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सर क्रीक का आर्थिक और पारिस्थितिकी महत्त्व।तटीय और समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग पर अनसुलझे भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद का प्रभाव। | 
उत्तर
सर क्रीक क्षेत्र, जो गुजरात के कच्छ के रण में स्थित एक ज्वारीय मुहाना (tidal estuary) है, आर्थिक और पारिस्थितिकी दोनों दृष्टियों से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह क्षेत्र जैव विविधता, मत्स्यपालन और हाइड्रोकार्बन (तेल और गैस) की संभावनाओं से समृद्ध है तथा मत्स्यपालन और नमक उत्पादन के माध्यम से स्थानीय आजीविका का प्रमुख आधार है। किंतु भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद के अनसुलझे रहने के कारण इस क्षेत्र में संसाधनों के सतत् उपयोग, संरक्षण, और स्थानीय जीविकोपार्जन में बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं।
सर क्रीक का आर्थिक और पारिस्थितिकी महत्त्व
- मत्स्यपालन और आजीविका:  सर क्रीक क्षेत्र में बड़ी संख्या में मछुआरे समुदाय रहते हैं, जिनकी आजीविका का मुख्य साधन मत्स्यपालन है।
- उदाहरण: कच्छ जिले में लगभग 1.5 लाख लोग सर क्रीक और आसपास के जलक्षेत्रों में मत्स्यपालन पर निर्भर हैं।
 
- जैव विविधता केंद्र: यह क्षेत्र मैंग्रोव वनस्पतियों, मुहाना पारितंत्रों और प्रवासी पक्षियों का प्रमुख आवास है, जो पर्यावरणीय स्थिरता को बनाए रखते हैं।
-  उदाहरण: प्रवासी फ्लेमिंगो और अन्य जलीय पक्षी इस क्षेत्र को प्रजनन और भोजन स्थलों के रूप में उपयोग करते हैं।
 
- नमक उत्पादन:  सर क्रीक के तटीय समतल क्षेत्र नमक उत्पादन के प्रमुख केंद्र हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। 
- उदाहरण: गुजरात प्रतिवर्ष लगभग 70 लाख टन नमक का उत्पादन करता है, जिसमें सर क्रीक क्षेत्र की बड़ी भूमिका है।
 
- हाइड्रोकार्बन संभावनाएँ: इस क्षेत्र में तेल और प्राकृतिक गैस के भंडार की संभावनाएँ हैं, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा में योगदान दे सकती हैं।
- उदाहरण: ONGC के सर्वेक्षणों से पता चला है कि अरब सागर के सर क्रीक निकटवर्ती क्षेत्र में संभावित भंडार मौजूद हैं।
 
- जलवायु नियंत्रण और तटीय संरक्षण: यहाँ के मैंग्रोव और आर्द्रभूमियाँ प्राकृतिक अवरोधक के रूप में कार्य करती हैं, जो कटाव को कम करती हैं और चक्रवातीय लहरों के प्रभाव को घटाती हैं।
- उदाहरण: कच्छ तट पर मैंग्रोव पट्टियाँ चक्रवात से होने वाले नुकसान को कम करती हैं।
 
- पर्यावरणीय पर्यटन की संभावना:  इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता और मनोहर दृश्यावलियाँ पर्यावरणीय पर्यटन के लिए अनुकूल हैं, जिससे स्थानीय आय में वृद्धि हो सकती है।
- उदाहरण: फ्लेमिंगो महोत्सव और पक्षी अवलोकन कार्यक्रमों से देशी और विदेशी पर्यटक आकर्षित होते हैं।
 
भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद के कारण उत्पन्न प्रभाव
- संसाधनों तक सीमित पहुँच:  मछुआरा समुदायों को अधिकार क्षेत्र की अस्पष्टता के कारण मत्स्यपालन में कठिनाई होती है।
- उदाहरण: वर्ष 2023 में पाकिस्तान द्वारा विवादित जल क्षेत्र में प्रवेश करने पर कई भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया गया।
 
- हाइड्रोकार्बन अन्वेषण में बाधा: सीमा विवाद के कारण इस क्षेत्र में तेल और गैस के संयुक्त या स्वतंत्र अन्वेषण कार्य में देरी हो रही है।
- उदाहरण: ONGC की ड्रिलिंग और अन्वेषण परियोजनाएँ नियामक अनिश्चितताओं के कारण प्रभावित हैं।
 
- पारिस्थितिकी प्रबंधन में कठिनाई: अधिकार क्षेत्र की अस्पष्टता के कारण मैंग्रोव और आर्द्रभूमि संरक्षण में समन्वित प्रयास नहीं हो पाते।
- उदाहरण: विवादित दावों के चलते मैंग्रोव पुनर्स्थापन परियोजनाएँ सीमित रह गई हैं।
 
- सुरक्षा एवं निगरानी प्राथमिकताएँ: सीमा क्षेत्र में सुरक्षा गश्त और तनावपूर्ण स्थिति के कारण पारिस्थितिकी सर्वेक्षणों और संसाधन उपयोग में प्रतिबंध लग जाते हैं।
- उदाहरण: भारतीय तटरक्षक बल (Indian Coast Guard) पर्यावरणीय निगरानी की तुलना में सीमा सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।
 
- स्थानीय समुदायों को आर्थिक क्षति:  मत्स्यपालन पर प्रतिबंध और सीमित पहुँच के कारण स्थानीय लोगों की आय घटती है और गरीबी बढ़ती है।
-  उदाहरण: गुजरात के मछुआरों को प्रत्येक वर्ष लगभग ₹50–70 करोड़ की हानि होती है।
 
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग में अवरोध: आपदा प्रबंधन, वैज्ञानिक अध्ययन और सतत् विकास जैसे संयुक्त कार्यक्रम राजनीतिक तनाव के कारण प्रभावित होते हैं।
- उदाहरण: प्रस्तावित भारत–पाकिस्तान सीमा-पार आर्द्रभूमि प्रबंधन कार्यक्रम अब तक लागू नहीं हो सका है।
 
निष्कर्ष
सर क्रीक क्षेत्र भारत का एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी एवं आर्थिक संसाधन है, किंतु सीमा विवाद के कारण इसका सतत् उपयोग और विकास सीमित रह गया है। इस विवाद का शांतिपूर्ण समाधान, संयुक्त प्रबंधन और सीमा पार सहयोग न केवल पर्यावरणीय स्थिरता के लिए आवश्यक है बल्कि स्थानीय समुदायों की आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी अनिवार्य है।
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