प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को संबोधित करते हुए सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में केंद्रीय बजट की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
- प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना जैसी योजनाओं में कार्यान्वयन संबंधी कमियों को उजागर कीजिए।
- परीक्षण कीजिए कि राजकोषीय नीति हस्तक्षेप किस प्रकार हरित ऊर्जा परिवर्तन में तेजी लाने में मदद कर सकते हैं और पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना जैसी योजनाओं में कार्यान्वयन अंतराल को कम कर सकते हैं।
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उत्तर
भारत, वैश्विक उत्सर्जन में लगभग 7% का योगदान देता है (IEA, 2023)। वर्तमान समय में भारत आर्थिक विकास को प्राप्त करने और 2070 तक अपने नेट-जीरो लक्ष्य को पूरा करने की दोहरी चुनौती का सामना कर रहा है। केंद्रीय बजट, 203 GW नवीकरणीय ऊर्जा अंतर जैसे जलवायु अंतराल को संबोधित करते हुए, सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए राजकोषीय नीतियों के साथ जलवायु प्रतिस्पर्धात्मकता को एकीकृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।
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भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को संबोधित करते हुए सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में केंद्रीय बजट की भूमिका
- जलवायु संबंधी निवेश: बजट में सौर, पवन ऊर्जा और हरित हाइड्रोजन जैसे हरित बुनियादी ढाँचे संबंधित क्षेत्रों में धन का निवेश किया जाता है, जिससे सतत विकास को बढ़ावा मिलेगा और जलवायु लक्ष्यों को पूरा किया जा सकेगा।
- उदाहरण के लिए: वित्त वर्ष 24 के बजट में ऊर्जा संक्रमण पहलों के लिए प्राथमिकता वाले पूंजी निवेश के लिए ₹35,000 करोड़ आवंटित किए गए।
- निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता: डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों का समर्थन करके, यह बजट उद्योगों को CBAM जैसे वैश्विक जलवायु मानदंडों का अनुपालन करने में मदद करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवहार्य बना रहे।
- उदाहरण के लिए: बजट, भारत के निर्यात में 45% योगदान देने वाले सुभेद्य MSMEs को डीकार्बोनाइज करने के लिए जापान के ग्रीन ट्रांसफ़ॉर्मेशन फण्ड का अनुकरण कर सकता है।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था: संसाधन दक्षता को बढ़ावा देना और अपशिष्ट को कम करना, उत्सर्जन को कम करने और आर्थिक लाभ सुनिश्चित करते हुए सतत विकास को बढ़ावा देता है।
- उदाहरण के लिए: रीसाइक्लिंग प्रौद्योगिकियों में निवेश पर 150% की कटौती से 2050 तक ₹40 लाख करोड़ का वार्षिक लाभ हो सकता है।
- जलवायु प्रत्यास्थता: कम लागत वाली जलवायु-संबंधित बीमा पॉलिसियाँ सुभेद्य समुदायों के लिए लचीलापन बढ़ाती हैं, उनकी आजीविका की रक्षा करती हैं और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देती हैं।
- उदाहरण के लिए: जलवायु-संबंधित बीमा के लिए कर प्रोत्साहन, इंश्योरेंस संख्या में कमी का कारण बन सकता है, जो वर्तमान में IRDAI FY24 रिपोर्ट के अनुसार 3.7% है।
- ग्रीन फाइनेंस टैक्सोनॉमी: ग्रीन फाइनेंस को मानकीकृत करने से निवेशकों का विश्वास बढ़ता है और संधारणीय परियोजनाओं के लिए पूंजी आकर्षित होती है, जिससे दीर्घकालिक विकास संभव होता है।
- उदाहरण के लिए: टैक्सोनॉमी-संरेखित निवेशों के लिए विभेदी कर व्यवहार शुरू करने से भारत के 2.5 ट्रिलियन डॉलर के क्लाइमेट फंडिंग गैप को दूर किया जा सकता है।
पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना जैसी योजनाओं के कार्यान्वयन में कमियाँ
- कम पूर्णता दर: रसद और वित्तीय बाधाओं के कारण केवल 4.37% पंजीकृत परिवारों में ही इसे स्थापित किया जा सका।
- उदाहरण के लिए: 1.45 करोड़ पंजीकरणों में से,अभी तक केवल 6.34 लाख घरों में सौर ऊर्जा संयंत्र को इंस्टॉल किया जा सका है।
- उच्च अग्रिम लागत: कम आय वाले परिवारों के लिए प्रारंभिक लागत निषेधात्मक बनी हुई है, जो सौर ऊर्जा प्रणालियों को व्यापक रूप से अपनाने से रोकती है।
- उदाहरण के लिए: नवीकरणीय ऊर्जा सेवा कंपनी (RESCO) मॉडल के लिए राजकोषीय सहायता, अग्रिम व्यय को प्रबंधनीय परिचालन लागत में बदल सकती है।
- घरेलू विनिर्माण बाधाएँ: भारत का घरेलू सौर मॉड्यूल उत्पादन, माँग का केवल 40% ही पूरा करता है , जिससे आपूर्ति में कमी आती है।
- उदाहरण के लिए: सौर विनिर्माण के लिए प्रोडक्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI), घरेलू लागत को कम कर सकता है, जो वर्तमान में आयातित मॉड्यूल की तुलना में 65% अधिक है।
- सार्वजनिक-निजी सहयोग का अभाव: रेलवे भूमि बैंकों जैसे अप्रयुक्त अक्षय ऊर्जा अवसर, सीमित PPP ढाँचे के कारण कम उपयोग में आते हैं।
- उदाहरण के लिए: रेलवे के कॉरिडोर में 5 गीगावाट सौर एवं पवन ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया जा सकते हैं, परंतु इसके लिए PPP निवेश की आवश्यकता होगी।
- अपर्याप्त जागरूकता: लाभों और वित्तीय योजनाओं तक सीमित पहुँच और जागरूकता, नवीकरणीय कार्यक्रमों में व्यापक भागीदारी में बाधा डालती है।
- उदाहरण के लिए: लक्षित क्षमता-निर्माण अभियान जागरूकता में सुधार कर सकते हैं, विशेषकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में।
हरित ऊर्जा संक्रमण में तेजी लाने और कार्यान्वयन अंतराल को कम करने के लिए राजकोषीय नीति हस्तक्षेप
- PLI योजनाओं का विस्तार: सौर आपूर्ति श्रृंखला में PLI प्रोत्साहनों को बढ़ाने से विनिर्माण क्षमता में वृद्धि होती है, आपूर्ति-माँग के बीच अंतर को कम किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: उन्नत PLI से उत्पादन लागत कम हो सकती है और मौजूदा घरेलू 40% कवरेज से परे क्षमता का विस्तार हो सकता है।
- अभिनव वित्तपोषण मॉडल: RESCO मॉडल और ऋण गारंटी, निम्न आय वाले परिवारों के लिए वित्तीय बाधाओं को कम करती है, जिससे व्यापक रूप से सौर ऊर्जा अपनाने में मदद मिलती है।
- उदाहरण के लिए: RESCO मॉडल के लिए वित्तीय आवंटन अपनाने की दरों को 4.37% से महत्त्वपूर्ण कवरेज तक सुधार सकता है।
- PPP मॉडल का लाभ उठाना: रेलवे के कॉरिडोर जैसे नवीकरणीय बुनियादी ढाँचे में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करने से अप्रयुक्त सौर और पवन क्षमता का लाभ मिलता है।
- उदाहरण के लिए: एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल, रेलवे की भूमि पर 5 गीगावाट तक की सौर व पवन क्षमता विकसित कर सकता है।
- ग्रीन बॉन्ड फ्रेमवर्क: सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड की स्थापना से सर्कुलर इकोनॉमी इंफ्रास्ट्रक्चर और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को वित्तपोषित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: ग्रीन बॉन्ड रीसाइक्लिंग तकनीकों और नवीनीकरण का समर्थन कर सकते हैं, जिससे 2050 तक ₹40 लाख करोड़ का वार्षिक लाभ हो सकता है।
- कर प्रोत्साहन: हरित बुनियादी ढाँचे पर भारित कटौती और कम GST दरें निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करती हैं और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने की लागत को कम करती हैं।
- उदाहरण के लिए: रीसाइक्लिंग निवेश पर 150% की कटौती से संसाधन दक्षता बढ़ सकती है, जिससे ग्रीनहाउस उत्सर्जन में 44% की कमी आ सकती है।
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भारत की वर्ष 2030 जलवायु प्रतिबद्धताओं के लिए, लक्षित राजकोषीय नीतियों के माध्यम से तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है, जैसा कि IPCC की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट (2023) द्वारा मान्यता प्राप्त है। केंद्रीय बजट के माध्यम से हरित ऊर्जा संक्रमण, MSME डीकार्बोनाइजेशन और चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रोत्साहन को प्राथमिकता देने से आर्थिक विकास, संधारणीयता के साथ संरेखित होगा जिससे जलवायु प्रत्यास्थता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित होगी।
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