उत्तर:
प्रश्न का समाधान कैसे करें
- भूमिका
- द्वितीय विश्व युद्ध में वैश्विक दक्षिण देशों के बारे में संक्षेप में लिखें।
- मुख्य भाग
- लिखें कि द्वितीय विश्व युद्ध में वैश्विक दक्षिण देशों की भागीदारी ने संघर्षों में कैसे योगदान दिया।
- लिखिए कि द्वितीय विश्व युद्ध में वैश्विक दक्षिण देशों की भागीदारी ने किस प्रकार से युद्धोपरांत अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आकार दिया।
- निष्कर्ष
- इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।
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भूमिका
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान, वैश्विक दक्षिण देशों ने महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं, उपनिवेशों के रूप में वे औपनिवेशिक शक्तियों को अक्सर अपनी सैन्य जनशक्ति और संसाधन प्रदान करते थे । भारत जैसे कुछ देशों ने मित्र सेनाओं में लाखों की संख्या में शामिल होकर महत्वपूर्ण योगदान में दिया। युद्ध के बाद, इन योगदानों ने स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रेरित किया और वैश्विक भू-राजनीति को नया आकार दिया।
मुख्य भाग
द्वितीय विश्व युद्ध में वैश्विक दक्षिण देशों की भागीदारी ने निम्नलिखित तरीकों से संघर्ष के परिणाम में योगदान दिया:
जनशक्ति और संसाधन: कई वैश्विक दक्षिण राष्ट्र, तब औपनिवेशिक शासन के तहत, अपने उपनिवेशवादियों को काफी जनशक्ति और संसाधन प्रदान करते थे। उदाहरण– भारत ने द्वितीय विश्व युद्ध में 2 मिलियन से अधिक सैनिक उपलब्ध कराये।
फ्रंटलाइन कॉम्बैट: उदाहरण के लिए, पश्चिम अफ्रीकी उपनिवेशों के सैनिकों ने बर्मा और भारत में अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जबकि उत्तरी अफ्रीकी सैनिकों ने भूमध्य और उत्तरी अफ्रीकी अभियानों में मित्र देशों और धुरी राष्ट्रों दोनों पक्षों से लड़ाई लड़ी।
- सामरिक स्थल: कई वैश्विक दक्षिण देशों के रणनीतिक स्थलों ने युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उदाहरण के लिए, मिस्र की स्वेज नहर ,उत्तरी अफ्रीका में ब्रिटिश आठवीं सेना (British Eighth Army) की आपूर्ति के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग थी।
- प्रतिरोध आंदोलन: धुरी राष्ट्रों के कब्जे वाले कई देशों में, प्रतिरोध आंदोलनों ने युद्ध प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उदाहरण: इंडोनेशिया में, स्थानीय प्रतिरोध सैनिकों और संसाधनों को रोककर सेनानियों ने जापानी सेना को परेशान कर दिया ।
- ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करना: वैश्विक दक्षिण देशों में ख़ुफ़िया नेटवर्क ने मित्र राष्ट्रों को महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की। बर्मा में, ब्रिटिश और भारतीय खुफिया संग्रहकर्ताओं की “वी फोर्स” ने जापानी सेना की गतिविधियों पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।
द्वितीय विश्व युद्ध में वैश्विक दक्षिण देशों की भागीदारी ने युद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को किस प्रकार आकार दिया
- उपनिवेशीकरण: द्वितीय विश्व युद्ध में वैश्विक दक्षिण देशों द्वारा निभाई गई भूमिका ने उन्हें अपनी शक्ति और महत्व का एहसास कराया, साथ ही यूरोपीय शक्तियों के कमजोर होने से उनकी स्वतंत्रता में मदद मिली। भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों को युद्ध के तुरंत बाद स्वतंत्रता मिल गई।
- नए राष्ट्रों का उद्भव: उपनिवेशवाद से मुक्ति की लहर के कारण कई नए राष्ट्रों का उदय हुआ, विशेषकर अफ्रीका और एशिया में । इन राष्ट्रों ने भू-राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया और शक्ति संतुलन में बदलाव में योगदान दिया।
- शीत युद्ध की गतिशीलता: नव स्वतंत्र राष्ट्रों के उद्भव ने शीत युद्ध की गतिशीलता को प्रभावित किया। अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ने वैश्विक शक्ति गतिशीलता को प्रभावित करते हुए इन देशों को अपने प्रभाव क्षेत्र में लाने की कोशिश की।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) का निर्माण: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, कई वैश्विक दक्षिण देशों ने खुद को शीत युद्ध के किसी भी शक्ति गुट के साथ जुड़ने से बचने की कोशिश की। उन्होंने विकास और शांति बनाए रखने के लिए स्वतंत्र रास्ते तलाशते हुए एनएएम का गठन किया।
- संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता: कई नव स्वतंत्र राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र में शामिल हुए, और इस अंतर्राष्ट्रीय निकाय के विकास में योगदान दिया। उनके समावेशन से वैश्विक निर्णयन प्रक्रिया में विविध दृष्टिकोण आए और अधिक संतुलित प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिला।
- मानवाधिकार संबंधी विमर्श: युद्ध और औपनिवेशिक शासन के दौरान वैश्विक दक्षिण देशों के अनुभवों ने इन विमर्शों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया, जिसके परिणामस्वरूप 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को अपनाया गया।
- आर्थिक पुनर्गठन: औपनिवेशिक अर्थव्यवस्थाओं के अंत के कारण विश्व अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन हुआ। वैश्विक दक्षिण देशों ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, विकास रणनीतियों और वैश्विक आर्थिक नीति चर्चाओं को प्रभावित करते हुए विभिन्न आर्थिक मॉडल अपनाए । उदाहरण- चीन का ग्रेट लीप फॉरवर्ड।
निष्कर्ष
द्वितीय विश्व युद्ध में वैश्विक दक्षिण देशों की भागीदारी न केवल संघर्षों के लिए महत्वपूर्ण थी, बल्कि 20वीं सदी के मध्य के वैश्विक परिवर्तनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए, बाद की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को भी महत्वपूर्ण रूप से आकार दिया।
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