Q. बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में गणपति महोत्सव राजनीतिक लामबंदी का एक मंच बन गया। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में राष्ट्रवादी जागृति के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • विश्लेषण कीजिए कि बाल गंगाधर तिलक ने गणपति उत्सव को राजनीतिक लामबंदी के एक मंच में कैसे बदल दिया।
  • गणेश चतुर्थी को राजनीतिक लामबंदी के एक मंच के रूप में संगठित करने की कमियों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

वर्ष 1893 में, बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी को एक निजी घरेलू अनुष्ठान से बदलकर सार्वजनिक गणेशोत्सव, एक सार्वजनिक उत्सव बना दिया। इस नवाचार ने न केवल राजनीतिक समारोहों पर औपनिवेशिक प्रतिबंधों को दरकिनार किया, बल्कि एक सांस्कृतिक परंपरा को सामूहिक मुखरता एवं राष्ट्रवादी एकता के एक मंच में बदल दिया, जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक नए चरण की शुरुआत की।

तिलक ने गणपति उत्सव को राजनीतिक लामबंदी के एक मंच में बदल दिया।

  • निजी से सार्वजनिक: वर्ष 1893 में, उन्होंने गणेश चतुर्थी को सार्वजनिक स्थानों पर एक सामूहिक उत्सव में बदल दिया।
    • उदाहरण: पुणे में सार्वजनिक गणेशोत्सव की स्थापना।
  • वर्गों में समावेशिता: घरों से बाहर निकलकर, इस उत्सव में कारीगर, किसान, व्यापारी एवं निचली जातियाँ शामिल हुईं।
    • उदाहरण: ब्राह्मणों से आगे बढ़कर समाज के सभी वर्गों तक भागीदारी का विस्तार।
  • सांस्कृतिक राष्ट्रवाद: गणेश की भक्ति को भारतीय विरासत पर गर्व से जोड़ते हुए, तिलक ने राष्ट्रीय चेतना का विकास करने का प्रयास किया।
    • उदाहरण: भारत की स्वतंत्रता के लिए “बाधाओं को दूर करने वाले” के रूप में गणेश का प्रतीकवाद।
  • राजनीति के लिए सुरक्षित आवरण: एक धार्मिक सभा के रूप में, यह उत्सव औपनिवेशिक दमन से बचा रहा एवं भाषणों एवं बहस के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता रहा।
  • सामुदायिक पुनरुत्थान: इस उत्सव ने स्थानीय रंगमंच, संगीत एवं लोक कला के लिए अवसर प्रदान किए, संस्कृति को राजनीति के साथ मिश्रित किया।
  • अभिजात्य राष्ट्रवाद का प्रतिकार: तिलक के दृष्टिकोण ने राष्ट्रवाद को अंग्रेजी-शिक्षित अभिजात वर्ग से लोकप्रिय जन जागरण की ओर स्थानांतरित कर दिया।

गणेश चतुर्थी को राजनीतिक लामबंदी के मंच के रूप में प्रचारित करने के नुकसान

  • राजनीति में धार्मिक निहितार्थ: आलोचकों का मानना ​​था कि किसी धार्मिक उत्सव का राजनीतिकरण करने से धर्म एवं राजनीति धुंधली पड़ जाती है, जिससे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद के बजाय सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है।
  • बहिष्कार की प्रवृत्तियाँ: गणेश चतुर्थी ने हिंदुओं को एकजुट किया, लेकिन मुसलमानों एवं अन्य समुदायों को राष्ट्रवादी आंदोलन से अलग करने का जोखिम उठाया।
  • सांप्रदायिक तनाव का खतरा: गणेश चतुर्थी के दौरान राजनीतिक जुलूस कभी-कभी सांप्रदायिक झड़पों को भड़काते थे, जिससे समावेशी एकता कमजोर होती थी।
  • सुधारवादी एजेंडे को कमजोर करना: गोखले जैसे सुधारकों को डर था कि धार्मिक मंच शिक्षा, सामाजिक न्याय एवं जाति सुधार जैसे प्रगतिशील मुद्दों को दरकिनार कर देंगे।

इस प्रकार, धार्मिक भक्ति को राजनीतिक जागृति से जोड़कर, तिलक ने एक जन-आधारित मंच बनाया जिसने एकता, लचीलेपन एवं प्रारंभिक राष्ट्रवादी भावना को पोषित किया। आलोचना से मुक्त न होते हुए भी, इसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को याचिकाओं से जन-लामबंदी तथा सांस्कृतिक दावे की ओर मोड़ने में एक निर्णायक कदम उठाया।

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