Q. आयकर विधेयक, 2025 प्रशासनिक दक्षता और नागरिकों के अधिकारों के बीच तनाव को दर्शाता है। आलोचनात्मक रूप से जाँच कीजिए कि भारत में राजकोषीय कानून किस प्रकार राजस्व संग्रह को गोपनीयता संबंधी चिंताओं, न्यायिक निरीक्षण और सुशासन के सिद्धांतों के साथ संतुलित करता है। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • आयकर विधेयक, 2025 किस प्रकार प्रशासनिक दक्षता और नागरिक अधिकारों के बीच तनाव को उजागर करता है, इस पर प्रकाश डालिये‌
  • परीक्षण कीजिए कि भारत में राजकोषीय विधान किस प्रकार राजस्व संग्रहण को गोपनीयता संबंधी चिंताओं, न्यायिक निगरानी और सुशासन के सिद्धांतों के साथ संतुलित करता है।
  • भारत में राजस्व संग्रहण को गोपनीयता संबंधी चिंताओं, न्यायिक निगरानी और सुशासन के सिद्धांतों के साथ संतुलित करने के लिए राजकोषीय कानून की कमियों का परीक्षण कीजिए।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

आयकर सरकारी राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है, जो सार्वजनिक सेवाओं और विकास को वित्तपोषित करता है। हालाँकि, प्रशासनिक दक्षता को नागरिकों के अधिकारों के साथ संतुलित करना एक चुनौती बनी हुई है। आयकर विधेयक, 2025 सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं का प्रस्ताव करता है लेकिन गोपनीयता, उचित प्रक्रिया और मनमाने कराधान के संबंध में चिंताएँ बनी हुई हैं।

आयकर विधेयक, 2025 में प्रशासनिक दक्षता और नागरिक अधिकारों के बीच तनाव

  • निरीक्षण संबंधी  शक्तियाँ: यह विधेयक कर अधिकारियों को न्यायिक निरीक्षण के बिना डिजिटल रिकॉर्ड का निरीक्षण करने के लिए व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है  जिससे गोपनीयता के अधिकार और उचित प्रक्रिया खतरे में पड़ जाती है।
    • उदाहरण के लिए: न्यायमूर्ति केएस पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने गोपनीयता को मौलिक अधिकार के रूप में बरकरार रखा  लेकिन विधेयक के प्रावधान कर अधिकारियों को इस मिसाल का उल्लंघन करते हुए एक्सेस कोड को ओवरराइड करने की अनुमति देते हैं।
  • कानूनी अस्पष्टताएँ: सरलीकरण के दावों के बावजूद, विधेयक में जटिल कानूनी शर्तें बरकरार रखी गई हैं, जिससे कर कानून अप्राप्य हो गए हैं और मुकदमेबाजी का जोखिम बढ़ गया है।
  • स्पष्ट मानदंड के बिना पुनर्मूल्यांकन: यह विधेयक एक अच्छी तरह से परिभाषित “रीजन टू बिलीव” मानक के बजाय “सूचना ” के आधार पर पुनर्मूल्यांकन की अनुमति देता है, जिससे विवेकाधीन शक्ति बढ़ जाती है।
    •  उदाहरण के लिए: पहले, “रीजन टू बिलीव वाक्यांश के कारण अत्यधिक मुकदमेबाजी हुई, जिसके कारण 2021 में संशोधन किया गया, लेकिन इस विधेयक में अभी भी “सूचना” की स्पष्ट परिभाषा का अभाव है ।
  • पुराने कानून का संदर्भ बरकरार रखना: विधेयक में 1961 के अधिनियम के प्रावधानों का संदर्भ जारी रखा गया है, जिससे अनुपालन बोझिल हो गया है और पारदर्शिता कम हो गई है।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान की अनदेखी: विधेयक मध्यस्थता या त्वरित विवाद समाधान को प्राथमिकता नहीं देता है, जिससे करदाताओं पर मुकदमेबाजी का बोझ बढ़ जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: U.K और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में कर न्यायाधिकरण हैं जो विवादों को कुशलतापूर्वक संभालते हैं, लेकिन भारत अभी भी लंबी अदालती लड़ाइयों पर निर्भर है।

राजस्व संग्रह को गोपनीयता, न्यायिक निगरानी और सुशासन के साथ संतुलित करना

  • कर संबंधी कार्रवाइयों की न्यायिक समीक्षा: न्यायालयों ने निरंतर रूप से अत्यधिक कर शक्तियों की जाँच की है, तथा यह सुनिश्चित किया है कि कार्रवाइयां वैध कानूनी आधारों पर आधारित हों।
  • गोपनीयता का संवैधानिक संरक्षण: भारतीय न्यायालयों ने निर्णय दिया है कि कर जाँच में गोपनीयता का सम्मान किया जाना चाहिए तथा मनमानी तलाशी को सीमित किया जाना चाहिए।
  • करदाताओं के अधिकार और पारदर्शिता: कर सुधारों ने गैर-भेदभावपूर्ण और जवाबदेह कर प्रशासन सुनिश्चित करने के लिए फेसलेस असेसमेंट जैसे उपाय पेश किए हैं। 
    • उदाहरण के लिए: फेसलेस असेसमेंट स्कीम (2020) ने करदाताओं और अधिकारियों के बीच सीधे संपर्क को खत्म करके उत्पीड़न को कम किया।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र: मुकदमेबाजी को कम करने के लिए, भारत ने कर विवाद निपटान के लिए विवाद से विश्वास जैसे तंत्र को अपनाया है। 
    • उदाहरण के लिए: विवाद से विश्वास योजना (2020) ने लगभग 1.48 लाख लंबित कर मामलों को निपटाने में मदद की, जिससे विवाद का तेजी से समाधान सुनिश्चित हुआ।
  • कर कानूनों की संसदीय जाँच: सरकार को संसद के समक्ष नए कर प्रावधानों को उचित ठहराना चाहिए, ताकि राजकोषीय कानून में जाँच और संतुलन सुनिश्चित हो सके। 
    • उदाहरण के लिए: वस्तु एवं सेवा कर (GST) परिषद नियमित रूप से उद्योग की चिंताओं और राजस्व आवश्यकताओं पर विचार करते हुए GST दरों की समीक्षा करती है।

भारत में राजस्व संग्रह, गोपनीयता, न्यायिक निगरानी और सुशासन के बीच संतुलन बनाने में राजकोषीय कानून की कमियाँ

  • जाँच एजेंसी पर कमजोर न्यायिक निगरानी: कर अधिकारियों के पास सीमित न्यायिक जाँच के साथ व्यापक तलाशी और जब्ती शक्तियाँ हैं, जिससे दुरुपयोग का जोखिम है। 
    • उदाहरण के लिए: आयकर अधिनियम, 1961 , “रीजन टू बिलीव” के आधार पर तलाशी की सुविधा प्रदान करता है लेकिन अदालतों ने इसकी सीमाओं को परिभाषित करने के लिए संघर्ष किया है, जिसके कारण मनमाने ढंग से छापे मारे गए हैं।
  • कर कानूनों में अस्पष्टता: कर संहिता जटिल बनी हुई है जिसमें निरंतर संशोधन और अस्पष्ट प्रावधान हुये हैं, जिससे अनिश्चितता और मुकदमेबाजी होती है। 
    • उदाहरण के लिए: पूर्वव्यापी कराधान नीति (2012) के कारण वोडाफोन और केयर्न एनर्जी मामलों सहित बड़े विवाद हुए जिससे विदेशी निवेश हतोत्साहित हुआ।
  • अत्यधिक कार्यकारी विवेकाधिकार : पुनर्मूल्यांकन और छूट सहित कई कर-संबंधी निर्णय नौकरशाही विवेकाधिकार पर निर्भर करते हैं, जिससे पक्षपात और भ्रष्टाचार की गुंजाइश बनती है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2021 के बाद आयकर विभाग की पुनर्मूल्यांकन शक्तियाँ दुरुपयोग के खिलाफ़ मज़बूत सुरक्षा उपायों के बिना 10 साल के लिए मामलों को फिर से खोलने की अनुमति देती हैं ।
  • कर प्रशासन में सीमित पारदर्शिता: कर छूट, मूल्यांकन और अपील की प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता का अभाव है, जिससे करदाताओं का भरोसा कम होता है। 
    • उदाहरण के लिए: चुनावी बॉन्ड योजना ने कर लाभ के साथ गुमनाम दान की अनुमति दी, जिससे अपारदर्शी राजनीतिक फंडिंग और पक्षपात के बारे में चिंताएँ बढ़ गईं।
  • विवाद समाधान में अक्षमता: भारत में कर मुकदमेबाजी का लंबित बोझ बहुत बड़ा है, जिसमें मामले सालों से लंबित हैं, जिससे न्याय में देरी हो रही है और अदालतों पर बोझ बढ़ रहा है। 
    • उदाहरण के लिए: न्यायाधिकरणों, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में 4.83 लाख से अधिक प्रत्यक्ष कर मामले लंबित हैं, जिससे राजस्व प्राप्ति धीमी हो रही है।

भारत में बेहतर राजकोषीय कानून के लिए आगे की राह 

  • सशक्त न्यायिक निगरानी: संवैधानिक अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कर तलाशी और जब्ती के लिए अनिवार्य न्यायिक समीक्षा लागू की जाए।
  • कर कानूनों को सरल बनाना: कानूनी शब्दावली को कम करना, पुराने प्रावधानों को हटाना और करदाताओं की बेहतर समझ के लिए सरल भाषा में प्रारूप  तैयार करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: प्रत्यक्ष कर संहिता (DTC) प्रस्ताव का उद्देश्य कर कानूनों को सरल बनाना था, लेकिन कार्यान्वयन में देरी के कारण भारत में कर ढांचा पुराना हो गया है।
  • प्रशासनिक विवेक को कम करना: मनमानी को कम करने के लिए कर छूट, पुनर्मूल्यांकन और ऑडिट के लिए स्पष्ट, नियम-आधारित मानदंड स्थापित करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: फेसलेस असेसमेंट स्कीम (2020) एक कदम आगे था, लेकिन चयनात्मक लक्ष्यीकरण को रोकने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है।
  • विवाद समाधान तंत्र को बढ़ाना: कर विवादों के लिए मध्यस्थता और निपटान तंत्र का विस्तार करके वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) को मजबूत करना चाहिए
  • कर नीति में पारदर्शिता सुनिश्चित करना: प्रमुख कर परिवर्तनों से पहले सार्वजनिक परामर्श अनिवार्य करना तथा वार्षिक कर नीति समीक्षा शुरू करना।

जैसा कि कौटिल्य ने सलाह दी थी, राजा को करों को मधुमक्खी की तरह इकट्ठा करना चाहिए, बिना फूल को नुकसान पहुँचाए। राजकोषीय दक्षता और नागरिकों के अधिकारों के बीच एक अच्छा संतुलन, एक न्यायपूर्ण कर व्यवस्था की पहचान है। न्यायिक निगरानी, डेटा सुरक्षा ढाँचे और पारदर्शी कर प्रशासन को मजबूत करने से बिना किसी दबाव के अनुपालन सुनिश्चित होगा।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

To Download Toppers Copies: Click here

Aiming for UPSC?

Download Our App

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.