उत्तर:
दृष्टिकोण:
- परिचय: दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण की आकांक्षा का एक सिंहावलोकन प्रस्तुत करें।
- मुख्य विषयवस्तु:
- क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को सुविधाजनक बनाने में भारत की आर्थिक शक्ति और उसकी क्षमता पर चर्चा करें।
- भारत की क्षेत्रीय संलग्नताएँ, सकारात्मक पहल और चुनौतियाँ, आर्थिक एकीकरण की संभावनाओं को कैसे प्रभावित करती हैं, इस पर गहराई से चर्चा करें।
- बाहरी भू-राजनीतिक कारकों की भूमिका पर चर्चा करें, विशेष रूप से क्षेत्रीय गतिशीलता पर चीन और अमेरिका जैसी महान शक्तियों के प्रभाव पर।
- निष्कर्ष: दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को प्रभावित करने वाले आंतरिक और बाहरी कारकों के मिश्रण का सारांश प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष निकालें।
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परिचय:
क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण दक्षिण एशियाई देशों के लिए एक महत्वपूर्ण लक्ष्य रहा है, इस संदर्भ में देखा जाये तो सार्क (क्षेत्रीय सहयोग के लिए दक्षिण एशियाई संघ) और हाल ही में, बिम्सटेक (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल) की छत्रछाया में यह साकार हुआ है। हालाँकि, भारत के आर्थिक प्रक्षेप पथ, उसके द्विपक्षीय संबंधों और वैश्विक भू-राजनीतिक गतिशीलता के संगम ने इस उद्देश्य को प्रभावित किया है।
मुख्य विषयवस्तु:
भारत की आर्थिक वृद्धि:
- आर्थिक उभार:
- भारत के 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है, जो दक्षिण एशियाई आर्थिक एकीकरण के लिए महत्वपूर्ण है।
- इसका मजबूत सेवा क्षेत्र और बढ़ती विनिर्माण क्षमता इसके पड़ोसियों के लिए अपार बाजार की संभावना प्रदान करती है।
- डिजिटल क्रांति:
- ‘डिजिटल इंडिया‘ जैसी पहल के साथ, सीमा पार ई-कॉमर्स और डिजिटल एकीकरण की संभावना है।
- निवेश की क्षमता:
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे जैसी परियोजनाओं में भारत का निवेश अंतर-क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा दे सकता है।
पड़ोसी देशों के साथ जुड़ाव:
- व्यापार के लिए पहल:
- बीबीआईएन (बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल) पहल जैसे प्रयासों का उद्देश्य उप-क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है, जो व्यापक आर्थिक एकीकरण के लिए अग्रदूत के रूप में काम कर सकता है।
- कनेक्टिविटी परियोजनाएँ:
- म्यांमार में सड़क मार्ग या श्रीलंका में बंदरगाह जैसी ढांचागत परियोजनाओं में भारत की भागीदारी क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाती है।
- द्विपक्षीय तालमेल में कमी:
- भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के कारण इन दोनों के रिश्ते आर्थिक बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं।
- दोनों देशों के बीच व्यापार न्यूनतम रहा है, जिसके कारण दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे कम एकीकृत क्षेत्रों में से एक बना हुआ है।
- बिम्सटेक की ओर झुकाव:
- सार्क की घटती प्रासंगिकता को देखते हुए, क्षेत्रीय सहयोग के लिए बिम्सटेक(BIMSTEC) नयी ऊर्जा प्रदान करता है। गौरतलब है कि भारत का बिम्सटेक के प्रति झुकाव आर्थिक सहयोग के लिए पड़ोसियों के साथ जुड़ने की एक नई रणनीति का संकेत देता है।
महान शक्ति प्रतिद्वंद्विता का प्रभाव:
- चीन की बेल्ट एंड रोड पहल:
- चीन की बेल्ट एंड रोड पहल कई दक्षिण एशियाई देशों को जोड़ती है, जिससे सहयोग और निर्भरता की समानांतर गतिशीलता पैदा होती है।
- भारत संप्रभुता संबंधी चिंताओं के कारण चीन की इस महत्वाकांक्षी पहल से सावधान रहता है, विशेषकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से गुजरने के कारण।
- अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति:
- चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ भारत को एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देखने वाले अमेरिका ने दक्षिण एशियाई आर्थिक एकीकरण में रुचि दिखाई है।
- अमेरिका-भारत साझेदारी क्षेत्रीय कनेक्टिविटी परियोजनाओं को उत्प्रेरित कर सकती है।
- भू-आर्थिक प्रतिस्पर्धा:
- दक्षिण एशिया में वैश्विक शक्तियों के बीच रस्साकशी अक्सर भू-आर्थिक आयाम ले लेती है।
- श्रीलंका में हंबनटोटा जैसे बंदरगाहों के लिए प्रतिद्वंद्विता इसका प्रमाण है।
- बढ़ती व्यापार मात्रा के बावजूद, अपने पड़ोस के साथ भारत का व्यापार इसके वैश्विक व्यापार के लगभग 1.7% और 3.8% के बीच बना हुआ है।
निष्कर्ष:
दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण की संभावनाएं आंतरिक विकास प्रक्षेप पथ, द्विपक्षीय संबंधों और व्यापक वैश्विक भू-राजनीतिक बदलावों के नाजुक संतुलन से प्रभावित होती हैं। अब जबकि भारत की आर्थिक गतिशीलता अवसर तो प्रदान करती है किन्तु लंबे समय से चले आ रहे क्षेत्रीय तनाव और महान शक्ति प्रतिद्वंद्विता की छाया परिदृश्य को जटिल बनाती है। एक एकीकृत दक्षिण एशिया के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों स्तरों पर रणनीतिक कूटनीति और एक समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो क्षणिक भू-राजनीतिक झड़पों से परे हो।
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