Q. आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम और आरटीआई अधिनियम के कार्यान्वयन के बीच संघर्ष का अन्वेषण कीजिए। गोपनीयता के साथ पारदर्शिता को संतुलित करने के लिए समाधान सुझाएं। (10 अंक, 150 शब्द)

उत्तर:

प्रश्न का समाधान कैसे करें

  • भूमिका
    • आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम और आरटीआई अधिनियम के बारे में संक्षेप में लिखें
  • मुख्य भाग
    • सरकारी गोपनीयता अधिनियम और आरटीआई अधिनियम के कार्यान्वयन के बीच मतभेदों को लिखें
    • पारदर्शिता और गोपनीयता के बीच संतुलन बनाने के लिए समाधान लिखें
  • निष्कर्ष
    • इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए

 

भूमिका            

आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (ओएसए) 1923 का उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित संवेदनशील सरकारी सूचनाओं की सुरक्षा करना है, जबकि सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) अधिनियम 2005 नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा रखी गई सूचनाओं तक पहुँचने का अधिकार देता है। हालांकि ये अधिनियम, पूरक प्रतीत होते हैं,लेकिन  संवेदनशील सूचनाओं की सुरक्षा करने की सरकार की आवश्यकता एवं  जनता के जानने के अधिकार के मध्य जटिल संघर्ष  उत्त्पन्न करते हैं।

मुख्य भाग

सरकारी गोपनीयता अधिनियम एवं  आरटीआई अधिनियम के कार्यान्वयन के मध्य  संघर्ष

  • पारदर्शिता बनाम गोपनीयता: आरटीआई अधिनियम पारदर्शिता के सिद्धांत का प्रतीक है, जिसमें कहा गया है कि लोकतंत्र को एक जागरूक नागरिक की आवश्यकता है। इसके विपरीत, OSA राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गोपनीयता पर ज़ोर देता है। उदाहरण के लिए, रक्षा सौदों के बारे में जानकारी छिपाने के लिए ओएसए का उपयोग आरटीआई प्रावधानों के साथ संघर्ष उत्त्पन्न कर सकता है जो सार्वजनिक व्यवहार में पारदर्शिता को बढ़ावा देते हैं।
  • जनहित बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा: आरटीआई अधिनियम सार्वजनिक हित में जानकारी उपलब्ध कराने की अनुमति देता है। हालाँकि, राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर ऐसी जानकारी से इनकार करने के लिए ओएसए लागू किया जा सकता है, जैसा कि आंतरिक सुरक्षा संचालन से संबंधित मामलों में देखा गया है
  • जवाबदेही बनाम अधिकार: आरटीआई सरकारी निर्णयों एवं कार्यों की जांच को सक्षम करके जवाबदेही को बढ़ावा देता है, जैसे औद्योगिक परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी ।हालांकि, ओएसए अधिकार के नाम पर इन निर्णयों की  रक्षा कर सकता है, जो जवाबदेही को सीमित करता है।
  • व्हिसलब्लोअर संरक्षण बनाम जासूसी के आरोप: आरटीआई भ्रष्टाचार या अक्षमताओं को उजागर करने वाले व्हिसलब्लोअर का समर्थन करता है, लेकिन ओएसए का उपयोग इन व्हिसलब्लोअर को जासूस या देशद्रोही के रूप में लेबल करने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण : पत्रकार ताराकांत द्विवेदी का मामला, जिन पर ओएसए के तहत आरोप लगाया गया था, जो व्हिसलब्लोअर्स की रक्षा करने के आरटीआई के उद्देश्य से बिल्कुल विपरीत है।
  • नागरिक सशक्तीकरण बनाम राज्य नियंत्रण: आरटीआई नागरिकों को सरकार से सवाल पूछने का अधिकार देकर उन्हें सशक्त बनाता है , जिससे सहभागी लोकतंत्र को बढ़ावा मिलता है । दूसरी ओर, ओएसए सूचना पर राज्य नियंत्रण का प्रतिनिधित्व करता है , जो नागरिक सशक्तीकरण को सीमित कर सकता है।
  • न्यायिक जांच बनाम कार्यकारी विवेक: आरटीआई अधिनियम सरकारी कार्रवाइयों को न्यायिक जांच के अधीन करता है , जिससे यह सुनिश्चित होता है कि निर्णय कानूनी जांच का सामना कर सकें। ओएसए दस्तावेजों को गोपनीय के रूप में वर्गीकृत करने में कार्यकारी विवेक की अनुमति देता है , जिससे न्यायिक समीक्षा की संभवना कम हो जाती है।
  • सूचना सुलभता बनाम दस्तावेजों का वर्गीकरण: आरटीआई के तहत सरकारी रिकॉर्ड और दस्तावेजों तक आसान पहुंच सुनिश्चित की जाती है। हालांकि, ओएसए सरकार को दस्तावेजों को ‘गुप्त’, ‘अति गोपनीय’ या ‘गोपनीय’ के रूप में वर्गीकृत करने की अनुमति देता है , जिससे वे आरटीआई के तहत पहुंच से बाहर हो जाते हैं।
  • सुधारात्मक बनाम दंडात्मक उपाय: आरटीआई शासन को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाकर उसमें सुधार लाने का प्रयास करता है । OSA, अपने दंडात्मक दृष्टिकोण के साथ, सूचना के मुक्त प्रवाह को बाधित कर सकता है , क्योंकि अधिकारी संवेदनशील जानकारी का खुलासा करने के परिणामों से डरते हैं।।
  • लोकतांत्रिक आदर्श बनाम औपनिवेशिक विरासत: आरटीआई लोकतांत्रिक आदर्शों को प्रदर्शित करता है एवं , सहभागिता तथा  जांच को प्रोत्साहित करता है। OSA, एक औपनिवेशिक युग का कानून है, जिसे कुछ लोग प्राचीन  मानते हैं, जो सहयोग पर नियंत्रण को प्राथमिकता देता है , जो आधुनिक लोकतांत्रिक शासन सिद्धांतों के विपरीत हो सकता है।

पारदर्शिता तथा गोपनीयता के बीच संतुलन के समाधान

  • OSA की धारा 5 में संशोधन: OSA की धारा 5 में संशोधन करके इसे वास्तविक राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों तक सीमित किया जाना चाहिए। इस संशोधन में स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए कि ‘सुरक्षा’ क्या है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए वास्तव में हानिकारक जानकारी ही सुरक्षित रहे , जिससे मुखबिरों या पत्रकारों के खिलाफ़ दुरुपयोग को रोका जा सके।
  • ओ.एस.ए. को निरस्त करना और प्रतिस्थापित करना: द्वितीय एआरसी अनुशंसा को लागू करते हुए, आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (ओएसए), 1923 को निरस्त किया जाना चाहिए, तथा उसके स्थान पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम में एक अध्याय जोड़ा जाना चाहिए, जिसमें आधिकारिक गोपनीयता से संबंधित प्रावधान हों।
  • सामंजस्य समिति: आरटीआई और ओएसए के बीच विवादों को हल करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की स्थापना करें, जो यह सुनिश्चित करेगी कि सूचना प्रकटीकरण पर निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ पारदर्शिता को संतुलित करें। इस समिति में न्यायपालिका, कार्यपालिका और नागरिक समाज के प्रतिनिधि शामिल हो सकते हैं
  • स्वतंत्र समीक्षा तंत्र: राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर दस्तावेजों के वर्गीकरण एवं आरटीआई अनुरोधों को अस्वीकार करने से संबंधित निर्णयों की समीक्षा के लिए एक स्वतंत्र निकाय बनाएं । यह तंत्र यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसे निर्णय विवेकपूर्ण तरीके से लिए जाएं और निगरानी के अधीन हों।
  • अधिकारियों के लिए बेहतर प्रशिक्षण: पारदर्शिता तथा गोपनीयता दोनों के नैतिक निहितार्थों पर सरकारी अधिकारियों को व्यापक प्रशिक्षण प्रदान करें, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे समझें कि OSA और RTI को कब एवं किस प्रकार लागू करना है। इससे गोपनीयता की आवश्यकता का सम्मान करते हुए खुलेपन की संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा।
  • जनहित की अवहेलना से सम्बंधित खंड (Public Interest Override Clause) : ऐसा खंड प्रस्तुत करें, जैसा कि आरटीआई अधिनियम में देखा गया है, जो जानकारी के प्रकटीकरण की अनुमति देता है यदि प्रकटीकरण में सार्वजनिक हित संरक्षित हितों को होने वाले नुकसान से अधिक है। जैसा कि भारत संघ बनाम एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स मामले में इसे स्वीकार किया गया , जिसमें लोकतंत्र के कामकाज में पारदर्शिता पर जोर दिया गया था।

निष्कर्ष

एड्वर्ड स्नोडेन के शब्दों में – “यदि हमारे सर्वोच्च कार्यालयों को जांच से मुक्त रखा जाता है तो सरकार पर कोई भरोसा नहीं रह सकता।” इस प्रकार , उपर्युक्त  सुझावों को लागू करके, भारत एक अधिक संतुलित, पारदर्शी और सुरक्षित ढांचा बना सकता है जो  ओएसए को आरटीआई अधिनियम के साथ समन्वयित करके जनता के सूचना के अधिकार तथा  राष्ट्रीय सुरक्षा की अनिवार्यता दोनों का सम्मान करता है।

 

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