प्रश्न की मुख्य माँग
- राज्यों में चुनावी फोटो पहचान पत्र (EPIC) संख्या के दोहराव के आरोपों से संबंधित हालिया चिंताओं पर चर्चा कीजिए।
- राज्यों में मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) संख्याओं के दोहराव के आरोपों पर हाल की चिंताओं के मद्देनजर, भारत में चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डालिये।
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सुधार सुझाइये।
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उत्तर
इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड (EPIC), भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा मतदाता धोखाधड़ी को रोकने और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए जारी किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हालाँकि, राज्यों में डुप्लिकेट EPIC नंबरों के हालिया आरोपों ने मतदाता सूची की अखंडता के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में, ECI ने 1.66 करोड़ से अधिक डुप्लिकेट मतदाता प्रविष्टियाँ हटा दीं ।
चुनावी फोटो पहचान पत्र (EPIC) नंबरों के दोहराव पर हालिया चिंताएँ
- फर्जी मतदाताओं के आरोप: विपक्षी दलों ने मतदाता सूची में फर्जी मतदाताओं के नाम शामिल किए जाने पर चिंता जताई है तथा आरोप लगाया है कि इस तरह की प्रथाओं से चुनाव परिणामों में हेरफेर हो सकता है।
- राज्यों में मतदाताओं की EPIC संख्या एक समान: रिपोर्टों से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल, गुजरात, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में मतदाताओं की EPIC संख्या एक समान है, जिससे संभावित चुनावी विसंगतियों को लेकर चिंता बढ़ गई है।
- विकेंद्रीकृत से केंद्रीकृत EPIC डेटाबेस में बदलाव: चुनाव आयोग ने पहले के विकेंद्रीकृत EPIC जारी करने को दोहराव के लिए जिम्मेदार ठहराया और इस समस्या को हल करने के लिए एक केंद्रीकृत प्रणाली शुरू की।
- उदाहरण के लिए: चुनाव आयोग द्वारा लागू किया गया ERONET प्लेटफॉर्म, एक एकीकृत राष्ट्रीय डेटाबेस बनाए रखकर डुप्लिकेट मतदाता पहचान पत्रों का पता लगाने और उन्हें खत्म करने के लिए डिजाइन किया गया है।
- चुनावी विश्वास पर प्रभाव: समान EPIC नंबरों की घटना ने मतदाता सूचियों की सटीकता और मतदान प्रक्रिया की पारदर्शिता के बारे में जनता की चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दे
- मतदाता सूचियों में हेराफेरी: फर्जी मतदाता प्रविष्टियों के आरोप चुनावों की निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न करते हैं और मतदाता पंजीकरण की पारदर्शिता के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न करते हैं।
- उदाहरण के लिए: विपक्षी दलों ने कई बार आरोप लगाया है कि चुनावी लाभ पाने के लिए मतदाता सूचियों में हेराफेरी की गई, जिसके कारण सख्त सत्यापन तंत्र की माँग की गई।
- EVM और VVPAT संबंधी चिंताएँ: 100% VVPAT-EVM मैचिंग की माँग पर बहस हुई है और इस संबंध में अधिकारियों का कहना है कि मौजूदा सत्यापन प्रक्रियाएँ पर्याप्त हैं। हालाँकि, EVM की विश्वसनीयता को लेकर कुछ चिंताएँ बनी हुई हैं।
- उदाहरण के लिए: ADR बनाम भारत के चुनाव आयोग वाद, 2024 में सर्वोच्च न्यायलय ने चुनाव आयोग की VVPAT पर्चियों के सीमित प्रतिशत के सत्यापन की प्रथा को बरकरार रखा और वर्ष 2019 व वर्ष 2024 के आम चुनावों में पूर्ण मिलान की माँग को खारिज कर दिया।
- अनियमित चुनाव व्यय: चुनाव उम्मीदवारों के विपरीत, राजनीतिक दलों पर सख्त खर्च सीमा की अनुपस्थिति ने अत्यधिक चुनावी फंडिंग और संसाधनों के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताओं को जन्म दिया है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में, विभिन्न राजनीतिक दलों ने सामूहिक रूप से लगभग ₹1.35 लाख करोड़ खर्च किए।
- राजनीति का अपराधीकरण: निर्वाचित प्रतिनिधियों की एक बड़ी संख्या ने आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जिससे शासन और नैतिक नेतृत्व को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- उदाहरण के लिए: 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद, 46% (543 में से 251) नवनिर्वाचित सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे।
- आदर्श आचार संहिता (MCC) का उल्लंघन: राजनीतिक अभियानों में अक्सर नफरत फैलाने वाले भाषण, सांप्रदायिक अपील और व्यक्तिगत हमलों के आरोप देखने को मिलते हैं, जिससे चुनावी बहस के बिगड़ने की चिंता होती है।
- उदाहरण के लिए: ECI नोटिस जारी कर सकता है और उम्मीदवारों को प्रचार करने से अस्थायी रूप से प्रतिबंधित कर सकता है, लेकिन इसमें न्यायिक प्रवर्तन शक्तियों का अभाव है, जिससे सख्त दंड लगाने की इसकी क्षमता सीमित हो जाती है।
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के लिए आवश्यक सुधार
- मतदाता पहचान-पत्र सत्यापन को मजबूत करना: डुप्लिकेट EPIC नंबरों को हटाना और पारदर्शी सत्यापन प्रक्रिया के माध्यम से अद्वितीय मतदाता पहचान सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- उदाहरण के लिए: ERONET के माध्यम से मतदाता सूचियों को केंद्रीकृत करने की चुनाव आयोग की पहल डुप्लिकेट मतदाता पहचान-पत्रों को समाप्त करने की दिशा में एक कदम है।
- EVM पारदर्शिता बढ़ाना: VVPAT सत्यापन के सैंपल साइज़ को बढ़ाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एक भी विसंगति होने पर उस क्षेत्र में पूरी पुनर्गणना हो।
- उदाहरण के लिए: कुल मिलाकर गिनती के लिए टोटलाइजर मशीनों का उपयोग करने की 2016 की चुनाव आयोग की सिफारिश गोपनीयता में सुधार करेगी और बूथ-स्तर पर धमकी को कम करेगी।
- चुनाव खर्च को विनियमित करना: राजनीतिक दलों पर व्यय सीमा लागू करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उम्मीदवारों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता निर्धारित सीमा के भीतर हो।
- उदाहरण के लिए: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन करके पार्टी के चुनाव खर्च पर सख्त सीमा तय की जानी चाहिए।
- आपराधिक रिकॉर्ड का व्यापक रूप से खुलासा करना: उम्मीदवारों को चुनाव से पहले कई बार समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से आपराधिक मामलों की सार्वजनिक घोषणा करनी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: सर्वोच्च न्यायलय के वर्ष 2024 के निर्देश ने लोकप्रहरी बनाम भारत संघ, वर्ष 2015 के निर्णय को दोहराया जिसमें कहा गया था कि उम्मीदवारों को चुनाव से पूर्व कम से कम तीन बार आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा करना चाहिए।
- MCC उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई: चुनाव आयोग को किसी नेता के स्टार प्रचारक का दर्जा रद्द करने का अधिकार होना चाहिए, अगर वे बार-बार MCC मानदंडों का उल्लंघन करते हैं।
- उदाहरण के लिए: सिंबल ऑर्डर के पैराग्राफ 16A के तहत चुनाव आयोग MCC का पालन न करने वाली पार्टी की मान्यता को निलंबित कर सकता है या रद्द कर सकता है।
चुनावी सत्यनिष्ठा को मजबूत करने के लिए तकनीक-संचालित, पारदर्शी और जवाबदेह दृष्टिकोण की आवश्यकता है। ब्लॉकचेन-आधारित मतदाता सत्यापन को लागू करने, गोपनीयता सुनिश्चित करते हुए आधार को EPIC के साथ एकीकृत करने और AI-संचालित डीडुप्लीकेशन को बढ़ाने से विसंगतियों को समाप्त किया जा सकता है। एक मजबूत शिकायत निवारण तंत्र और चुनावी कानूनों का सख्त प्रवर्तन लोकतंत्र को मजबूत करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि हर वोट मायने रखता है और भारत की चुनावी प्रक्रिया में कोई भी वोट दोहराया नहीं जाता है।
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