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Q. हाल ही में चाइल्ड पोर्नोग्राफ्री के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में, भारत में बाल संरक्षण से संबंधित विकसित कानूनी ढाँचे का विश्लेषण कीजिये। न्यायिक हस्तक्षेप बाल अधिकारों को मजबूत करने में कैसे योगदान करते हैं? (15 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चाइल्ड पोर्नोग्राफी के संदर्भ में हाल ही में आए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में भारत में बाल संरक्षण से संबंधित विकसित विधिक ढाँचे का विश्लेषण कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि न्यायिक हस्तक्षेप बाल अधिकारों को मजबूत करने में किस प्रकार योगदान देते हैं।

 

उत्तर:

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ कानूनों को मज़बूत करते हुए एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है। इस निर्णय के अनुसार ऐसी आपतिजनक सामग्री देखना, रखना या रिपोर्ट न करना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत दंडनीय है, भले ही सामग्री शेयर न की गई हो। यह निर्णय बाल शोषण को संबोधित करने और बच्चों के अधिकारों के संरक्षण में व्यक्तियों की जवाबदेही को व्यापक बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण  कदम को दर्शाता है।

भारत में बाल संरक्षण से संबंधित विकसित हो रहा कानूनी ढाँचा 

  • POCSO अधिनियम  की धारा 15 का विस्तार: उच्चतम न्यायलय के निर्णय ने धारा 15  का विस्तार किया है, जो अब चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी को देखने या रखने पर भी सजा का प्रावधान करता है। पूर्व में यह केवल चाइल्ड पोर्नोग्राफी शेयर करने पर दंड का प्रावधान था।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2019 के संशोधन में केवल चाइल्ड पोर्नोग्राफी को प्रसारित या प्रदर्शित करने के इरादे से संग्रहीत करने पर दंड की शुरुआत की गई।
  • रचनात्मक आधिपत्य (Constructive Possession) का परिचय: न्यायालय ने रचनात्मक आधिपत्य को शामिल करने के लिए आधिपत्य की परिभाषा को व्यापक बनाया, जिसमें व्यक्तियों को ऐसी सामग्री को डाउनलोड किए बिना केवल देखने के लिए भी उत्तरदायी ठहराया गया। 
    • उदाहरण के लिए : कोई व्यक्ति बिना स्टोर किए ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफिक वीडियो देखता है, तो भी उसे अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  • छोटे अपराध: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 15 में छोटे अपराध भी शामिल हैं, जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी को संग्रहीत करने या देखने जैसी गतिविधियों को बड़े अपराध करने की प्रारंभिक अवस्था के रूप में माना जाता है। 
    • उदाहरण के लिए : चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने की सूचना न देना भी अब दंडनीय अपराध माना जाता है।
  • CSEAM में शब्दावली परिवर्तन : सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के कानूनों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाते हुए ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ का नाम बदलकर बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री (Child Sexual Exploitative and Abuse Material) करने का सुझाव दिया।
  • रिपोर्टिंग दायित्व का परिचय : इस निर्णय में यह अनिवार्य किया गया है, कि व्यक्तियों को चाइल्ड पोर्नोग्राफी के किसी भी मामले की रिपोर्ट करनी होगी, जिससे जवाबदेही केवल उन लोगों तक ही सीमित नहीं रह जाएगी जो सामग्री को शेयर या संग्रहीत करते हैं।
  • ऑनलाइन पोर्नोग्राफी देखने को अपराध के रूप में मान्यता : न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि  चाइल्ड पोर्नोग्राफी को ऑनलाइन देखना भी अपराध है, जिससे बाल शोषण के खिलाफ डिजिटल सुरक्षा उपायों को मजबूती मिली है।
  • कठोर जाँच प्रक्रिया : इस निर्णय में कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा मेन्स रीआ (mens rea) (इरादे) की गहन जाँच करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक मामले की गंभीरता की पूरी तरह से जाँच की गई है।

बाल अधिकारों को मजबूत करने में योगदान देने वाले न्यायिक हस्तक्षेप

  • कानूनी जवाबदेही का दायरा बढ़ाना: हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले जैसे न्यायिक हस्तक्षेप जवाबदेही को बढ़ाते हैं, तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी के निष्क्रिय उपभोग को भी दंडित किया जाए।
  • समान कानूनी परिभाषाएँ सुनिश्चित करना: बाल संरक्षण से संबंधित कानूनी परिभाषाओं को मानकीकृत करने में न्यायालय महत्त्वपूर्ण  भूमिका निभाते हैं, जैसे कि ‘चाइल्ड  पोर्नोग्राफ़ी’ से CSEAM में बदलाव की सिफारिश करना । 
    • उदाहरण के लिए : यह परिवर्तन सुनिश्चित करता है, कि कानून, बाल यौन शोषण की गंभीरता को प्रतिबिंबित करता है।
  • रिपोर्टिंग तंत्र को मजबूत बनाना: चाइल्ड पोर्नोग्राफी की रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाकर, न्यायिक हस्तक्षेप बच्चों को दुर्व्यवहार से बचाने की समाज की जिम्मेदारी को मजबूत करता है।
  • राष्ट्रीय कानूनों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना : न्यायिक हस्तक्षेप ,भारत के कानूनी ढाँचे को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने में मदद करते हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर बाल अधिकारों की सुरक्षा में सुधार होता है। 
    • उदाहरण के लिए : कानूनी शब्दावली में बदलाव की सिफारिशें वैश्विक बाल संरक्षण मानदंडों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
  • समाज की नैतिक जिम्मेदारी को सुदृढ़ बनाना: न्यायिक निर्णय बच्चों की सुरक्षा में सामाजिक भूमिका पर जोर देते हैं, तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि समाज को ऐसे कृत्यों पर कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए जवाबदेह ठहराए जाएँ।
  • भविष्य के बाल संरक्षण कानूनों के लिए मिसालें : इस तरह के न्यायिक मध्यक्षेप महत्त्वपूर्ण मिसाल कायम करते हैं, जिससे भविष्य में बच्चों को शोषण से बचाने के लिए कानून बनाने का मार्ग प्रशस्त होता है। 

जवाबदेही के दायरे को व्यापक बनाकर, कानूनी शब्दावली को फिर से परिभाषित करके, और सख्त रिपोर्टिंग दायित्वों को अनिवार्य करके, यह निर्णय बच्चों की सुरक्षा में समाज की भूमिका को मजबूत करता है। इस तरह के न्यायिक मध्यक्षेप बाल अधिकारों को मजबूत करने और सुभेद्य व्यक्तियों के लिए एक सुरक्षित, अधिक जिम्मेदार समाज सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण  हैं ।

 

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