Q. वैश्वीकरण और सांस्कृतिक एकीकरण के बावजूद, नस्लीय भेदभाव सूक्ष्म रूपों में बना हुआ है। नस्लवाद की ऐतिहासिक जड़ों और समकालीन अभिव्यक्तियों की जाँच दक्षिण एशियाई संदर्भ में कीजिए। सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करते हुए समावेशी समाज बनाने के उपाय भी सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि वैश्वीकरण और सांस्कृतिक एकीकरण के बावजूद, नस्लीय भेदभाव किस प्रकार सूक्ष्म रूपों में कायम है।
  • नस्लवाद की ऐतिहासिक जड़ों और समकालीन अभिव्यक्तियों का परीक्षण कीजिए, विशेष रूप से दक्षिण एशियाई संदर्भ में।
  • सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करते हुए समावेशी समाज का निर्माण करने के उपाय सुझाइये।

उत्तर

नस्लीय भेदभाव का अर्थ है, किसी व्यक्ति के साथ उसकी नस्ल या नृजातीयता के आधार पर पक्षपातपूर्ण व्यवहार करना जो अक्सर प्रणालीगत असमानताओं को जन्म देता है। दक्षिण एशिया में उपनिवेशवाद और जाति-आधारित प्रथाओं का भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण, अभी भी कायम है, जिसने रंगभेद का रूप ले लिया है। वैश्वीकरण द्वारा अंतर-सांस्कृतिक विनिमय को बढ़ावा देने के बावजूद, समाज में गहराई से व्याप्त पूर्वाग्रह, सच्ची समावेशिता में बाधा डालते हैं।

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वैश्वीकरण और सांस्कृतिक एकीकरण के बावजूद, नस्लीय भेदभाव सूक्ष्म रूपों में कैसे कायम है

  • अचेतन पूर्वाग्रह: वैश्वीकृत समाज में नौकरियों के लिए होने वाली नियुक्तियों में अभी भी पूर्वाग्रह देखा जा सकता है जहां काले रंग के उम्मीदवारों की तुलना में गोरे रंग के व्यक्तियों को तरजीह दी जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: अध्ययनों से पता चलता है कि UK में दक्षिण एशियाई लोगों को नौकरी के साक्षात्कारों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
  • रूढ़िबद्धता और माइक्रोएग्रेशन: नस्लीय रूढ़िबद्धता और धारणाएँ, दिन-प्रतिदिन की अंतर्क्रियाओं में सूक्ष्म रूप से प्रकट होती हैं, जो हाशिए पर स्थित समूहों की गरिमा को प्रभावित करती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: पश्चिमी समाजों में दक्षिण एशियाई लोगों को अक्सर आवश्यकता से अधिक पारंपरिक माना जाता है, जो समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों को दर्शाता है।
  • मीडिया में कम प्रतिनिधित्व: सांस्कृतिक एकीकरण के बावजूद, दक्षिण एशियाई लोगों सहित अन्य काले रंग के लोगों को फिल्मों, टीवी शो और विज्ञापनों में काम करने का अवसर कम मिलता है। 
    • उदाहरण के लिए: हॉलीवुड फिल्मों में दक्षिण एशियाई पात्रों की “वाइटवॉशिंग” करना, जैसे कि भारतीय मूल के पात्रों को दर्शाने के लिए गैर-दक्षिण एशियाई लोगों को कास्ट करना।
  • पुलिसिंग और निगरानी पूर्वाग्रह: कानून प्रवर्तन अक्सर अव्यक्त पूर्वाग्रह दर्शाता है, जिससे सार्वजनिक स्थलों  पर अल्पसंख्यकों को  सूक्ष्म नस्लीय प्रोफाइलिंग का सामना करना पड़ सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका में, दक्षिण एशियाई और अन्य अल्पसंख्यकों को हवाई अड्डों पर अतिरिक्त जाँच का सामना करना पड़ सकता है, जिससे अलगाव की भावना बनी रहती है।

दक्षिण एशियाई संदर्भ में नस्लवाद का इतिहास और समकालीन अभिव्यक्तियाँ

  • औपनिवेशिक योगदान: ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने एक पदानुक्रम स्थापित किया जहाँ गोरेपन को श्रेष्ठता का प्रतीक माना जाता था, जिसने दक्षिण एशियाई समाजों पर एक स्थायी मनोवैज्ञानिक छाप छोड़ी। 
    • उदाहरण के लिए: भारत में गोरेपन की क्रीम के प्रति जुनून आंतरिक नस्लीय पदानुक्रम को दर्शाता है, जो औपनिवेशिक प्रभाव का प्रत्यक्ष परिणाम है।
  • उत्तर-औपनिवेशिक आर्थिक असमानताएं: उत्तर-औपनिवेशिक नस्लीय विभाजन ने आर्थिक अंतर को और गहरा कर दिया, जिससे श्वेत-बहुल समाजों में दक्षिण एशियाई हीनता की धारणा मजबूत हुई।
  • दक्षिण एशिया में रंगभेद: नस्लवाद ने रंगभेद का रूप ले लिया है, जहाँ काले रंग के व्यक्तियों को अपने ही समुदायों में सामाजिक और वैवाहिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत में वैवाहिक विज्ञापनों में अक्सर “गोरी स्किन वाली दुल्हनों” को प्राथमिकता दी जाती है, जो काले रंग की त्वचा के प्रति गहरी जड़ें जमाए हुए पूर्वाग्रहों को दर्शाता है।
  • प्रवासियों के खिलाफ भेदभाव: दक्षिण एशिया के प्रवासियों को स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद अपने मेजबान देशों में “बाहरी” माना जाता है और अलगाव व रूढ़िबद्धता का सामना करना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: UK में विंडरश स्कैंडल ने दक्षिण एशियाई लोगों सहित पूर्व उपनिवेशों से आए अप्रवासियों के खिलाफ प्रणालीगत भेदभाव को उजागर किया।
  • श्वेत व्यक्तियों के विरुद्ध नस्लवाद: औपनिवेशिक उत्पीड़न से नाराजगी, कभी-कभी दक्षिण एशिया में रहने वाले या यात्रा करने वाले श्वेत व्यक्तियों के विरुद्ध पूर्वाग्रह के रूप में प्रकट होती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत में कुछ पश्चिमी पर्यटकों ने बताया कि उनसे अधिक पैसे लिए गए या उनके साथ संदेहपूर्ण व्यवहार किया गया, जो औपनिवेशिक इतिहास में निहित अविश्वास को दर्शाता है।

सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करते हुए समावेशी समाज बनाने के उपाय

  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम: सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के माध्यम से संवाद और समझ को प्रोत्साहित करने से रूढ़िवादिता को समाप्त करने और विविध समुदायों के बीच आपसी सम्मान को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका में इंडियाफेस्ट जैसी पहल दक्षिण एशियाई धरोहरों का सम्मान करते हुए समावेशिता को बढ़ावा देती है और साथ ही दूसरों को भारतीय परंपराओं और मूल्यों के बारे में शिक्षित करती है।
  • भेदभाव विरोधी कानून और नीतियों को लागू करना: नस्लवाद विरोधी और रंगभेद विरोधी कानूनों का सख्ती से पालन, समान व्यवहार सुनिश्चित करता है, जिससे सामाजिक पूर्वाग्रह कम होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: न्यूजीलैंड जैसे देशों में भेदभाव विरोधी कड़े कानून हैं, जो दक्षिण एशियाई लोगों सहित अन्य प्रवासियों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करते हैं।
  • मीडिया और नेतृत्व में प्रतिनिधित्व बढ़ाना: फिल्मों, टीवी और नेतृत्व की भूमिकाओं में विविध प्रतिनिधित्व से वंचित समुदायों का बेहतर सामाजिक अंगीकरण होता है।
  • समुदायों को नस्लवाद के बारे में शिक्षित करना: स्कूली पाठ्यक्रम में सांस्कृतिक संवेदनशीलता और नस्लवाद की ऐतिहासिक उत्पत्ति पर शिक्षा की शुरुआत करने से अचेतन पूर्वाग्रह को कम किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: कनाडा के स्कूलों में उपनिवेशवाद और बहुसंस्कृतिवाद के बारे में पढ़ाते हैं, जिससे स्वदेशी और अप्रवासी आबादी के लिए सहानुभूति को बढ़ावा मिलता है।
  • समुदाय-आधारित पहलों की सहायता करना: वंचित समूहों को सशक्त बनाने वाली जमीनी स्तर की पहलों में निवेश करना उनकी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखता है और उन्हें समाज में एकीकृत करता है। 
    • उदाहरण के लिए: SEWA इंटरनेशनल जैसे गैर सरकारी संगठन समावेशिता और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देते हुए दक्षिण एशियाई लोगों का समर्थन करने के लिए वैश्विक स्तर पर काम करते हैं।

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वास्तव में समावेशी समाज को सुगम बनाने के लिए ऐसे प्रयास किये जाने चाहिए जिनमें शिक्षा, खुली बातचीत और नीति सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। विविधता को अपनाते हुए सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा देना, अंतर को कम कर सकता है। सहानुभूति और जागरूकता, सूक्ष्म नस्लवाद को खत्म करने की कुंजी है, यह सुनिश्चित करते हुए कि हम एक एकीकृत भविष्य की ओर अग्रसर हों जहां हर किसी की पहचान का सम्मान किया जाये।

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