Q. भारतीय डॉक्टरों और नर्सों का विकसित देशों की ओर बड़े पैमाने पर प्रवास एक विरोधाभास उत्पन्न करता है जहाँ भारत घरेलू स्तर पर स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की कमी का सामना करते हुए उनका वैश्विक आपूर्तिकर्ता देश बन जाता है। इस प्रवृत्ति के कारणों और परिणामों पर चर्चा कीजिए। घरेलू स्वास्थ्य सेवा आवश्यकताओं को वैश्विक जुड़ाव के साथ संतुलित करने के लिए नीतिगत उपाय भी सुझाइए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • बड़े पैमाने पर प्रवास के संभावित कारणों का उल्लेख कीजिए।
  • भारत और ग्लोबल साउथ के लिए इसके परिणामों का उल्लेख कीजिए।
  • घरेलू स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को वैश्विक सहभागिता के साथ संतुलित करने के लिए नीतिगत उपाय सुझाइए।

उत्तर

1.8 करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों की अनुमानित वैश्विक कमी, पेशेवरों को ग्लोबल साउथ से उत्तर के राष्ट्रों में जाने को प्रेरित करती है। भारत इस विरोधाभास का उदाहरण प्रस्तुत करने वाला राष्ट्र है, यह स्वास्थ्य प्रतिभाओं का निर्यात करता है (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) देशों में लगभग 75,000 भारतीय प्रशिक्षित डॉक्टर; विदेशों में लगभग 6,40,000 भारतीय नर्सें), जबकि यह स्वयं स्वास्थ्यकर्मियों की कमी का सामना कर रहा है, जैसा कि फिलीपींस और श्रीलंका जैसे देशों में भी देखने को मिलता है।

बड़े पैमाने पर प्रवास के कारण 

  • वैश्विक माँग में वृद्धि और उत्तर के देशों में वृद्धावस्था की प्रवृत्ति: विकसित देशों में वृद्ध होती जनसंख्या और घटती जन्म दर के चलते वैश्विक मांग में निरंतर वृद्धि देखी जाती है, जिससे वैश्विक श्रम बाजार में दक्षिणी देशों से श्रमिकों की भर्ती की प्रवृत्ति तेज हो जाती है।
    • उदाहरण: ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यू.के. और अमेरिका जैसे OECD देशों में 25-32% डॉक्टर (2009-2019) दक्षिण एशिया/अफ्रीका में प्रशिक्षित थे
  • स्रोत देशों में घरेलू आपूर्ति संबंधी बाधाएँ: जो देश बड़े पैमाने पर श्रमिकों का निर्यात करते हैं, वे धीरे-धीरे आंतरिक श्रम बल की कमी का सामना करने लगते हैं, जिससे बाह्य प्रवासन एक विरोधाभासी प्रक्रिया बन जाती है।
    • उदाहरण: श्रीलंका को बड़े पैमाने पर बाह्य प्रवास का सामना करना पड़ रहा है और वह आंशिक रूप से पेशेवरों को आयात करके इस कमी को पूरा करता है
  • आर्थिक दबाव कारक: कम वेतन और देश में सीमित उन्नति के कारण पेशेवर लोग विदेश में बेहतर संभावनाएँ तलाशने के लिए मजबूर होते हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय भर्ती नीतियाँ और व्यापार समझौते: गंतव्य-देश की नीतियाँ और द्विपक्षीय/व्यापार ढाँचे प्रवासन मार्गों को संस्थागत बनाते हैं, जिन्हें प्रमुख आकर्षण तंत्र कहा जाता है।
  • धन प्रेषण के लिए राज्य-नेतृत्व वाली निर्यात रणनीतियाँ: कुछ सरकारें धन प्रेषण और कूटनीति को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य-कार्यकर्ता निर्यात को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करती हैं।
    • उदाहरण: भारत और फिलीपींस ने घरेलू स्तर पर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की कमी के बावजूद उनके निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियों को औपचारिक रूप दिया है।
  • भू-राजनीतिक एवं कूटनीतिक लाभ: प्रवासन का उपयोग साझेदारी को मजबूत करने और स्वास्थ्य क्षेत्रों में वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
    • उदाहरण: भारत ने कोविड-19 महामारी के दौरान पड़ोसियों और अफ्रीका में पेशेवरों को तैनात करके चिकित्सा कूटनीति को बढ़ाया।

भारत और ग्लोबल साउथ के लिए परिणाम

  • घरेलू स्तर पर सेवाओं की कमी और सेवा अंतराल में वृद्धि: पहले से ही कम कर्मचारियों वाले देशों से प्रतिभाओं का निर्यात करने से आंतरिक असमानताएँ और क्षमता ह्वास बढ़ता है।
    • उदाहरण: 10-12% विदेशी प्रशिक्षित डॉक्टर/नर्स ऐसे देशों से आते हैं, जहाँ पहले से ही स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है।
  • धन प्रेषण बनाम क्षमता ह्वास: प्रवासी धन परीक्षण और कौशल की वापसी जैसी सकारात्मकताओं के बावजूद संसाधन संकट वाले परिदृश्य में कार्य बल का शुद्ध ह्वास, ऐसे लाभों पर भारी पड़ता है।
  • बाह्य श्रम बाजारों पर निर्भरता: स्वास्थ्य संबंधी मानव संसाधन वैश्विक चक्रों के संपर्क में आ जाते हैं, जिससे घरेलू नियोजन कमजोर हो जाता है।
    • उदाहरण: श्रीलंका की आयातित पेशेवरों पर निर्भरता उसकी कमजोर घरेलू क्षमता को दर्शाती है
  • कूटनीतिक लाभ, लेकिन स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव: हालाँकि प्रवासन से भारत का प्रभाव और साझेदारी बढ़ती है, लेकिन इससे घरेलू स्तर पर अग्रिम पंक्ति की क्षमता क्षीण हो सकती है।
    •  उदाहरण: भारत “विश्व की फार्मेसी” और कार्यबल निर्यातक होने का लाभ उठाता है, फिर भी उसे देश के भीतर स्वास्थ्य सेवाओं में गंभीर अभाव का सामना करना पड़ता है।
  • वैश्विक नैतिक मानदंडों का कमजोर प्रवर्तन: WHO कोड जैसे सॉफ्ट साधनों को स्रोत देशों की सुरक्षा के लिए मजबूत, प्रवर्तनीय द्विपक्षीय तंत्र की आवश्यकता है।

घरेलू आवश्यकताओं को वैश्विक भागीदारी के साथ संतुलित करने के लिए नीतिगत उपाय

  • स्वास्थ्य शिक्षा क्षमता का विस्तार करना और इसे व्यवहार्य बनाना: एक बड़ा, संधारणीय स्वास्थ्य कार्यबल “कैडर” बनाने के लिए सीटें, संस्थान और वित्तपोषण बढ़ाना चाहिए।
  • बेहतर कार्यदशाओं और प्रोत्साहनों के माध्यम से प्रतिधारण: स्थायी बहिर्वाह को कम करने के लिए वेतन, कॅरियर विकल्पों और कार्यदशाओं में सुधार करना चाहिए।
  • वनवेएग्जिट के बजाय चक्रीय प्रवास का लाभ उठाना: कौशल और ज्ञान को पुनः प्राप्त करने के लिए वापसी मार्ग और पुनः एकीकरण सहायता की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए।
    • उदाहरण: भारत चक्रीय प्रवासन और द्विपक्षीय सहयोग के माध्यम से प्रतिभा पलायन का प्रबंधन करना चाहता है।
  • क्षतिपूर्ति के साथ प्रवर्तनीय द्विपक्षीय समझौतों पर वार्ता: घाटे की भरपाई के लिए शिक्षा, बुनियादी ढाँचे और तकनीकी हस्तांतरण में निवेश पर जोर देना चाहिए।
    • उदाहरण: बेसलाइन के रूप में मुआवजा तंत्र, लक्षित निवेश, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और WHO कोड का प्रस्ताव करना चाहिए।
  • कार्यबल गतिशीलता के लिए केंद्रीकृत राष्ट्रीय एजेंसी: एक समर्पित प्राधिकरण के माध्यम से भर्ती, डेटा, शिकायत निवारण और पुनः एकीकरण को सुव्यवस्थित करना चाहिए।
    • उदाहरण: केरल की विदेशी रोजगार एजेंसियाँ और फिलीपींस का प्रवासी श्रमिक विभाग व्यावहारिक मॉडल प्रस्तुत करते हैं।
  • सेवाओं के निर्यात हेतु लोगों के प्रवासन के बिना डिजिटल स्वास्थ्य का उपयोग: टेलीमेडिसिन और डिजिटल प्लेटफॉर्म भारतीय विशेषज्ञता को वैश्विक स्तर पर पहुँचाते हुए घरेलू संसाधनों की उपलब्धता को बनाए रख सकते हैं।
  • क्षेत्रीय उत्पादन एवं सामूहिक सौदेबाजी: कार्यबल में वृद्धि के लिए कौशल प्रशिक्षण का प्रयोग तथा जब मजबूत स्थिति में आकर समझौते करने के लिए साउथ-साउथ सहयोग।

निष्कर्ष

वैश्विक माँग और घरेलू चुनौतियों के कारण भारत में स्वास्थ्यकर्मियों का प्रवास, शुद्ध क्षमता ह्वास का कारण बनता है। शिक्षा का विस्तार, कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि, चक्रीय प्रवासन को सक्षम बनाना, निष्पक्ष समझौते सुनिश्चित करना, डिजिटल स्वास्थ्य का लाभ उठाना और क्षेत्रीय साझेदारियों को बढ़ावा देने जैसी संतुलित रणनीति राष्ट्रीय आवश्यकताओं को नैतिक वैश्विक जुड़ाव के साथ संरेखित कर सकती है।

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