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उत्तर:
दृष्टिकोण:
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परिचय:
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत विविध और बहुआयामी मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। फिर भी, जब इसके संसदीय निकायों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात आती है, तो यह कई अन्य लोकतांत्रिक देशों से पीछे रह जाता है। लोकसभा में केवल 14.36% महिला सांसद होने के कारण, भारत दक्षिण अफ्रीका (46.2%), यूनाइटेड किंगडम (34.5%) और जर्मनी (35.1%) जैसे देशों से पीछे है। ऐसे में संसद एवं राज्य की विधानसभाओं में आरक्षण के माध्यम से उनके प्रतिनिधित्व एवं अधिकारों में सुधार होगा।
मुख्य विषयवस्तु:
अधिक प्रतिनिधित्व के लाभ:
संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करने का लक्ष्य रखते हुए महिला आरक्षण विधेयक की शुरूआत एक प्रगतिशील कदम है। हालाँकि भविष्य में इसका कार्यान्वयन और भी आगे बढ़ सकता है, लेकिन यह शासन में लैंगिक समानता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का संकेत देने वाला कदम है।
निष्कर्ष:
हालाँकि, आरक्षण महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने में सहायक हो सकता है, इसके लिए यह आवश्यक है कि देश का सामाजिक-सांस्कृतिक ताना-बाना नेतृत्वकारी भूमिकाओं में महिलाओं को संगठित रूप से सशक्त बनाने के लिए विकसित हो। आरक्षण में कोटा इस प्रक्रिया को उत्प्रेरित कर सकता है, लेकिन अंतिम दृष्टिकोण एक ऐसा समाज होना चाहिए जहाँ महिलाओं को योग्यता के आधार पर, न कि केवल आरक्षण के आधार पर, सभी क्षेत्रों में समान प्रतिनिधित्व मिले।
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