Q. भारत और ईरान के बीच प्राचीन काल से ही घनिष्ठ ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में आए उतार-चढ़ाव को देखते हुए, सामूहिक लक्ष्यों एवं समृद्धि को प्राप्त करने के लिए संबंधों को पुनः स्थापित करने का समय आ गया है। विश्लेषण कीजिये। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक संबंधों पर चर्चा कीजिए।
  • भारत-ईरान संबंधों की उपलब्धियों का परीक्षण कीजिए।
  • भारत-ईरान संबंधों में सीमाओं/चुनौतियों को रेखांकित कीजिए।
  • विश्लेषण कीजिए कि क्या सामूहिक लक्ष्यों और समृद्धि को प्राप्त करने के लिए संबंधों को पुनः स्थापित करने का समय आ गया है।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

भारत और ईरान के बीच सदियों पुराने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध हैं। सशक्त ऊर्जा व्यापार और रणनीतिक सहयोग से भरे हुए इस रिश्ते में उतार-चढ़ाव भी आये हैं, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और भू-राजनीतिक चुनौतियों के कारण। हालाँकि, वर्ष 2024 में 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन सहित कुछ अन्य हालिया बैठकें भारत-ईरान संबंधों में बदलाव की संभावना को रेखांकित करती हैं, जो क्षेत्रीय स्थिरता, ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि जैसे साझा लक्ष्यों पर केंद्रित हैं।

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भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक संबंध

  • प्राचीन सांस्कृतिक संबंध: भारत और ईरान के बीच प्राचीन सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध हैं जिसके अंतर्गत सदियों से ये दोनों देश भाषाई, स्थापत्यकला और धार्मिक प्रभाव साझा करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: मुगल वास्तुकला और उर्दू भाषा में फारसी प्रभाव देखा जा सकता है, जो दोनों क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक विनिमय को दर्शाता है।
  • सिल्क रूट संबंध: सिल्क रूट ने ऐतिहासिक रूप से भारत और ईरान के बीच व्यापार और सांस्कृतिक विनिमय को सुगम बनाया, जिससे इन दोनों देशों के बीच एक गहरा रिश्ता बना।
    • उदाहरण के लिए: ईरानी व्यापारी भारत के साथ मसालों का व्यापार किया करते थे और उनके माध्यम से  फारसी कला और संस्कृति ने भारत में प्रवेश किया।
  • साझा धार्मिक विरासत: दोनों देशों में ऐसे धार्मिक समुदाय हैं जिनकी साझा उत्पत्ति है जैसे कि पारसी जो ईरान से भारत आए थे। 
    • उदाहरण के लिए: भारत में पारसी समुदाय, जो मूल रूप से ईरान से है, ने भारत में अपनी धरोहर को संरक्षित और समृद्ध किया है, जिससे सांस्कृतिक संबंधों में योगदान मिला है।
  • उपनिवेशवाद के बाद के कूटनीतिक संबंध: स्वतंत्रता के बाद, भारत और ईरान ने आपसी सम्मान और गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर आधारित मजबूत कूटनीतिक संबंध स्थापित किए।
    • उदाहरण के लिए: शीत युद्ध के दौरान, दोनों राष्ट्र अक्सर गुटनिरपेक्ष नीतियों पर एकमत थे, जिससे क्षेत्र में महाशक्तियों के प्रभाव का विरोध हुआ।
  • क्षेत्रीय स्थिरता पर साझा रुख: ऐतिहासिक रूप से, दोनों देशों ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एकमत होते हुए,मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में स्थिरता लाने पर बल दिया है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत और ईरान दोनों ने वर्ष 2001 के बाद अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिए बॉन समझौते का समर्थन किया, जो क्षेत्रीय मुद्दों पर एक साझा दृष्टिकोण को दर्शाता है।

भारत-ईरान संबंधों की उपलब्धियाँ

  • चाबहार बंदरगाह का विकास: चाबहार बंदरगाह के विकास में भारत की भागीदारी ने पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जोड़ने के लिए एक रणनीतिक मार्ग प्रदान किया है। 
    • उदाहरण के लिए: यह बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान में मानवीय सहायता पहुँचाने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता में भारत की भूमिका मजबूत होती है।
  • ऊर्जा व्यापार भागीदारी: वर्ष 2019 तक ईरान, भारत के लिए कच्चे तेल का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता था, जिससे भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिली।
    • उदाहरण के लिए: प्रतिबंधों से पहले, ईरान भारत के तेल आयात का लगभग 12% आपूर्ति करता था, जो मजबूत ऊर्जा व्यापार संबंधों का प्रमाण है।
  • BRICS और SCO में रणनीतिक साझेदारी: भारत की सहायता से BRICS और SCO में ईरान के प्रवेश ने बहुपक्षीय मंचों पर द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा दिया है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत ने वर्ष 2023 में BRICS सदस्यता के लिए ईरान के नाम का समर्थन किया, जिससे क्षेत्रीय सहयोग और कूटनीतिक संरेखण का विस्तार हुआ।
  • सहयोगात्मक आतंकवाद विरोधी प्रयास: दोनों देश आतंकवाद को एक क्षेत्रीय खतरा मानते हैं, जिससे दोनों देशों के बीच संयुक्त सैन्य सहयोग और खुफिया जानकारी साझा करने की संभावना बनती है। 
    • उदाहरण के लिए: दोनों देशों की सुरक्षा एजेंसियों ने सीमापार आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सूचनाओं का आदान-प्रदान किया है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा बढ़ी है।
  • संयुक्त अवसंरचना विकास परियोजनाएँ: भारत और ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर  (INSTC) जैसे परिवहन कॉरिडोर पर सहयोग किया है , जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार की संभावनाएँ बढ़ी हैं। 
    • उदाहरण के लिए: INSTC परियोजना भारत को ईरान के माध्यम से मध्य एशिया से जोड़ती है, जिससे अधिक कुशल व्यापार मार्ग की सुविधा मिलती है और शिपिंग लागत कम होती है।

भारत-ईरान संबंधों में चुनौतियाँ

  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का प्रभाव: ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने भारत के ऊर्जा आयात को बनाए रखने और ईरानी परियोजनाओं में निवेश करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न की है। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका द्वारा ईरान परमाणु समझौते से पीछे हटने के बाद, भारत को प्रतिबंधों का पालन करने के लिए ईरान से तेल आयात रोकना पड़ा।
  • भू-राजनीतिक बाधाएँ: अमेरिका और इजरायल के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध कभी-कभी ईरान के साथ कूटनीतिक तनाव उत्पन्न कर देते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: रक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में इजरायल के साथ भारत के बढ़ते संबंध कभी-कभी ईरान के साथ संबंधों को संतुलित करने में चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
  • क्षेत्र में सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: क्षेत्रीय संघर्षों में ईरान की भागीदारी, भारत के सुरक्षा हितों और ईरान के साथ उसकी सहभागिता रणनीति को प्रभावित करती है। 
    • उदाहरण के लिए: यमन के संघर्ष में ईरान की भूमिका और मध्य पूर्व में कुछ समूहों को भारत द्वारा दिया जाने वाला समर्थन, भारत के तटस्थता बनाए रखने के दृष्टिकोण को जटिल बना देता है।
  • अवसंरचना परियोजनाओं में देरी: समझौतों के बावजूद, चाबहार बंदरगाह और INSTC जैसी परियोजनाओं को प्रशासनिक और राजनीतिक बाधाओं के कारण देरी का सामना करना पड़ा है। 
    • उदाहरण के लिए:  चाबहार-जाहेदान रेलवे परियोजना में देरी के कारण अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत का क्षेत्रीय संपर्क प्रभावित हुआ है।
  • आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता: ईरान की आंतरिक आर्थिक चुनौतियों एवं राजनीतिक बदलावों के कारण द्विपक्षीय सहयोग हेतु दीर्घकालिक योजना बनाना मुश्किल हो गया है। 
    • उदाहरण के लिए: ईरान में मुद्रास्फीति की समस्या और आर्थिक मुद्दे, भारत के साथ संयुक्त परियोजनाओं को वित्तपोषित करने और बनाए रखने की उसकी क्षमता को प्रभावित करते हैं।

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भारत-ईरान संबंधों को पुनः स्थापित करने का सही समय आ गया है

  • भू-राजनीतिक परिवर्तन: मध्य पूर्व और पश्चिम एशिया में होने वाले परिवर्तनों से भारत के लिए ईरान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने का अवसर उत्पन्न होता है, ताकि क्षेत्रीय शक्तियों को संतुलित किया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: BRICS Plus फ्रेमवर्क में ईरान की भूमिका भारत को ईरान के साथ तटस्थ बहुपक्षीय मंच पर जुड़ने का अवसर देती है।
  • ऊर्जा सुरक्षा अनिवार्यताएँ: जैसे-जैसे भारत की ऊर्जा माँग बढ़ेगी, ईरान के विशाल तेल और गैस भंडार भारत के ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: ईरान से नए सिरे से तेल आयात करने से पश्चिम एशियाई आपूर्तिकर्ताओं पर भारत की निर्भरता कम हो सकती है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी।
  • क्षेत्रीय संपर्क की आवश्यकताएँ: चाबहार बंदरगाह और INSTC, भारत को मध्य एशिया में अपने व्यापार का विस्तार करने और चीनी अवसंरचना पर निर्भरता कम करने में मदद कर सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: भारत पारंपरिक मार्गों को दरकिनार करते हुए यूरोप के साथ अपनी कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए ईरान के माध्यम से INSTC मार्ग का लाभ उठा सकता है।
  • अफगानिस्तान में साझा हित: अफगानिस्तान को आतंकवादियों की पनाहगाह बनने से रोकने के लिए उसे स्थिर बनाने में भारत और ईरान दोनों की ही भागीदारी है। 
    • उदाहरण के लिए अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में सहयोगी पहल, क्षेत्रीय शांति सुनिश्चित करने में भारत-ईरान सहयोग को बढ़ावा दे सकती है।
  • सांस्कृतिक कूटनीति की आगामी संभावनाएँ: सांस्कृतिक विनिमय के माध्यम से सॉफ्ट पावर पहलें, नागरिक संबंधों को नये आयाम प्रदान कर सकती हैं और आपसी विश्वास को बढ़ावा दे सकती है। 
    • उदाहरण के लिए संयुक्त सांस्कृतिक उत्सव और सिनेमा एवं कला क्षेत्र में विनिमय, भारतीय और ईरानी समाजों के बीच ऐतिहासिक बंधन को मजबूत कर सकते हैं।

भारत और ईरान के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक संबंध एक गहरी और अधिक प्रत्यास्थ साझेदारी के लिए कई अवसर प्रस्तुत करते हैं। भू-राजनीतिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण ऊर्जा सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक विकास में पारस्परिक लाभ प्रदान कर सकता है। दोनों देशों के बीच के संबंधों को मजबूत करने के लिए, BRICS और SCO के माध्यम से ‌आपसी सहयोग बढ़ाना और क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देने के लिए चाबहार बंदरगाह में निवेश को बढ़ाना, अच्छे उपाय साबित हो सकते हैं। आतंकवाद विरोधी सहयोग और भाषा एवं शैक्षिक विनिमय को‌ शामिल करते हुए सांस्कृतिक कूटनीति, आपसी सद्भावना और सुरक्षा को और अधिक बढ़ा  सकती है।

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