Q. हाल ही में जारी ‘बीजिंग इंडिया रिपोर्ट’ के संदर्भ में, ग्रामीण भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य, आजीविका और सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन कीजिए। राष्ट्रीय जलवायु अनुकूलन रणनीतियों में लैंगिक संवेदनशीलता को एकीकृत करने के उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • ग्रामीण भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य, आजीविका और सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
  • राष्ट्रीय जलवायु अनुकूलन रणनीतियों में लिंग संवेदनशीलता को एकीकृत करने के उपायों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

जलवायु परिवर्तन भारत में ग्रामीण महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करता है, जो सीमित संसाधनों, सामाजिक मानदंडों और अवैतनिक देखभाल जिम्मेदारियों के कारण बढ़े हुए जोखिमों का सामना करती हैं। 2025 बीजिंग इंडिया रिपोर्ट इन लैंगिक सुभेद्यताओं को उजागर करती है, जो उनके स्वास्थ्य, आजीविका और सुरक्षा को प्रभावित करती है।

ग्रामीण महिलाओं पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

  • प्रजनन और मातृ स्वास्थ्य प्रभाव: जलवायु-प्रेरित कुपोषण और हीट-स्ट्रेस से गर्भावस्था की जटिलताएँ बढ़ जाती हैं, जिससे एनीमिया, समय से पहले हिस्टेरेक्टॉमी, बांझपन और अन्य समस्यायें हो जाती हैं।
    • उदाहरण के लिए: बीजिंग इंडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण महिलाओं को क्रोनिक डिहाइड्रेशन और एनीमिया के कारण हिस्टेरेक्टॉमी का सामना करना पड़ता है।
  • कृषि संबंधी सुभेद्यता: कृषि में मुख्य किसान और मज़दूर होने के कारण महिलाएँ अप्रत्याशित वर्षा, फसल की विफलता और मृदा निम्नीकरण से सीधे तौर पर पीड़ित होती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: बुंदेलखंड में कृषि उत्पादन को प्रभावित करने वाले निरंतर सूखे के कारण महिलाओं को मौसमी बेरोजगारी का सामना करना पड़ता है।
  • गैर-कृषि आय में कमी: हस्तशिल्प, खाद्य प्रसंस्करण और छोटे पैमाने के व्यापार में संलग्न ग्रामीण महिलाओं को जलवायु घटनाओं के कारण आय में भारी कमी का सामना करना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: रिपोर्ट में कहा गया है कि गैर-कृषि क्षेत्रों में महिलाओं को 2023-24 में चरम मौसम के दौरान 33% तक की आय का नुकसान हुआ।
  • लड़कियों में स्कूल छोड़ने की दर: जलवायु संबंधी प्रवास, आर्थिक संकट और लैंगिक पूर्वाग्रह के कारण किशोरियों में स्कूल छोड़ने की दर अधिक है ।
  • स्वदेशी और हाशिए पर स्थित महिलाओं पर असंगत प्रभाव: आदिवासी और दलित महिलाओं को जलवायु परिवर्तन और राहत एवं पुनर्प्राप्ति प्रक्रियाओं में जाति-आधारित बहिष्कार के कारण कई तरह की भेद्यताओं का सामना करना पड़ता है।
    • उदाहरण के लिए: चक्रवात अम्फान (वर्ष 2020) के दौरान, सुंदरबन में दलित महिलाओं ने बताया कि उन्हें सहायता प्राप्त करने में बहुत देर हुई और आश्रय संबंधी निर्णयों से बाहर रखा गया।

जलवायु अनुकूलन रणनीतियों में लैंगिक संवेदनशीलता को एकीकृत करने के उपाय

  • लैंगिक-संवेदनशील नीति नियोजन: जलवायु कार्य योजनाओं में लैंगिक सुभेद्यताओं को स्पष्ट रूप से शामिल किया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: ओडिशा जैसे राज्यों ने जलवायु परिवर्तन पर अपनी राज्य कार्य योजनाओं (SAPCCs) में लैंगिक संकेतकों को शामिल करना शुरू कर दिया है।
  • लैंगिक-विभाजित डेटा संग्रहण: विभिन्न क्षेत्रों और सामाजिक स्तरों पर महिलाओं की आवश्यकताओं के अनुरूप हस्तक्षेप करने के लिए विश्वसनीय डेटा की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिए: पंचायत स्तर पर लैंगिक घटक के साथ जलवायु सुभेद्यता सूचकांक बनाया जाना चाहिए।
  • आर्थिक सशक्तिकरण और वित्तीय समावेशन: जलवायु-अनुकूल कृषि, कृषि-प्रसंस्करण, नवीकरणीय ऊर्जा और हरित नौकरियों में महिलाओं को कौशल प्रदान करना चाहिए। स्थायी आजीविका के लिए स्वयं सहायता समूहों (SHGs) और महिला सहकारी समितियों को बढ़ावा देना चाहिए।
  • ग्रामीण स्वास्थ्य अवसंरचना को सुदृढ़ बनाना: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुँच में सुधार करना चाहिए, विशेषकर जलवायु प्रभावित क्षेत्रों में प्रजनन और मातृ देखभाल के लिए।
  • समावेशी शासन और नेतृत्व: जलवायु संबंधी निर्णय लेने वाली निकायों, स्थानीय आपदा प्रतिक्रिया टीमों और वन प्रबंधन समितियों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: गुजरात में महिलाओं के नेतृत्व वाली पानी समितियों ने विकेंद्रीकृत योजना के माध्यम से सूखे के दौरान सफलतापूर्वक जल प्रबंधन किया है।
  • राष्ट्रीय मिशनों में लिंग को एकीकृत करना: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के अंतर्गत मिशनों में लिंग-विशिष्ट दिशा-निर्देश शामिल किए जाने चाहिए, विशेष रूप से जल, कृषि और ऊर्जा के क्षेत्र में।
    • उदाहरण के लिए: जलवायु-सुभेद्य क्षेत्रों में महिला-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ UJALA (LED लाइटों के लिए) और PMUY (स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन) जैसी योजनाओं का विस्तार करना चाहिए।

बीजिंग इंडिया रिपोर्ट, भारत की जलवायु रणनीति में लैंगिक मुख्यधारा में लाने के लिए एक स्पष्ट आह्वान है। ग्रामीण महिलाओं को, पीड़ित और परिवर्तन के एजेंट दोनों के रूप में, भारत के जलवायु लचीलापन ढाँचे के केंद्र में होना चाहिए। लैंगिक-संवेदनशील दृष्टिकोण न केवल समानता को बढ़ावा देता है बल्कि जलवायु कार्रवाई (SDG-13) और लैंगिक समानता (SDG-5) के SDG लक्ष्यों के साथ संरेखित करते हुए प्रभावी और समावेशी अनुकूलन भी सुनिश्चित करता है।

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