारत की जटिल औपनिवेशिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
मुख्य भाग
प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों द्वारा निभाई गई भूमिका
- विविध मोर्चे: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों ने पश्चिमी मोर्चे की खाइयों से लेकर मध्य पूर्व के रेगिस्तानों तक विभिन्न मोर्चों पर काम किया। उदाहरण के लिए, न्यूवे चैपल (1915) के युद्ध में, आधी से अधिक सेना भारतीय थी।
- महत्वपूर्ण बल: भारतीय उपमहाद्वीप के दस लाख से अधिक सैनिकों ने युद्ध में भाग लिया, जो एक महत्वपूर्ण बल का प्रतिनिधित्व करते थे। भारतीय अभियान बल को विभिन्न स्थानों में भेजा गया, जिसमें फोर्स A को फ्रांस, फोर्स B को पूर्वी अफ्रीका, फोर्स C को मेसोपोटामिया आदि भेजा गया।
- गैलीपोली अभियान: 29 वीं भारतीय इन्फैंट्री ब्रिगेड ने 1915 में ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ गैलीपोली अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कठोर परिस्थितियों और भयंकर प्रतिरोध के बावजूद, भारतीय सैनिकों ने अपने साहस और प्रतिबद्धता का उदाहरण देते हुए बहादुरी से लड़ाई लड़ी।
- मध्य पूर्व क्षेत्र: भारतीय सैनिकों ने मध्य पूर्व में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मेसोपोटामिया में कुट की घेराबंदी (Seige of Kut ,1915-1916) में भारतीय सेना की महत्वपूर्ण भागीदारी देखी गई , हालाँकि यह ब्रिटिश-भारतीय आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हुई।
- अफ्रीकी अभियान: जर्मन औपनिवेशिक शक्तियों के खिलाफ पूर्वी अफ्रीकी अभियान में भारतीय सैनिकों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उदाहरण के लिए, 27वीं बैंगलोर ब्रिगेड ने 1914 में तांगा के युद्ध (Battle of Tanga) में साहसपूर्वक लड़ाई लड़ी।
- गैर-लड़ाकू भूमिकाएँ: कई भारतीयों ने वाहक, निर्माण श्रमिक, या चिकित्सा अर्दली के रूप में काम किया, आपूर्ति लाइनों को बनाए रखने और घायलों की देखभाल करके युद्ध प्रयासों में सहायता की। उदाहरण के लिए, भारतीय चिकित्सा सेवा (Indian Medical Service) ,स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन में महत्वपूर्ण थी।
प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेने से भारत को निम्नलिखित लाभ हुए:
- वीरता की पहचान: भारतीय सैनिकों ने युद्ध के मैदान में अपार बहादुरी और समर्पण का प्रदर्शन किया और अपनी वीरता के लिए पहचान अर्जित की। उन्हें 9,200 से अधिक अलंकरण प्राप्त हुए, जिनमें 11 विक्टोरिया क्रॉस भी शामिल थे, जो ब्रिटिश साम्राज्य का सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार था ।
- सैन्य अनुभव: युद्ध में भारतीय सेना की भागीदारी ने सैनिकों को मूल्यवान सैन्य अनुभव और आधुनिक युद्ध तकनीकों का अनुभव प्रदान किया। इसने भारतीय सेना को एक पेशेवर और अनुशासित बल के रूप में विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
- आर्थिक लाभ: युद्ध के दौरान सामग्री की उच्च मांग के कारण भारत की अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से कपड़ा और इस्पात जैसे उद्योगों को लाभ हुआ। अंग्रेजों ने भारत से बड़ी मात्रा में युद्ध सामग्री खरीदी, जिससे अल्पकालिक आर्थिक लाभ हुआ।
- महिलाओं की भूमिका का उदय: जैसे ही पुरुष युद्ध के लिए चले गए, महिलाओं ने पारंपरिक रूप से पुरुषों द्वारा निभाई जाने वाली भूमिकाएँ अपना लीं। उन्होंने कारखानों, अस्पतालों और खेतों में काम करना शुरू कर दिया, जिससे उनकी क्षमताओं की पहचान बढ़ी और महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा मिला ।
- साक्षरता दर में सुधार – 1911 और 1921 के बीच, भर्ती वाले समुदायों की साक्षरता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। यह प्रभाव सैन्य उम्र के पुरुषों के लिए सबसे अधिक था, इसके पीछे का कारण यह बताया जाता है कि, सैनिकों ने अपने विदेशी अभियानों पर पढ़ना और लिखना सीखा था।
- राष्ट्रवाद को बढ़ावा: भारतीय सैनिकों के योगदान को पर्याप्त रूप से स्वीकार करने में ब्रिटिश सरकार की विफलता और उनके साथ हुए नस्लीय भेदभाव ने भारत में राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया। इससे कांग्रेस और स्वतंत्रता की लड़ाई का नेतृत्व करने वाले अन्य राजनीतिक समूहों को मजबूती मिली।
प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेने के कारण भारत को निम्नलिखित हानियाँ हुई:
- राजनीतिक दमन: युद्ध के बाद, औपनिवेशिक सत्ता ने रौलेट एक्ट (1919) जैसे दमनकारी उपाय अपनाए, जिसमें बिना मुकदमे के कारावास की अनुमति दी गई । इसे नागरिक स्वतंत्रता का घोर उल्लंघन माना गया और इससे जनता का मोहभंग हो गया।
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: मुद्रास्फीति के कारण आर्थिक कठिनाई बढ़ गई । 1914 के बाद छह वर्षों में औद्योगिक कीमतें लगभग दोगुनी हो गईं, जिसके परिणामस्वरूप आम भारतीयों को बहुत कठिनाई हुई। इसके अलावा, कई भारतीय सैनिक जो घर लौट आए
उन्होंने स्वयं को बेरोजगार पाया , जिससे सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ और बढ़ गईं।
- संसाधनों का निकास: भारत ने युद्ध प्रयासों के लिए न केवल जनशक्ति बल्कि वित्तीय संसाधन भी उपलब्ध कराए। अपनी खुद की आर्थिक आवश्यकताओं के बावजूद, भारत ने ब्रिटेन के युद्ध व्यय के एक महत्वपूर्ण हिस्से का वित्तपोषण किया, जिससे ‘धन की बर्बादी’ हुई जिसने भारत को आर्थिक स्वास्थ्य क्षति पहुंचाई।
- युद्ध में 74,000 से अधिक भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंवाई । बिना किसी तत्काल लाभ के जीवन की इस हानि को एक ऐसे उद्देश्य के लिए एक महान बलिदान के रूप में देखा गया जो सीधे तौर पर भारत के लिए फायदेमंद नहीं था।
- कृषि संकट: युद्ध में संसाधनों के अति उपयोग और बड़ी संख्या में पुरुषों की भर्ती के कारण कृषि उत्पादकता प्रभावित हुई। इससे अन्न उत्पादन में कमी पैदा हुई और कुछ क्षेत्रों में अकाल की शुरुआत हुई
निष्कर्ष
युद्ध में भारतीय सैनिकों की भूमिका निर्विवाद रूप से महत्वपूर्ण थी , और उनके बलिदानों ने भारत के इतिहास पर गहरा प्रभाव छोड़ा। इसके अलावा , हालांकि भारत को प्रथम विश्व युद्ध में अपनी भागीदारी से तत्काल महत्वपूर्ण लाभ नहीं मिला , लेकिन युद्ध ने सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों को उत्प्रेरित किया, जिसके कारण भारत को अंततः स्वतंत्रता हुई।
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