प्रश्न की मुख्य माँग
- एशिया में अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के क्षेत्रीय स्थिरता पर पड़ने वाले प्रभाव का परीक्षण कीजिए।
- एशिया में अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के भारत की सामरिक स्वायत्तता पर पड़ने वाले प्रभावों का परीक्षण कीजिए।
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उत्तर
अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता का क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक शक्ति गतिशीलता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यह प्रतिद्वंद्विता व्यापार, सैन्य गठबंधनों और क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता को प्रभावित करती है। चूँकि दोनों देश एशिया में प्रभुत्व के लिए प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, इसलिए उनकी प्रतिस्पर्द्धा भू-राजनीतिक परिदृश्य को आकार देती है, जिससे शक्ति संतुलन, आर्थिक सहयोग और रणनीतिक स्वायत्तता प्रभावित होती है विशेषकर भारत जैसे देशों के लिए, जिन्हें अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए इस जटिल गतिशीलता को सुलझाना होगा।
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एशिया में अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता का क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रभाव
- सैन्य तनाव: अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य तनाव को बढ़ा दिया है , जिसके कारण दोनों देशों द्वारा सैन्यीकरण और रक्षा खर्च में वृद्धि हुई है।
- उदाहरण के लिए: अमेरिका ने जापान, दक्षिण कोरिया और फिलीपींस के साथ अपने सैन्य गठबंधन को मजबूत किया है, जबकि चीन ने दक्षिण चीन सागर में अपनी उपस्थिति का विस्तार किया है , जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- व्यापार विवाद: अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा के कारण व्यापार युद्ध, टैरिफ और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान उत्पन्न हुए हैं जिससे पड़ोसी देश प्रभावित हुए हैं।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2024 में, राष्ट्रपति बाइडेन ने चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर टैरिफ को 100% तक बढ़ा दिया, और लिथियम-आयन बैटरी पर टैरिफ को 25% तक बढ़ा दिया।
- इंडो-पैसिफिक में प्रभाव: दोनों देश इंडो-पैसिफिक में प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप छद्म संघर्ष और भू-राजनीतिक अस्थिरता जैसी चुनौतियों उत्पन्न हो सकती है।
- उदाहरण के लिए: चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का उद्देश्य इस क्षेत्र में चीनी प्रभाव का विस्तार करना है, जबकि अमेरिका QUAD (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता) जैसी पहलों के साथ एक स्वतंत्र इंडो-पैसिफिक क्षेत्र सुनिश्चित करना चाहता है।
- प्रौद्योगिकी प्रतिस्पर्द्धा: सेमीकंडक्टर, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और 5G तकनीक सहित उच्च तकनीक उद्योगों में प्रतिद्वंद्विता तेज हो रही है, जो वैश्विक नवाचार और सुरक्षा को प्रभावित करती है।
- उदाहरण के लिए : कई पश्चिमी देशों में 5G नेटवर्क से हुआवेई (Huawei) का बहिष्कार अमेरिका-चीन तकनीकी प्रतिद्वंद्विता का प्रत्यक्ष परिणाम है।
- कूटनीतिक संघर्ष: अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता ने क्षेत्र में कूटनीतिक संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है, जिसके कारण देशों को पक्ष लेने या तटस्थता के दबाव से निपटने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
- उदाहरण के लिए: मलेशिया और इंडोनेशिया सहित अन्य आसियान देश अमेरिका और चीनी प्रभाव के बीच फंस गए हैं, जिनमें से कुछ चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजनाओं का समर्थन करते हैं जबकि अन्य दक्षिण चीन सागर जैसे मुद्दों पर अमेरिका के साथ खड़े हैं।
- क्षेत्रीय पुनर्गठन: एशिया के देश अपनी विदेश नीति के रुख में बदलाव कर रहे हैं और आर्थिक या सुरक्षा लाभ प्राप्त करने के लिए दो शक्तियों में से एक के साथ जुड़ रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत ने QUAD और रक्षा समझौतों के माध्यम से अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत किया है, साथ ही व्यापार और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चीन के साथ संबंधों को संतुलित करने की कोशिश की है।
- जलवायु परिवर्तन और वैश्विक सुरक्षा: जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और वैश्विक स्वास्थ्य जैसे वैश्विक मुद्दों पर दोनों शक्तियों की प्रतिस्पर्द्धा, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सीमित करके क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकती है।
एशिया में अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता का भारत की सामरिक स्वायत्तता पर प्रभाव
- संबंधों में संतुलन: भारत को अमेरिका और चीन दोनों के साथ अपने संबंधों में संतुलन बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि दोनों का भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों के लिए रणनीतिक महत्त्व है।
- उदाहरण के लिए: भारत, QUAD के माध्यम से अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करके अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखता है, साथ ही पूर्वी लद्दाख में होने वाले गतिरोध जैसे व्यापार और सीमा मुद्दों को प्रबंधित करने के लिए चीन के साथ कूटनीतिक वार्ता में भी शामिल है ।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता भारत की रक्षा रणनीति को प्रभावित करती है, क्योंकि यह चीन के साथ अपनी सीमाओं पर सुरक्षा चुनौतियों का सामना करता है और अमेरिका के साथ सैन्य सहयोग चाहता है।
- उदाहरण के लिए: भारत और अमेरिका के बीच LEMOA (लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट) पर हस्ताक्ष,र सैन्य सुविधाओं तक पारस्परिक पहुँच को सक्षम बनाता है जिससे भारत को क्षेत्र में चीनी आक्रामकता का मुकाबला करने में मदद मिलती है।
- आर्थिक हित: भारत को दोनों देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करना चाहिए ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध या आर्थिक प्रतिबंधों से बचा जा सके।
- उदाहरण के लिए: भारत को चीन के साथ व्यापार से लाभ होता है विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में, जबकि अमेरिका के साथ अनुकूल व्यापार समझौते भी सुरक्षित होते हैं, जैसे कि भारतीय निर्यात के लिए सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP)।
- भू-राजनीतिक रणनीति: भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का लगातार परीक्षण किया जा रहा है क्योंकि उसे वैश्विक संगठनों और संस्थानों में अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के व्यापक भू-राजनीतिक निहितार्थों को सुलझाना होगा।
- उदाहरण के लिए: भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में सुधारों का आह्वान किया है, जिसका उद्देश्य अमेरिका या चीन का पूरी तरह से पक्ष लिए बिना अपनी स्थिति को मजबूत करना है।
- तकनीकी स्वतंत्रता: अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता ने भारत को 5G, AI और अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अधिक तकनीकी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता के लिए प्रेरित किया है।
- उदाहरण के लिए: भारत ने स्वदेशी तकनीकों जैसे गगनयान मिशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को विकसित करने और चीनी निर्मित घटकों पर निर्भरता कम करने पर ध्यान दिया है।
- क्षेत्रीय सुरक्षा पहल: भारत रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से क्षेत्र में अपनी सुरक्षा स्थिति को मजबूत कर रहा है, साथ ही निर्णय लेने में अपनी स्वायत्तता भी बनाए रख रहा है।
- सॉफ्ट पावर और कूटनीति: भारत क्षेत्रीय स्थिरता और विकास को बढ़ावा देते हुए दोनों शक्तियों के साथ जुड़े रहने के लिए अपने कूटनीतिक लाभ का उपयोग करता है।
- उदाहरण के लिए: बिम्सटेक और सार्क में भारत की सक्रिय भूमिका इसे अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता में शामिल हुए बिना अपने पड़ोसियों के साथ जुड़ने की अनुमति देती है, जिससे क्षेत्र में इसकी रणनीतिक स्वायत्तता बनी रहती है।
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अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता भारत के लिए चुनौतियाँ और अवसर प्रस्तुत करती है क्योंकि वह क्षेत्रीय स्थिरता की जटिलताओं से निपटते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखना चाहता है। भारत को क्षेत्रीय गठबंधनों को मजबूत करते हुए और प्रमुख क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित करते हुए दोनों शक्तियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना जारी रखना चाहिए । यह दृष्टिकोण भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए एशिया में नेतृत्व की भूमिका बनाए रखने में सक्षम बनाएगा ।
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