Q. "महासागर एक वैश्विक साझा संसाधन है- यह हम सभी का है।" इस संदर्भ में, महासागर को साझा संसाधन के रूप में मानने के पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक आयामों पर चर्चा कीजिए। वैश्विक शासन तंत्र महासागरीय संसाधनों का न्यायसंगत और सतत उपयोग कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं?(15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • महासागर को एक साझा संसाधन के रूप में मानने के पर्यावरणीय आयामों पर चर्चा कीजिए।
  • महासागर को एक साझा संसाधन के रूप में मानने के भू-राजनीतिक आयामों पर चर्चा कीजिए।
  • परीक्षण कीजिए कि वैश्विक शासन तंत्र किस प्रकार समुद्री संसाधनों का न्यायसंगत और सतत् उपयोग सुनिश्चित कर सकता है।

उत्तर

पृथ्वी की सतह के 70% से अधिक हिस्से पर विस्तारित महासागर, जलवायु विनियमन, जैव विविधता और मानव आजीविका के लिए एक वैश्विक साझा संसाधन है। भारत का विजन 2030 व्यापार , ऊर्जा और पर्यावरणीय संधारणीयता में महासागर की भूमिका को मान्यता देते हुए, नीली अर्थव्यवस्था को एक प्रमुख विकास स्तंभ के रूप में महत्त्व देता है।

महासागर को साझा संसाधन मानने के पर्यावरणीय आयाम

  • समुद्री प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण: समुद्र को प्लास्टिक प्रदूषण, तेल रिसाव और रासायनिक अपवाह से खतरा है, जिससे आवास नष्ट हो रहे हैं और समुद्री जीवन को नुकसान हो रहा है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत के राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र ने पूर्वी तट पर उच्च माइक्रोप्लास्टिक सांद्रता की सूचना दी है, जिससे समुद्री जैव विविधता प्रभावित हो रही है।
  • अत्यधिक मत्स्यन और जैव विविधता ह्वास: मत्स्यन की गैर-संवहनीय प्रथाओं के कारण मछली भंडार में कमी आई है और समुद्री खाद्य शृंखलाओं में व्यवधान उत्पन्न हुआ है। 
    • उदाहरण के लिए: वैश्विक मछली भंडार का एक-तिहाई से अधिक अत्यधिक दोहन किया जा रहा है, जिससे तटीय समुदायों के लिए खाद्य सुरक्षा को खतरा है।
  • जलवायु परिवर्तन और महासागर अम्लीकरण: CO2 उत्सर्जन में वृद्धि के परिणामस्वरूप महासागर अम्लीकरण होता है, जिससे प्रवाल भित्तियाँ और शेलफिश की आबादी प्रभावित होती है। 
    • उदाहरण के लिए: समुद्री कानून के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को समुद्री प्रदूषण के रूप में मान्यता दी और देशों से महासागरों पर जलवायु प्रभावों को कम करने का आग्रह किया।
  • समुद्र-स्तर में वृद्धि और तटीय अपरदन: ध्रुवीय बर्फ पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ता है, जिससे तटीय अपरदन और आवास ह्वास होता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने पूर्वी तट पर गंभीर तटरेखा परिवर्तनों की सूचना दी, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और समुदाय प्रभावित हुए।
  • प्रवाल विरंजन और आवास ह्वास: समुद्र का तापमान बढ़ने से प्रवाल विरंजन की घटना होती है, जिससे जैव विविधता और मत्स्य संसाधन कम होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: सर्वेक्षणों में मन्नार की खाड़ी में व्यापक कोरल ब्लीचिंग देखी गई, जिससे समुद्री जीवन और आजीविका प्रभावित हुई।

महासागर को साझा संसाधन मानने के भू-राजनीतिक आयाम

  • समुद्री सीमा विवाद: समुद्री सीमाओं पर परस्पर विरोधी दावों से भू-राजनीतिक तनाव उत्पन्न हो सकता है और सहकारी महासागर प्रबंधन में बाधा उत्पन्न हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत और बांग्लादेश ने वर्ष 2014 में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के माध्यम से अपने समुद्री सीमा विवाद को सुलझाया,  जिससे शांतिपूर्ण समाधान की एक मिसाल कायम हुई।
  • नौवहन की स्वतंत्रता और सुरक्षा: वैश्विक व्यापार और सुरक्षा के लिए नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है, जिस हेतु सहयोगात्मक अंतरराष्ट्रीय प्रयासों की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने और अंतरराष्ट्रीय कानून को बनाए रखने के लिए चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (QUAD) नौसैनिक अभ्यास में भाग लेता है।
  • संसाधन प्रतिस्पर्द्धा और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZs): राष्ट्र, EEZs के भीतर समुद्री संसाधनों तक पहुँच के लिए प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, जिसके लिए समान साझाकरण तंत्र की आवश्यकता होती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत के डीप ओशन मिशन का उद्देश्य अपने EEZ के भीतर समुद्री संसाधनों का सतत् रूप से अन्वेषण और उपयोग करना है।
  • अवैध, अघोषित और अनियमित (IUU) मत्स्यन: IUU मत्स्यन तटीय क्षेत्रों में संरक्षण प्रयासों और आर्थिक स्थिरता को कमजोर करता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत निगरानी और सूचना साझाकरण के माध्यम से IUU मत्स्यन से निपटने के लिए इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) के सदस्यों के साथ सहयोग करता है।
  • सामरिक सैन्य उपस्थिति: सामरिक समुद्री क्षेत्रों में नौसेना बलों की तैनाती, भू-राजनीतिक गतिशीलता और समुद्री संसाधनों तक पहुँच को प्रभावित करती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत की सागरमाला परियोजना बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे को बढ़ाती है, जिससे हिंद महासागर क्षेत्र में इसकी सामरिक उपस्थिति मजबूत होती है।

महासागरीय संसाधनों के न्यायसंगत और सतत् उपयोग के लिए वैश्विक शासन तंत्र

  • संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS): UNCLOS समुद्री गतिविधियों के लिए एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है, जो समुद्री संसाधनों के शांतिपूर्ण उपयोग और संरक्षण को बढ़ावा देता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत ने वर्ष 1995 में UNCLOS की पुष्टि की और अपनी समुद्री नीतियों को अंतरराष्ट्रीय कानून के साथ संरेखित किया।
  • राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जैव विविधता (BBNJ) समझौता: BBNJ समझौते का उद्देश्य संरक्षण और सतत् उपयोग के माध्यम से राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों में समुद्री जैव विविधता की रक्षा करना है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत ने सितंबर 2024 में उच्च सागर संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसे औपचारिक रूप से राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (BBNJ) समझौते के रूप में जाना जाता है ।
  • सतत् विकास लक्ष्य 14 (SDG 14): SDG 14 सतत् विकास के लिए महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और सतत् उपयोग पर केंद्रित है। 
    • उदाहरण के लिए: समुद्री मत्स्य पालन पर भारत की राष्ट्रीय नीति,  SDG 14 के अनुरूप है, जो संधारणीय मत्स्यन प्रथाओं को बढ़ावा देती है।
  • क्षेत्रीय सहयोग तंत्र: क्षेत्रीय निकाय प्रभावी महासागर प्रशासन के लिए पड़ोसी देशों के बीच सहयोग को सुगम बनाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: भारत समुद्री पर्यावरणीय मुद्दों को हल करने के लिए बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) के साथ जुड़ा हुआ है।
  • तीसरा संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (UNOC3): UNOC3 महासागर संरक्षण और सतत् उपयोग पर वैश्विक सहमति के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। 
    • उदाहरण के लिए: 9-13 जून, 2025 को फ्राँस के नाइस(Nice) में होने वाले UNOC3 का उद्देश्य बहुपक्षीय प्रक्रियाओं, वित्तपोषण और ज्ञान प्रसार पर ध्यान केंद्रित करते हुए नाइस ओसियन एक्शन प्लान  को अपनाना है।

महासागर, एक वैश्विक साझा संसाधन है, इसलिए पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिए इसके सामूहिक प्रबंधन की आवश्यकता है। वैश्विक शासन तंत्र को मजबूत करना, क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना और राष्ट्रीय नीतियों को अंतरराष्ट्रीय ढाँचे के साथ जोड़ना, महासागरीय संसाधनों के न्यायसंगत और संधारणीय उपयोग के लिए अनिवार्य है।

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