Q. भारत गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद, इसका खनन उद्योग इसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में प्रतिशत के हिसाब से बहुत कम योगदान देता है। चर्चा कीजिए। (150 शब्द, 10 अंक)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • खनिज संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद खनन क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद में कम योगदान के कारण बताइए।

उत्तर

भारत का भूगोल गोंडवाना भू-खंड की विरासत से समृद्ध है, जिसने देश को विशाल खनिज भंडार—कोयला, लौह-अयस्क, बाक्साइट, अभ्रक, चूना-पत्थर आदि—प्रदान किया है। फिर भी, खनन क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान केवल लगभग 2% तक सीमित है। यह संसाधनों के अनुपयोगी रहने का द्योतक है।

खनिज संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद खनन क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद में कम योगदान के कारण

India’s Gondwanaland

भौगोलिक कारक

  • संसाधन-समृद्ध लेकिन दुर्गम स्थान: प्रमुख खनिज पट्टियाँ (छोटानागपुर पठार, बस्तर, सिंहभूम) दुर्गम व अविकसित क्षेत्रों में स्थित हैं। कमजोर परिवहन क्षमता व बाजार से कम जुड़ाव इनके दोहन और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में एकीकरण को सीमित करता है।
  • गहराई में दबे और अलाभकारी भंडार: कई खनिज भंडार गहराई में दबे हैं, जिन्हें मौजूदा तकनीकों से निकालना अलाभकारी है। इस कारण खनन केवल सतही व सुलभ स्थलों तक सीमित रहता है।

वातावरणीय कारक

  • उच्च पारिस्थितिकी संवेदनशीलता: मध्य भारत जैसे खनिज-समृद्ध क्षेत्र वनों और आदिवासी निवासों से आच्छादित हैं। पारिस्थितिकी समस्या व सामाजिक विरोध के कारण पर्यावरणीय स्वीकृति में विलंब होता है, जिससे उत्पादन व GDP योगदान कम रहता है।
  • कठोर पर्यावरणीय मानदंड: सतत् खनन के लिए बढ़ता वैश्विक और राष्ट्रीय दबाव खनन कार्यों के पैमाने और गति को सीमित करता है। इससे इस क्षेत्र में आक्रामक औद्योगिक विस्तार पर रोक लगती है।

राजनीतिक और नीतिगत कारक

  • नीतिगत ओवरलैप: खनिज अधिकार केंद्र व राज्य दोनों के अधीन होने से समन्वय की कमी व नीति-अनिश्चितता उत्पन्न होती है। इससे निवेशकों को विखंडित शासन व्यवस्था का सामना करना पड़ता है।
  • नीतिगत अस्थिरता: MMDR अधिनियम में बार-बार संशोधन, रॉयल्टी दरों में बदलाव तथा प्रतिगामी कराधान से दीर्घकालिक योजना प्रभावित होती है। असंगत नियम खनन क्षेत्र की GDP हिस्सेदारी घटाते हैं।

स्थानीय कारक

  • कुशल जनशक्ति का अभाव: अधिकांश खनन क्षेत्रों में तकनीकी संस्थानों का अभाव है तथा मशीनीकृत खनन के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति उपलब्ध नहीं है। इसके कारण उत्पादकता निम्न बनी रहती है।
  • स्थानीय प्रतिरोध: पुनर्वास की कमी और आदिवासी समुदायों के एकीकरण में विफलता से स्थानीय विरोध उत्पन्न होता है। यह अक्सर परियोजनाओं को ठप कर देता है। सामाजिक अशांति खनन गतिविधियों की निरंतरता को बाधित करती है और GDP में योगदान कम करती है।

बुनियादी ढाँचे के कारक

  • खराब कनेक्टिविटी और बिजली आपूर्ति: खनन पट्टियाँ प्रायः सड़क, रेल तथा विद्युत संरचना की कमी से जूझती हैं। थोक खनिजों का परिवहन महँगा और अक्षम हो जाता है।
  • सीमित प्रसंस्करण सुविधाएँ: स्थानीय स्तर पर लाभकारीकरण  इकाइयों की कमी के कारण कच्चे खनिजों का निर्यात होता है, जबकि मूल्य संवर्द्धन (value addition) की संभावना छूट जाती है। इससे डाउनस्ट्रीम उद्योगों द्वारा GDP में संभावित योगदान घट जाता है।

अन्य कारक

  • उग्रवाद और वामपंथी उग्रवाद क्षेत्र: दंतेवाड़ा और सुकमा जैसे खनिज-समृद्ध इलाके लंबे समय से वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित रहे हैं। यद्यपि अधिकांश चिंताओं का समाधान हुआ है, फिर भी सुरक्षा खतरों की उपस्थिति औद्योगिकीकरण को हतोत्साहित करती है।
  • वैश्विक कमोडिटी अस्थिरता: खनन क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय कीमतों के उतार-चढ़ाव के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। अस्थिर रिटर्न के कारण निवेशक आक्रामक विस्तार से बचते हैं, जिससे GDP में योगदान सीमित रह जाता है।

आगे की राह

  • निवेश आकर्षित करने हेतु स्वीकृतियों का सरलीकरण: एक एकीकृत और समयबद्ध स्वीकृति प्रणाली लागू की जानी चाहिए, जिससे परियोजनाओं में विलंब कम हो और निजी व विदेशी निवेश को प्रोत्साहन मिले। बढ़ी हुई खनन गतिविधियाँ औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाएँगी और सीधे तौर पर GDP में योगदान करेंगी।
  • अन्वेषण और प्रौद्योगिकी: गहन अन्वेषण हेतु आधुनिक तकनीकों में निवेश बढ़ाना आवश्यक है। इससे गहराई में स्थित और अभी तक अप्रयुक्त रहे भंडारों का वाणिज्यिक दोहन संभव होगा। बढ़ी हुई खनन गतिविधि औद्योगिक उत्पादन और GDP में योगदान को दोगुना करेगी।
  • बुनियादी ढाँचा विकास: समर्पित खनिज परिवहन कॉरिडोर विकसित किए जाने चाहिए। रेल और सड़क संपर्क की सुदृढ़ता से खनिजों का कुशल निष्कर्षण होगा, परिवहन लागत घटेगी और भारतीय खनन वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनेगा।
  • घरेलू खनिज-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना: इस्पात और एल्यूमिनियम संयंत्र जैसे डाउनस्ट्रीम उद्योग खनन क्षेत्रों के पास औद्योगिक कॉरिडोरों के माध्यम से स्थापित किए जाने चाहिए। स्थानीय स्तर पर मूल्य संवर्द्धन से आर्थिक उत्पादन कई गुना होगा और खनन क्षेत्र का अप्रत्यक्ष योगदान GDP में बढ़ेगा।
  • जनजातीय भागीदारी का लाभ उठाना: खनन क्षेत्रों में PESA और FRA के तहत न्यायसंगत मुआवजा और कौशल-आधारित रोजगार मॉडल लागू किए जाने चाहिए। अधिक स्थानीय भागीदारी से संचालन में निरंतरता सुनिश्चित होगी और सामाजिक-राजनीतिक व्यवधान कम होंगे, जिससे GDP पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • पर्यावरणीय स्थिरता: खनन क्षेत्र के पारिस्थितिक पुनर्स्थापन को अनिवार्य किया जाए। सतत् खनन, दीर्घकालिक उत्पादकता सुनिश्चित करता है और नियामकीय अवरोधों से होने वाले आर्थिक नुकसान से बचाता है।

निष्कर्ष

भारत, गोंडवाना भू-भाग का हिस्सा होने के कारण, प्रचुर खनिज भंडारों से संपन्न है। यद्यपि हमारे पास यह भू-गर्भीय लाभ विद्यमान है, फिर भी विभिन्न कारणों से इसका आर्थिक दोहन अभी तक पूरी तरह नहीं हो पाया है। इस निहित सामर्थ्य को उजागर करने और खनन क्षेत्र को भारत की व्यापक आर्थिक विकास महत्त्वाकांक्षाओं के साथ जोड़ने के लिए सभी हितधारकों की सहभागिता से एक समग्र और समन्वित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।

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