Q. वर्ष 1952 से अग्रणी परिवार नियोजन कार्यक्रमों के बावजूद, भारत में नसबंदी दरों में महत्वपूर्ण लैंगिक असमानता का सामना करना पड़ रहा है। गर्भनिरोधक में पुरुषों की कम भागीदारी के पीछे के कारणों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के 30% पुरुष नसबंदी के लक्ष्य को प्राप्त करने के उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • गर्भनिरोधक पद्धतियों को अपनाने में पुरुषों की कम भागीदारी के पीछे के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  • भारत के नसबंदी कार्यक्रम में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के 30% पुरुष नसबंदी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उपाय सुझाइये।

उत्तर

वर्ष 1952 में शुरू किए गए भारत के परिवार नियोजन कार्यक्रम का उद्देश्य नसबंदी जैसी पद्धतियों के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना था। NFHS-4 (2015-16) के अनुसार, पुरुष नसबंदी, गर्भनिरोधक पद्धतियों का केवल 0.3% है। नीतिगत प्रयासों के बावजूद, नसबंदी दरों में पर्याप्त लैंगिक असमानता व्याप्त है जिसमें सांस्कृतिक और सामाजिक बाधाओं के कारण महिलाओं को अधिकांश जिम्मेदारी उठानी पड़ती है।

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नसबंदी दरों में लैंगिक असमानता और गर्भनिरोधक पद्धतियों को अपनाने में पुरुषों की कम भागीदारी के पीछे कारण

  • सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंड: भारत में परंपरागत लैंगिक भूमिकाओं के अंतर्गत अक्सर परिवार नियोजन को मुख्य रूप से महिलाओं की जिम्मेदारी माना जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: सर्वेक्षणों से पता चला है कि नसबंदी के लिए मुख्य रूप से महिलाएँ जिम्मेदार होती हैं, जबकि पुरुषत्व की भावना और अहंकार  के कारण पुरुष इसका विरोध करते हैं।
  • पुरुष जागरूकता की कमी: कई पुरुष, पुरुष नसबंदी के लिए उपलब्ध विकल्पों जैसे बंध्यीकरण (Vasectomy) से अनजान हैं। 
    • उदाहरण के लिए: सर्वेक्षणों से पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं दोनों के बीच अक्सर ‘नो-स्कैलपेल बंध्यीकरण’ (No-Scalpel Vasectomy) के संबंध में जागरूकता की कमी होती है, जो कि सुरक्षित विकल्प है, जिसके कारण कम पुरुष ही इस प्रक्रिया को अपनाते हैं।
  • आर्थिक चिंताएँ: वेतन में कमी का डर और दैनिक आय पर नसबंदी के प्रभाव के कारण पुरुष इस प्रक्रिया को अपनाने से कतराते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: सूचना के खराब प्रसार के कारण  वेतन में कमी की भरपाई के लिए सरकार द्वारा दिए जाने वाले नकद प्रोत्साहनों का उपयोग कम किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप कई पुरुष उपलब्ध वित्तीय सहायता से अनभिज्ञ रह जाते हैं।
  • स्वास्थ्य जोखिम की आशंका: व्यापक रूप से यह धारणा है कि पुरुष नसबंदी वास्तव में कहीं ज्यादा जोखिम भरी है, जिसके कारण पुरुष इसे करवाने से कतराते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: पुरुष बंध्यीकरण की सुरक्षा के संबंध में गलत जानकारी, जिसमें साइड इफेक्ट और जटिलताओं का डर शामिल है, अक्सर पुरुषों को इस प्रक्रिया पर विचार करने से रोकता है।
  • स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढाँचे का अभाव: कई ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षित स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की कमी है, जिससे पुरुष नसबंदी प्रक्रियाओं तक पहुँच सीमित हो जाती है।

भारत के नसबंदी कार्यक्रम में चुनौतियाँ

  • सूचित सहमति का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में नसबंदी प्रक्रियाओं के निहितार्थों को पूरी तरह समझाये बिना  कई महिलाओं पर दबाव डाला जाता है या उन्हें इसके लिए मजबूर किया जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2014 में छत्तीसगढ़ का कुख्यात नसबंदी कांड, जहाँ एक असफल नसबंदी शिविर में 15 महिलाओं की मृत्यु हो गई, ने सूचित सहमति के प्रति उपेक्षा को उजागर किया।
  • सेवाओं की खराब गुणवत्ता: नसबंदी प्रक्रियाएँ, अक्सर अपर्याप्त नसबंदी प्रथाओं के साथ खराब ढंग से व्यवस्थित स्वास्थ्य सुविधाओं में की जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप संक्रमण और जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • लक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण: नसबंदी के लिए तय किये जाने वाले सरकारी लक्ष्य, अक्सर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर कोटा पूरा करने के लिए दबाव डालते हैं, जिससे देखभाल की गुणवत्ता और नैतिक विचारों से समझौता होता है।
  • लैंगिक पक्षपात: नसबंदी का लक्ष्य अधिकतर महिलाओं को बनाया जाता है, जिससे लैंगिक असमानता बनी रहती है और प्रजनन संबंधी विकल्प सीमित हो जाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: NFHS-4 (2015-16) के अनुसार, महिला नसबंदी का आँकड़ा 37.9% है, जबकि पुरुष नसबंदी केवल 0.3% है।
  • कलंक और भेदभाव: नसबंदी कराने वाली महिलाओं को सामाजिक कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनके आत्मसम्मान एवं कल्याण पर असर पड़ सकता है।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति और नीति कार्यान्वयन का अभाव: राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में पुरुष नसबंदी के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, लेकिन इसका कार्यान्वयन धीमा है। 
    • उदाहरण के लिए: नीतिगत पहलों के बावजूद, परिवार नियोजन कार्यक्रमों में पुरुषों की भागीदारी को रोकने वाली बाधाओं को दूर करने पर अपर्याप्त ध्यान देने के कारण पुरुष नसबंदी की दरें स्थिर हो गई हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के 30% पुरुष नसबंदी के लक्ष्य को प्राप्त करने के उपाय

  • जागरूकता और शिक्षा में वृद्धि: पुरुष नसबंदी की सुरक्षा और लाभों के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के लिए केंद्रित शैक्षिक अभियान अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित कर सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: सूचना अभियानों में नो-स्कैलपेल (No-Scalpel) बंध्यीकरण के लाभों पर जोर दिया जाना चाहिए व लोगों को इसकी सुरक्षा और न्यूनतम रिकवरी टाइम से अवगत कराना चाहिए
  • पुरुष भागीदारी को प्रोत्साहित करना: नसबंदी कराने के लिए पुरुषों को अधिक आकर्षक वित्तीय प्रोत्साहन देने से भागीदारी बढ़ सकती है।
  • स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: नसबंदी सेवाओं तक पहुँच को आसान बनाने के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर बुनियादी ढाँचे का निर्माण आवश्यक है। 
    • उदाहरण के लिए: पुरुष नसबंदी प्रक्रियाओं में अधिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को प्रशिक्षित करना और ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं में सुधार करना, पुरुषों के लिए सेवाओं तक पहुँच को आसान बना देगा।
  • परिवार नियोजन अभियानों में पुरुषों को शामिल करना: परिवार नियोजन पहलों को सीधे पुरुषों को लक्षित करना चाहिए व पुरुष नसबंदी और अन्य पुरुष गर्भनिरोधक तरीकों को बढ़ावा देना चाहिए।
  • सामाजिक मानदंडों को संबोधित करना: पुरुषत्व और परिवार नियोजन के प्रति सांस्कृतिक दृष्टिकोण को चुनौती देने की आवश्यकता है ताकि अधिक पुरुषों को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: सार्वजनिक अभियानों के माध्यम से सामाजिक धारणाओं को बदलने का प्रयास करना चाहिए, यह दर्शाते  हुए कि पुरुष नसबंदी, पुरुषों के लिए एक सुरक्षित और सही विकल्प है।

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राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के अनुसार, वर्ष 2025 तक 30% पुरुष नसबंदी का लक्ष्य हासिल करना, परिवार नियोजन में लैंगिक समानता के लिए महत्त्वपूर्ण है। सांस्कृतिक, आर्थिक और बुनियादी ढाँचे से जुड़ी बाधाओं को दूर करके इसमें पुरुषों की भागीदारी को बढ़ावा दिया जा सकता है। सामुदायिक नेतृत्वकर्ताओं की भागीदारी और लक्षित शिक्षा जैसे अन्य देशों के सर्वोत्तम अभ्यास, इस संबंध में प्रगति को गति देंगे और वर्ष 2030 तक SDG लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता) को प्राप्त करने में सहायता करेंगे।

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