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July 7, 2023
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उत्तर:
दृष्टिकोण:
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प्रस्तावना:
दुनिया भर की सरकारों को कानून और व्यवस्था बनाए रखने के बीच मौलिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में कई दुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। एक लोकतांत्रिक सरकार को इन दोनों पहलुओं के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन बनाना चाहिए ताकि न्यायसंगत समाज के कामकाज को सुनिश्चित किया जा सके । यह विशेष रूप से उन स्थितियों में प्रासंगिक हो जाता है, जहां सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा जैसे मुद्दे प्रकाश में आते हैं। अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ मामले और फहीमा शिरीन आर.के. बनाम केरल राज्य और अन्य मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के दो प्रमुख फैसले इस तनाव को उजागर करते हैं
मुख्य विषयवस्तु:
अनुराधा भसीन मामला:
फाहीमा शिरीन मामला:
इन दोनों मामलों में न्यायालय ने नागरिक अधिकारों के पक्ष फैसला सुनाया था साथ ही न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि समाज के समग्र कल्याण के लिए कानून और व्यवस्था बनाए रखना महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने माना कि सार्वजनिक व्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा और भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखने के लिए आवश्यक परिस्थितियों में मौलिक अधिकारों पर कुछ उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
निष्कर्ष :
सुप्रीम कोर्ट के दोनों फैसले कानून और व्यवस्था बनाए रखने और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को बनाए रखने के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करते हैं। वे संकेत देते हैं कि हालांकि व्यक्तिगत अधिकार सर्वोपरि हैं किन्तु वे पूर्ण नहीं हैं और सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे बड़े सामाजिक लक्ष्यों के लिए उन्हें उचित रूप से प्रतिबंधित किया जा सकता है। हालाँकि इसके लिए एक स्पष्ट विधायी ढांचे की आवश्यकता है जो ऐसे प्रतिबंधों की प्रकृति और सीमा को रेखांकित करे। ये मामले भारत जैसे संवैधानिक लोकतंत्र में राज्य के कर्तव्यों और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच नाजुक संतुलन बनाए रखने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
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