Q. अनौपचारिक कार्य की विकसित होती प्रकृति के मद्देनजर, भविष्य के लिए तैयार सामाजिक सुरक्षा ढाँचे का प्रस्ताव कीजिए जो समावेशिता और अनुकूलनशीलता सुनिश्चित करता हो। यह भी जाँच कीजिए कि इस तरह के ढाँचे को दीर्घकालिक कार्यान्वयन के लिए वित्तीय रूप से सतत कैसे बनाया जा सकता है। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • अनौपचारिक कार्य की विकासशील प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  • वर्तमान सामाजिक संरक्षण तंत्र में आने वाली बाधाओं का उल्लेख कीजिए।
  • भविष्य के लिए तैयार सामाजिक संरक्षण ढांचे के घटकों का वर्णन कीजिये।
  • राजकोषीय रूप से सतत कार्यान्वयन रणनीति का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

भारत का कार्यबल मुख्य रूप से अनौपचारिक है, जिसमें 91% से अधिक (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, 2023) अनौपचारिक या असंगठित रोजगार में संलग्न हैं। गिग वर्क, प्लेटफार्म लेबर और हाइब्रिड रोज़गार मॉडल के बढ़ने के साथ, भविष्य के लिए तैयार, समावेशी और वित्तीय रूप से व्यवहार्य सामाजिक सुरक्षा प्रणाली एक महत्त्वपूर्ण नीतिगत आवश्यकता है।

अनौपचारिक कार्य की बदलती प्रकृति

  • डिजिटल प्लेटफॉर्म और गिग वर्क का उदय: प्रकृति ऐप-आधारित कार्य (जैसे, जोमैटो, उबर, स्विगी) लचीले वर्क ऑवर  प्रदान करते हैं, लेकिन उनमें रोजगार की सुरक्षा और सामाजिक संरक्षण का अभाव होता है।
    • उदाहरण के लिए: नीति आयोग (वर्ष 2022) के अनुसार, भारत में 7.7 मिलियन से अधिक गिग कर्मचारी हैं, जिनके वर्ष 2030 तक बढ़कर 23.5 मिलियन होने का अनुमान है।
  • औपचारिक नौकरियों के भीतर अनौपचारिकीकरण: यहाँ तक कि औपचारिक उद्यमों में भी, कई भूमिकाएँ (जैसे कॉन्ट्रैक्ट वर्कर, सफाई कर्मचारी, सुरक्षा गार्ड) बिना किसी लाभ के आउटसोर्स की जाती हैं, जिससे औपचारिक और अनौपचारिक कार्य के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है।
  • घर-पर किये  अनौपचारिक कार्य में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी: महामारी के बाद, अधिक महिलाएँ घर-आधारित सूक्ष्म-उद्यमों, डिजिटल बिक्री या फ्रीलांसिंग में संलग्न हुई हैं।
  • हाइब्रिड अनौपचारिक रोजगार: कई श्रमिक अब विभिन्न क्षेत्रों में कई अनौपचारिक कार्यों में संलग्न हैं, जो अक्सर ऑफलाइन और ऑनलाइन नौकरियों का मिश्रण होते हैं।
    • उदाहरण के लिए: एक व्यक्ति दिन में टैक्सी ड्राइवर के रूप में काम कर सकता है और रात में फूड-डिलीवरी कर सकता है – दोनों में कोई औपचारिक नियोक्ता नहीं है।
  • क्षेत्रीय विविधीकरण: अनौपचारिक कार्य अब निर्माणकार्य या कृषि तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि अब यह IT-सक्षम सेवाओं, ई-कॉमर्स, लॉजिस्टिक्स और सामग्री निर्माण तक भी विस्तारित हो गया है।
  • अस्थिर एवं अनिश्चित रोजगार संबंध: आज अनौपचारिक श्रमिक प्रायः बिना किसी स्पष्ट अनुबंध और गैर-निर्धारित वर्क-ऑवर और परिवर्तनशील आय के साथ काम करते हैं, जिससे सामाजिक सुरक्षा और श्रम अधिकारों का प्रवर्तन कठिन हो जाता है।

वर्तमान सामाजिक संरक्षण तंत्र में बाधाएँ

  • विखंडित कल्याण संरचना: भारत की कल्याण प्रणालियाँ कई बोर्डों में बिखरी हुई हैं, जिनके अधिकार क्षेत्र में एक-दूसरे से ओवरलैपिंग है, जिसके कारण अकुशलता और धन का गैर-उपयोग होता है।
  • श्रमिक श्रेणियों के लिए विखंडित नीति: सामाजिक सुरक्षा योजनाएं प्रतिक्रियात्मक रूप से उभरती हैं और अक्सर तभी तैयार की जाती हैं जब गिग वर्क जैसे नए प्रकार के काम व्यापक हो जाते हैं।
    • उदाहरण के लिए: हालांकि गिग श्रमिकों को मान्यता दी जा रही है परंतु घरेलू कामगारों और कचरा बीनने वालों को मुख्यधारा की सुरक्षा से बाहर रखा गया है।
  • जागरूकता का अभाव और डिजिटल विभाजन: कई अनौपचारिक श्रमिक मौजूदा योजनाओं से अनभिज्ञ रहते हैं या डिजिटल पहुंच या साक्षरता की कमी के कारण पंजीकरण में कठिनाई का सामना करते हैं।
  • श्रम संहिताओं का अपर्याप्त कार्यान्वयन: प्रशासनिक देरी और नियमों में स्पष्टता की कमी के कारण सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 कई राज्यों में अपर्याप्त रूप से कार्यान्वित की गई है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2025 के प्रारम्भ तक, लगभग 20 राज्यों ने  सामाजिक सुरक्षा संहिता को पूरी तरह से लागू कर दिया।
  • सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा पहचान का अभाव: विभिन्न लाभों पर नजर रखने के लिए कोई एकल सामाजिक सुरक्षा संख्या या पोर्टेबल अकाउंट नहीं है, जिसके कारण सेवा वितरण खंडित हो जाता है।

भविष्य के लिए तैयार सामाजिक सुरक्षा ढाँचे के घटक

  • सार्वभौमिक, पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा खाते: आधार से जुड़ा एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा खाता (USSA) शुरू किया जाएगा जो नियोक्ताओं और भौगोलिक क्षेत्रों में मोबाइल और पोर्टेबल होगा।
    • उदाहरण के लिए: ई-श्रम पोर्टल के तहत 30 करोड़ से अधिक अनौपचारिक श्रमिकों के लिए इसी तरह की व्यवस्था का संचालन किया जा रहा है।
  • अनिवार्य प्लेटफॉर्म-आधारित अंशदान प्रणाली: डिजिटल प्लेटफॉर्मों को श्रमिक गतिविधि के आधार पर कल्याण कोष में अंशदान करने के लिए कानूनी रूप से अनिवार्य बनाया जाएगा।
  • क्षेत्र-तटस्थ और श्रमिक-केंद्रित डिजाइन: अनौपचारिक कार्य पात्रता को परिभाषित करने में मनमाने भेदभाव (जैसे, गिग बनाम घरेलू कार्य) को समाप्त करना।
    • उदाहरण के लिए: बीड़ी मजदूरों, रेहड़ी-पटरी वालों, कृषि मजदूरों सहित सभी श्रमिकों को एक एकीकृत प्रणाली तक पहुँच मिलनी चाहिए।
  • विकेन्द्रीकृत किन्तु उत्तरदायी कार्यान्वयन: कल्याण बोर्ड के प्रदर्शन के लेखापरीक्षित मानकों को लागू करते हुए, सामाजिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत लचीलेपन के साथ राज्यों को सशक्त बनाना।

वित्तीय रूप से संधारणीय कार्यान्वयन रणनीति

  • प्रगतिशील योगदान के माध्यम से क्रॉस-सब्सिडी: उच्च राजस्व वाले प्लेटफॉर्म (जैसे जोमैटो, अमेजन, फ्लिपकार्ट) सामाजिक सुरक्षा पूल में अधिक योगदान करते हैं; सूक्ष्म और नैनो उद्यमों को श्रेणीबद्ध छूट प्राप्त होती है।
  • मौजूदा कल्याण उपकर का कुशल उपयोग: कल्याण निधियों की जमाखोरी को रोकने के लिए स्पष्ट समयबद्ध उपयोग दिशानिर्देशों के साथ उपकर संग्रह और संवितरण को स्वचालित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: कल्याण बोर्डों के पास अप्रयुक्त उपकर के रूप में 70,744 करोड़ रुपये (RTI के अनुसार) से सार्वभौमिक स्वास्थ्य या पेंशन कवरेज को तत्काल सहायता दी जा सकती है।
  • योजनाओं का युक्तिकरण: ओवरलैप और प्रशासनिक लागत को कम करने के लिए अनावश्यक केंद्रीय और राज्य कल्याण योजनाओं को सुव्यवस्थित और विलयित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: भारत 400 से अधिक केन्द्र प्रायोजित योजनाएं चलाता है- इन्हें ई-श्रम जैसे व्यापक कार्यक्रम के तहत युक्तिसंगत बनाने से दक्षता में सुधार हो सकता है।
  • लीकेज को कम करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: लक्षित वितरण सुनिश्चित करने और धोखाधड़ी को कम करने के लिए आधार-आधारित प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT), UPI-लिंक्ड वॉलेट और ई-श्रम एकीकरण का उपयोग करना चाहिए।
  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) संरेखण: कम्पनियों को उनके CSR दायित्वों का एक हिस्सा अनौपचारिक श्रमिकों के कल्याण कार्यक्रमों के लिए लगाने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: CSR फंड से महिला गिग श्रमिकों और ग्रामीण कारीगरों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों या डिजिटल पहुंच का सह-वित्तपोषण किया जा सकता है।

भारत के अनौपचारिक कार्यबल को एक सार्वभौमिक, पोर्टेबल, तकनीक-संचालित और वित्तीय रूप से व्यवहार्य सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की आवश्यकता है। भविष्य के लिए तैयार ढाँचे के अंतर्गत नौकरी प्रारूपों का अनुमान लगाना चाहिए, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी कर्मचारी पीछे न छूटे, और सभी के लिए सम्मान, सुरक्षा और अवसर को बढ़ावा मिले

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