प्रश्न की मुख्य माँग
- चीन और भारत के समक्ष वर्तमान चुनौतियाँ।
- भारत-चीन सीमा गतिरोध का भारत की आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव।
- भारत-चीन सीमा गतिरोध का पड़ोसी कूटनीति पर क्या प्रभाव पड़ा है,इसका उल्लेख कीजिए।
- वर्तमान चुनौतियों के मद्देनजर भारत अपनी कूटनीतिक और रक्षा रणनीतियों को पुनः व्यवस्थित कर रहा है।
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उत्तर
भारत-चीन सीमा गतिरोध भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और पड़ोसियों के साथ कूटनीतिक संबंधों को प्रभावित करता है। भारत को क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने और क्षेत्रीय व वैश्विक गठबंधनों को मजबूत करने के लिए अपनी रक्षा और विदेश नीतियों को समायोजित करना चाहिए।
भारत के लिए जारी चुनौतियाँ
- सीमा पर तनाव और सैन्य गतिरोध: लद्दाख, देपसांग और डोकलाम में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लगातार संघर्ष जारी है, जहां सेनाएं डटी हुई हैं और पूरी तरह से पीछे नहीं हट रही हैं।
- चीन का सैन्य आधुनिकीकरण और तकनीकी विषमता: चीन का बड़ा रक्षा बजट और AI में उसकी प्रगति, साइबर युद्ध और एंटी-सैटेलाइट प्रणालियों में अग्रणी होने के कारण भारत के साथ सैन्य अंतर बढ़ता जा रहा है।
- आर्थिक असमानता और व्यापार असंतुलन: भारत चीन से (वर्ष 2023) 100 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य का आयात करेगा, जिससे व्यापार घाटा बढ़ेगा और प्रमुख क्षेत्रों पर निर्भरता बढ़ेगी।
- महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता और हिंद-प्रशांत सुरक्षा: अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता भारत को प्रभावित करती है। क्वाड गठबंधन के हिस्से के रूप में भारत-अमेरिका संबंध मजबूत हो रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: चीन इंडो-पैसिफिक में समुद्री और क्षेत्रीय मुद्दों पर अपना प्रभुत्व बनाए रखना जारी रखता है, जहाँ भारत के रणनीतिक हित हैं, विशेषकर दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर के संबंध में।
- बहुपक्षीय मंचों की कमियाँ: BRICS, SCO और ASEAN में भागीदारी के बावजूद, भारत चीन का प्रतिकार करने में संघर्ष करता है, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे मंचों पर, जहां चीन के पास वीटो शक्ति है।
भारत-चीन सीमा गतिरोध का भारत की आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव
- बढ़ी हुई सैन्य तैयारी: भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी सेना को मजबूत किया है, जिसके कारण रक्षा व्यय में वृद्धि हुई है, तथा आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से संसाधनों को हटाने की आवश्यकता हुई है।
- उन्नत सैन्य आधुनिकीकरण: भारत अपने सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण कर रहा है, तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर युद्ध और निगरानी पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, लेकिन इससे संसाधनों पर दबाव पड़ेगा और घरेलू सुरक्षा प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- आंतरिक खतरे: चीन पर बढ़ते सैन्य फोकस से आंतरिक सुरक्षा मुद्दों की उपेक्षा का खतरा है और राष्ट्रवादी भावनाओं से प्रेरित घरेलू अशांति बढ़ सकती है।
- सुरक्षा का अतिभार: सीमा पर बढ़ते सैन्यीकरण से सिक्योरिटी फैटीग हो सकती है, जिससे भारत की अन्य आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को दूर करने की क्षमता कमजोर हो सकती है।
भारत-चीन सीमा गतिरोध के पड़ोसी कूटनीति पर प्रभाव
- पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण राजनयिक संबंध: इस गतिरोध ने पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित किया है, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि चीन बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल और मालदीव में अपना प्रभाव मजबूत कर रहा है।
- भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा: श्रीलंका, पाकिस्तान और नेपाल में चीन की भागीदारी भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को कम करती है, विशेष रूप से CPEC और अन्य कूटनीतिक पहलों के माध्यम से।
- सामरिक गठबंधनों पर प्रभाव: बांग्लादेश और म्यांमार के साथ चीन के बढ़ते गठबंधन, अमेरिका और जापान जैसे देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने के भारत के प्रयासों को चुनौती देते हैं।
- ऊर्जा कूटनीति और परमाणु चिंताएँ: परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में चीन की प्रगति और अफ्रीका तथा मध्य पूर्व में इसका प्रभाव इस क्षेत्र में भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए खतरा है।
वर्तमान चुनौतियों के मद्देनजर भारत अपनी कूटनीतिक और रक्षा रणनीतियों को पुनः व्यवस्थित कर रहा है।
- सैन्य आधुनिकीकरण: भारत को साइबर युद्ध, AI, एंटी-सैटेलाइट तकनीक और खुफिया जानकारी में निवेश के साथ आधुनिकीकरण करना चाहिए, साथ ही चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: एंटी-सैटेलाइट (ASAT) सिस्टम, भारत ने अपना पहला सफल ASAT परीक्षण किया, जिससे पृथ्वी की निम्न कक्षा में उपग्रहों को बेअसर करने की इसकी क्षमता का प्रदर्शन हुआ।
- पड़ोसियों के साथ कूटनीतिक जुड़ाव: भारत को चीन का मुकाबला करने के लिए आर्थिक, बुनियादी ढाँचे और सांस्कृतिक पहल के माध्यम से बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहिए।
- अमेरिका और चीन के साथ संबंधों में संतुलन: भारत को कूटनीतिक रूप से चीन के साथ संबंध बनाकर, रक्षा को मजबूत करके और रणनीतिक स्वायत्तता को संरक्षित करके अमेरिका और चीन के साथ संबंधों में संतुलन बनाना चाहिए।
- ऊर्जा सुरक्षा और विविधीकरण: भारत को परमाणु और नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से ऊर्जा स्रोतों में विविधता लानी चाहिए तथा चीन पर निर्भरता कम करने के लिए अफ्रीका, मध्य एशिया और मध्य पूर्व के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहिए।
- भारत-प्रशांत भागीदारी: भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा, व्यापार और चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ अपनी भारत-प्रशांत रणनीति को मजबूत करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (QUAD) में भारत की सक्रिय भागीदारी का उद्देश्य एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत को बढ़ावा देना है।
भारत-चीन सीमा गतिरोध भारत की आंतरिक सुरक्षा, पड़ोस की कूटनीति और वैश्विक रणनीति को प्रभावित करता है। इनसे निपटने के लिए भारत को रक्षा आधुनिकीकरण, पड़ोसियों के साथ कूटनीतिक पुनर्संतुलन, ऊर्जा सुरक्षा विविधीकरण और बहुपक्षीय जुड़ाव को प्राथमिकता देनी चाहिए।इस संदर्भ में एक संतुलित, सतर्क दृष्टिकोण दीर्घकालिक सुरक्षा और क्षेत्रीय प्रभाव सुनिश्चित करेगा।
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