Q. विश्वविद्यालय रैंकिंग पर वैश्विक प्रयास ने भारत की उच्च शिक्षा नीति एवं संस्थागत प्रथाओं को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता एवं पहुँच पर इस प्रवृत्ति के प्रभाव की आलोचनात्मक जाँच कीजिये। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार विश्वविद्यालय रैंकिंग पर विश्व भर में दिये जाने वाले जोर ने भारत की उच्च शिक्षा नीति और संस्थागत प्रथाओं को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है।
  • भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और सुगमता पर विश्वविद्यालय रैंकिंग पर जोर देने के सकारात्मक प्रभाव का परीक्षण कीजिए।
  • भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और सुलभता पर विश्वविद्यालय रैंकिंग पर जोर देने की चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
  • आगे की राह लिखिये।

 

उत्तर:

QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग और टाइम्स हायर एजुकेशन जैसी वैश्विक विश्वविद्यालय रैंकिंग,अनुसंधान परिणाम, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और संकाय-छात्र अनुपात पर ध्यान केंद्रित करती हैं। भारत का NIRF (राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग ढाँचा) इन मानकों के अनुरूप है, जो उच्च शिक्षा नीति और संस्थागत प्रथाओं को आकार देता है। हालाँकि, रैंकिंग पर जोर देने से भारत में शिक्षा की गुणवत्ता और पहुँच पर उनके प्रभाव के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।

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रैंकिंग पर विश्व भर में दिये जाने वाले जोर ने भारत की उच्च शिक्षा नीति और संस्थागत प्रथाओं को कैसे प्रभावित किया है

  • शोध परिणामों पर ध्यान: वैश्विक रैंकिंग सिस्टम के शोध पर बल देने से भारतीय विश्वविद्यालयों को अपनी शोध उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय विश्वविद्यालयों में शोध और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) की स्थापना की गई थी।
  • अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना: भारतीय विश्वविद्यालय अपनी रैंकिंग बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम अंतरराष्ट्रीयकरण और संकाय विकास कार्यक्रमों जैसे वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को तेजी से अपना रहे हैं।
    • उदाहरण के लिए: दिल्ली विश्वविद्यालय ने वैश्विक मानकों के अनुरूप च्वाइस-बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (CBCS) की शुरुआत करके अपने शैक्षणिक ढाँचे  को नया रूप दिया ।
  • मान्यता के लिए दबाव में वृद्धि: रैंकिंग वैश्विक मानक बन गई है, इसलिए भारतीय विश्वविद्यालयों पर AACSB और ABET जैसी संस्थाओं से अंतररायष्ट्री मान्यता प्राप्त करने का दबाव है, जिससे उनकी वैश्विक स्थिति में सुधार हो। 
    • उदाहरण के लिए: इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (ISB) को AACSB द्वारा मान्यता प्राप्त है, जिससे वैश्विक रैंकिंग में इसकी स्थिति में सुधार हुआ है।
  • फंडिंग मॉडल की ओर बदलाव: रैंकिंग प्रदर्शन इस बात को प्रभावित कर रहा है कि विश्वविद्यालय किस तरह सरकारी और निजी फंडिंग हासिल करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए : बेहतर रैंकिंग स्थिति दिखाने वाले विश्वविद्यालयों को उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (HEFA) के माध्यम से बेहतर फंडिंग आवंटन मिलता है।
  • संकाय भर्ती और प्रतिधारण नीतियाँ: भर्ती के दौरान फैकल्टी रिसर्च क्रिडेंशियल पर अधिक जोर दिया जाता है ताकि रैंकिंग मापदंडों के साथ तालमेल बिठाया जा सके, जिससे संस्थागत नियुक्ति नीतियों पर असर पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: IIT बॉम्बे और अन्य शीर्ष-स्तरीय संस्थान प्रमुख पत्रिकाओं में महत्त्वपूर्ण शोध प्रकाशन वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता देते हैं।

गुणवत्ता और पहुँच पर विश्वविद्यालय रैंकिंग का सकारात्मक प्रभाव

  • वैश्विक मान्यता में वृद्धि: रैंकिंग ने भारतीय विश्वविद्यालयों को वैश्विक मानचित्र पर स्थान दिलाया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय सहयोग और छात्र आदान-प्रदान में वृद्धि हुई है, जिससे समग्र शैक्षिक अनुभव में सुधार हुआ है। 
    • उदाहरण के लिए: QS रैंकिंग्स की वर्ष 2025 की रैंकिंग में IIT बॉम्बे की 118वीं रैंक है, जो अंतरराष्ट्रीय छात्रों और साझेदारियों को आकर्षित करता है।
  • शोध मानकों में सुधार : रैंकिंग में अच्छा प्रदर्शन करने के दबाव ने शोध की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार लाया है, जिसमें सहकर्मी-समीक्षित प्रकाशनों पर अधिक जोर दिया गया है। 
    • उदाहरण के लिए: IISC बैंगलोर, शोध परिणामों में अग्रणी के रूप में उभरा है जिसको अच्छी वैश्विक रैंकिंग भी मिली है।
  • अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण तक पहुँच: उच्च रैंकिंग वाले संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय अनुदान और सहयोग तक पहुँच  प्राप्त होती है, जिससे उनकी अनुसंधान क्षमता और बुनियादी ढाँचे  में वृद्धि होती है।
  • छात्रों की गतिशीलता में वृद्धि: उच्च रैंकिंग वाले भारतीय विश्वविद्यालयों के छात्रों को विदेश में अध्ययन करने या ग्लोबल प्लेसमेंट पाने के बेहतर अवसर मिलते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: IIT दिल्ली से स्नातक करने वालों को आगे अध्ययन के लिए शीर्ष-स्तरीय वैश्विक विश्वविद्यालयों में आसानी से प्रवेश मिल जाता है।
  • गुणवत्ता पर सरकार का ध्यान : रैंकिंग पर जोर देने से भारत सरकार शिक्षण और शोध की गुणवत्ता में सुधार हेतु नीतियों को लागू करने के लिए प्रेरित हुई है, जैसे कि Institutions of Eminence (IoE) पहल। 
    • उदाहरण के लिए : IIT मद्रास को Institutions of Eminence (IoE)   का दर्जा दिया गया , जिससे इसकी स्वायत्तता और वैश्विक पहुँच में वृद्धि हुई।

विश्वविद्यालय रैंकिंग पर जोर देने की चुनौतियाँ

  • शिक्षण की तुलना में शोध पर अधिक जोर: विश्वविद्यालय रैंकिंग में शोध परिणामों पर दिये जाने वाले जोर ने शिक्षण गुणवत्ता से ध्यान हटा दिया है, जिससे संकाय पर छात्र मार्गदर्शन और शिक्षण की तुलना में प्रकाशन को प्राथमिकता देने का दबाव बढ़ गया है।
    • उदाहरण के लिए: केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कई संकाय कार्यभार असंतुलन की रिपोर्ट करते हैं, जहां शोध प्रकाशन के पक्ष में शिक्षण जिम्मेदारियों को दरकिनार कर दिया जाता है।
  • असमान संसाधन आवंटन: रैंकिंग-केंद्रित नीतियों से अक्सर पहले से ही सुस्थापित संस्थानों को लाभ होता है, जिससे छोटे विश्वविद्यालयों को सुधार के लिए कम संसाधन मिलते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: IIT और IIMs को क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों की तुलना में असंगत धन प्राप्त होता है, जिससे शैक्षिक गुणवत्ता में अंतर बढ़ता है।
  • सामाजिक विज्ञान और मानविकी की उपेक्षा: रैंकिंग सिस्टम STEM विषयों को प्राथमिकता देते हैं, जिससे सामाजिक विज्ञान और मानविकी के लिए कम धन उपलब्ध होता है, जिससे विश्वविद्यालयों में उनके विकास और महत्त्व  पर असर पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: शीर्ष संस्थानों में इंजीनियरिंग और चिकित्सा विज्ञान की तुलना में समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान जैसे विषयों पर कम ध्यान दिया जाता है।
  • शहरी-ग्रामीण विभाजन का विस्तार: ग्रामीण या क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों को शहरी संस्थानों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जहां रैंकिंग-आधारित संसाधन आवंटन उनके सुधार की क्षमता को और सीमित कर देता है।
  • डेटा हेरफेर पर नैतिक चिंताएँ: रैंकिंग में ऊपर रहने के बढ़ते दबाव से अनैतिक प्रथाओं को बढ़ावा मिल सकता है, जैसे कि शोध परिणामों या छात्र प्लेसमेंट में डेटा हेरफेर।

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आगे की राह

  • समावेशी मानदंडों पर ध्यान देना: रैंकिंग ढाँचे को शिक्षण गुणवत्ता, सामुदायिक जुड़ाव और छात्र संतुष्टि का मूल्यांकन करने के लिए अपने मानदंडों को व्यापक बनाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: टाइम्स हायर एजुकेशन इम्पैक्ट रैंकिंग जैसी रैंकिंग प्रणाली अकादमिक मेट्रिक्स के साथ-साथ सामाजिक प्रभाव पर भी विचार करती है ।
  • क्षेत्रीय और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना: सरकारी नीतियों को राज्य और क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों के लिए समान वित्त पोषण और संसाधन आवंटन सुनिश्चित करना चाहिए ताकि उनके और बड़े संस्थानों के बीच के अंतर को कम किया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA), बुनियादी ढाँचे  में सुधार के लिए राज्य विश्वविद्यालयों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • अंतःविषयक अनुसंधान को बढ़ावा देना: संस्थानों को अंतःविषयक अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो STEM और सामाजिक विज्ञान दोनों को शामिल करता है, जिससे सभी विषयों में संतुलित विकास सुनिश्चित होता है। 
    • उदाहरण के लिए: IIT गुवाहाटी ने इंजीनियरिंग और लिबरल आर्ट्स को मिलाकर नए कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिससे अंतःविषयक शिक्षा के लिए एक मॉडल तैयार हुआ है।
  • शिक्षण और मार्गदर्शन को सुदृढ़ बनाना: संस्थानों को अनुसंधान और शिक्षण के बीच संतुलन बनाने के लिए रणनीतियों को लागू करना चाहिए और दोनों क्षेत्रों में संकाय की भूमिका के महत्त्व  को पहचानना चाहिए।
  • रैंकिंग में पारदर्शिता रखना: रैंकिंग के लिए प्रस्तुत किए गए डेटा में पारदर्शिता सुनिश्चित करना चाहिए और डेटा हेरफेर को रोकने के लिए स्वतंत्र ऑडिटिंग तंत्र स्थापित करना चाहिए । उदाहरण के लिए : QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग ने रैंकिंग में पारदर्शिता लाने के लिए छात्र प्रतिक्रिया और थर्ड पार्टी ऑडिटर्स को शामिल करना शुरू कर दिया है।

वैश्विक विश्वविद्यालय रैंकिंग ने भारतीय संस्थानों की छवि को बढ़ाया है परंतु शिक्षण, शोध और पहुँच  में संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए चुनौतियां हैं। शोध गहनता को बनाए रखने और एक समावेशी उच्च शिक्षा वातावरण जो सभी छात्रों और संस्थाओं की आवश्यकताओं को पूरा करता हो, को बढ़ावा देने के साथ-साथ विविधता , समानता और अंतःविषय सहयोग को शामिल करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

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