प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में संविदा वैज्ञानिक कर्मचारियों पर बढ़ती निर्भरता के कारणों पर चर्चा कीजिए।
- संविदा कर्मचारियों पर बढ़ती निर्भरता के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।
- वैज्ञानिक कार्यबल को मजबूत करने के लिए स्थायी सुधार सुझाइए।
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उत्तर
भारत वैश्विक विज्ञान और नवाचार केंद्र बनने की आकांक्षा रखता है। हालाँकि, CSIR, DRDO और ICAR जैसे प्रमुख अनुसंधान एवं विकास संस्थानों में संविदा शोधकर्ताओं पर बढ़ती निर्भरता प्रतिभा प्रतिधारण, वित्तपोषण और संस्थागत नियोजन में गहन संरचनात्मक खामियों को दर्शाती है। यह अति-निर्भरता, अनुसंधान निरंतरता और वैज्ञानिक मनोबल दोनों को खतरे में डालती है।
भारत में संविदा वैज्ञानिक कर्मचारियों पर बढ़ती निर्भरता के पीछे कारण
- अनुसंधान एवं विकास में अपर्याप्त सार्वजनिक निवेश: अनुसंधान पर भारत का कम व्यय, स्थायी वैज्ञानिक पदों के सृजन को सीमित करता है।
उदाहरण के लिए: भारत अनुसंधान एवं विकास पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.64% व्यय करता है, जबकि चीन में यह 2.4% और दक्षिण कोरिया में 3.2% है।
- परियोजना-आधारित वित्तपोषण संरचना: कई वैज्ञानिक भूमिकाएँ संस्थागत बजट के बजाय अल्पकालिक, बाह्य रूप से वित्तपोषित परियोजनाओं से जुड़ी होती हैं।
- कठोर और विलंबित भर्ती प्रक्रियाएँ: स्थायी पदों के लिए लंबी भर्ती प्रक्रिया, संस्थानों को अस्थायी कर्मचारियों पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करती है।
उदाहरण के लिए: IIT और IISc में संकाय की भर्ती में एक वर्ष से अधिक समय लग सकता है, जिससे संविदा शोधकर्ताओं पर निर्भरता बढ़ जाती है।
- राष्ट्रीय टेन्योर-ट्रैक प्रणाली का अभाव: संरचित कॅरियर प्रगति का अभाव दीर्घकालिक वैज्ञानिक संलग्नता को हतोत्साहित करता है।
- नीति का ध्यान आउटपुट पर है, एकीकरण पर नहीं: सरकारी योजनाएँ अनुसंधान संख्या को बढ़ाती हैं, लेकिन पुरस्कार के बाद रोजगार सुनिश्चित में विफल रही हैं।
संविदा कर्मचारियों पर बढ़ती निर्भरता के निहितार्थ
- नौकरी की असुरक्षा और प्रतिभा पलायन: अल्पकालिक अनुबंध दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को हतोत्साहित करते हैं, जिससे शीर्ष प्रतिभाएँ विदेश चली जाती हैं।
उदाहरण के लिए: भारत में प्रति 10,000 कार्यबल पर केवल 4 शोधकर्ता हैं, जबकि चीन में 18 और ब्राजील में 14 हैं।
- शोध की गुणवत्ता और निरंतरता में गिरावट: लगातार बदलाव से दीर्घकालिक शोध प्रभावित होता है विशेषकर अंतरिक्ष, AI और जलवायु तकनीक जैसे अग्रणी क्षेत्रों में।
उदाहरण के लिए: परियोजना-आधारित वैज्ञानिकों के बाहर निकलने के कारण DRDO को रक्षा प्रौद्योगिकी परियोजनाओं में देरी का सामना करना पड़ा।
- संस्थागत संसाधनों तक सीमित पहुँच: संविदा कर्मचारियों को अक्सर अनुदान, प्रशिक्षण और मार्गदर्शन के अवसरों से वंचित रखा जाता है।
उदाहरण के लिए: CSIR परियोजना शोधकर्ताओं के पास प्रकाशन निधि या अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों तक पहुँच नहीं है।
- प्रशासनिक एवं वित्तीय विलंब: फेलोशिप/वजीफा वितरण में देरी और शिकायत निवारण का अभाव उत्पादकता को प्रभावित करता है।
- संस्थागत स्मृति की हानि: स्मरण शक्ति की कमी से क्षेत्र-विशिष्ट अनुभव का क्षरण होता है और अनुसंधान संस्कृति कमजोर होती है।
उदाहरण के लिए: ICAR के फसल अनुसंधान केंद्रों में निरंतरता के अभाव के कारण संकर बीज विकास के प्रयास बाधित हुए।
वैज्ञानिक कार्यबल को मजबूत करने के लिए सतत् सुधार
- टेन्योर-ट्रैक कॅरियर सिस्टम शुरू करना: संविदात्मक से स्थायी भूमिकाओं में प्रदर्शन-संबंधी बदलाव करने चाहिए।
उदाहरण के लिए: DAE ने प्रतिभा को बनाए रखने के लिए वर्ष 2021 के बाद चुनिंदा प्रयोगशालाओं में टेन्योर-ट्रैक कार्यक्रम शुरू किए।
- अनुसंधान एवं विकास व्यय में वृद्धि: वैश्विक मानदंडों के अनुरूप अनुसंधान एवं विकास में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाना चाहिए।
- उद्योग-अकादमिक संबंधों को प्रोत्साहित करना: संविदा शोधकर्ताओं को कॉरपोरेट भागीदारी के साथ अनुप्रयुक्त परियोजनाओं पर काम करने में सक्षम बनाना चाहिए।
उदाहरण के लिए: IIT मद्रास रिसर्च पार्क 50 से अधिक स्टार्ट-अप को अकादमिक शोधकर्ताओं से जोड़ता है।
- मेंटरशिप और प्रोफेशनल डेवलपमेंट का विस्तार करना: कॅरियर का आरंभ करने वाले शोधकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण, प्रस्ताव-लेखन कार्यशालाएँ और प्रकाशन मार्गदर्शन को संस्थागत बनाना चाहिए।
उदाहरण के लिए: PM रिसर्च फेलोशिप वरिष्ठ वैज्ञानिकों द्वारा निर्देशित मेंटरशिप प्रदान करती है।
- पारदर्शी नियुक्ति और मूल्यांकन प्रक्रिया सुनिश्चित करना
डिजिटल सहकर्मी-समीक्षित प्लेटफॉर्म के माध्यम से नियुक्ति, पदोन्नति और अनुदान आवंटन को मानकीकृत करना चाहिए।
उदाहरण के लिए: SERB की ऑनलाइन मूल्यांकन प्रणाली ने फेलोशिप में पारदर्शिता में सुधार किया है।
खंडित और असुरक्षित रोजगार, भारत की वैज्ञानिक क्षमता का दोहन करने में एक बड़ी बाधा है। नवाचार को बढ़ावा देने, वैश्विक प्रतिभा को बनाए रखने और भारत को विज्ञान व प्रौद्योगिकी में अग्रणी बनाने के लिए सुरक्षा, समर्थन और अवसर को मिलाकर एक व्यापक कार्यबल नीति आवश्यक है।
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