प्रश्न की मुख्य माँग
- अमेरिका के अनिश्चित और चीन के आक्रामक रवैये के कारण बदलते भू-राजनीति परिदृश्य में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ।
- भारत के लिए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए उनके प्रभाव को संतुलित करने के तरीके सुझाइये।
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उत्तर
वैश्विक भू-राजनीतिक पुनर्संरेखण ने भारत को बाह्य अनिश्चितताओं और क्षेत्रीय आक्रामकता के प्रति संवेदनशील बना दिया है। अमेरिका ने रूस के साथ तेल संबंधों का हवाला देते हुए चुनिंदा भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ दोगुना करके 50% कर दिया है, जिससे अमेरिका को भारत के 55% निर्यात पर असर पड़ रहा है। इसके अलावा, चीन की आक्रामकता और पाकिस्तान के साथ उसका गठजोड़ भारत की सुरक्षा, व्यापार और रणनीतिक स्वायत्तता के लिए चुनौती प्रस्तुत कर रही है।
अमेरिका के अप्रत्याशित और चीन के आक्रामक व्यवहार से उत्पन्न चुनौतियाँ
संयुक्त राज्य अमेरिका का अप्रत्याशित रवैया
- रणनीतिक साझेदारों के साथ विश्वास में कमी: अमेरिका जैसे रणनीतिक साझेदारों ने आतंकवादी हमलों के बाद पाकिस्तान की निंदा करने में हिचकिचाहट दिखाई, जिससे उनका पक्षपाती समर्थन का पता चलता है।
- उदाहरण: ऑपरेशन सिंदूर के बाद, अमेरिका ने पाकिस्तान के फील्ड मार्शल का स्वागत किया और युद्ध विराम का श्रेय लिया, तथा भारत की निर्णायक सैन्य कार्रवाई को नजरंदाज कर दिया।
- अमेरिका द्वारा व्यापार एवं प्रौद्योगिकी पर एकतरफा दबाव: तकनीकी सहयोग जारी रहने के बावजूद भारत को टैरिफ वृद्धि और निवेश में कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- उदाहरण: जिस दिन NISAR उपग्रह (भारत-अमेरिका परियोजना) लॉन्च किया गया, उसी दिन अमेरिका ने 25% टैरिफ लगाया और रूसी तेल आयात करने पर दंड की चेतावनी दी।
- भारत के पड़ोस में सुरक्षा के प्रति असंवेदनशीलता: अमेरिका को भारतीय क्षेत्रीय चिंताओं के प्रति असंवेदनशील माना गया है जिससे विरोधियों को बल और सहयोगियों को कमजोरी मिली।
- पूर्वी एशिया में रणनीतिक हेजिंग एवं पुनर्संरेखण: अमेरिका-चीन के बीच सुलह की संभावना, इंडो-प्रशांत क्षेत्र में भारतीय हितों को दरकिनार कर सकती है।
- उदाहरण: Nvidia को चीन को AI चिप्स बेचने की अनुमति दी गई, पूर्वी एशियाई देशों की संतुलन नीति ने इस क्षेत्र में भारत की भूमिका सीमित हुई।
चीन का आक्रामक रवैया
- दक्षिण एशिया में चीन की आक्रामक रणनीतिक गतिविधियाँ: चीन सैन्य, बुनियादी ढाँचे और राजनीतिक साधनों के माध्यम से भारत को घेर रहा है।
- उदाहरण: चीन-पाकिस्तान-बांग्लादेश त्रिपक्षीय प्रस्ताव, सिलीगुड़ी के निकट एयरबेस का पुनरुद्धार, तथा अरुणाचल के निकट विशाल ब्रह्मपुत्र बांध।
- आर्थिक लाभ और आपूर्ति श्रृंखला पर चीन पर निर्भरता: चीन, भारत पर रणनीतिक रूप से दबाव बनाने के लिए व्यापार अधिशेष और आपूर्ति श्रृंखला नियंत्रण का उपयोग करता है।
- उदाहरण: दुर्लभ खनिजों, उर्वरकों, API और सुरंग खुदाई वाली मशीनों में प्रभुत्व चीन को भारत पर आर्थिक दबावकारी शक्ति प्रदान करता है।
- वैश्विक संघर्षों में राजनयिक अलगाव: संघर्षों पर भारत का सतर्क रुख वैश्विक आवाज और पारस्परिक समर्थन को कमजोर कर सकता है।
- उदाहरण: गाजा, ईरान-इजराइल संघर्ष और यूक्रेन युद्ध पर भारत की चुप्पी ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद उसके नैतिक प्रभाव को कम कर दिया।
अमेरिका-चीन प्रभाव को संतुलित करने और रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने की रणनीतियाँ
- आक्रामक बहु-संरेखण और रणनीतिक विविधीकरण: अमेरिका के नेतृत्व वाले ढाँचे से परे ब्रिक्स, SCO, ASEAN और अन्य बहुपक्षीय प्लेटफार्मों के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहिए।
- उदाहरण: ब्रिक्स 2026 शिखर सम्मेलन की मेजबानी और रूस, ईरान और पूर्वी एशियाई देशों के साथ संबंधों को पुनर्संतुलित करना, भारत की भू-राजनीतिक एजेंसी को बढ़ाता है।
- वैश्विक संघर्षों में सक्रिय भागीदारी: भारत को पारस्परिक समर्थन प्राप्त करने के लिए वैश्विक मुद्दों पर एक सैद्धांतिक, स्पष्ट रुख अपनाना होगा।
- रणनीतिक आर्थिक पुनर्गठन और व्यापार कूटनीति: अति निर्भरता को कम करने और पश्चिमी दबाव का मुकाबला करने के लिए संतुलित FTA को तेजी से आगे बढ़ाना चाहिए।
- उदाहरण: भारत-UK CETA संपन्न हुआ।
- महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाओं और तकनीकी संप्रभुता को सुरक्षित करना: स्रोतों में विविधता लाकर और घरेलू क्षमताओं में निवेश करके चीनी प्रभाव को कम करना।
- उदाहरण: महत्वपूर्ण सामग्रियों पर चीनी प्रतिबंधों के बाद API, दुर्लभ मृदा तत्व और AI तकनीक में लक्षित आयात प्रतिस्थापन।
- सीमावर्ती और समुद्री सतर्कता: निकटवर्ती पड़ोस में बढ़ी हुई निगरानी से चीनी घेरेबंदी का जवाब दिया जा सकता है।
- उदाहरण: भारत ने ग्लोबल साउथ में सुरक्षा और विकास के लिए विस्तारित दृष्टिकोण के साथ संशोधित MAHASAAGAR (क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास के लिए पारस्परिक और समग्र उन्नति) नीति शुरू की।
- अमेरिका के साथ संतुलित संबंध: अमेरिका के साथ संबंधों को बनाए रखना चाहिए लेकिन संप्रभुता को क्षति पहुंचाने वाले एकतरफा प्रतिबंधों को अस्वीकार करना चाहिए।
- आख्यान निर्माण और वैश्विक पक्षकारिता: समय पर कूटनीतिक पहल और रणनीतिक संचार के माध्यम से वैश्विक आख्यान को सुदृढ़ करना चाहिए।
निष्कर्ष
भारत आज एक बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य का सामना कर रहा है जहाँ निष्क्रिय गुटनिरपेक्षता अब पर्याप्त नहीं है। पंचशील और वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांतों पर आधारित भारत को अपने नैतिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखते हुए अपने सामरिक हितों की रक्षा करनी चाहिए। एक आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर भारत एक विश्व-मित्र की भूमिका में सैद्धांतिक के साथ संतुलनकारी शक्ति बन सकता है जहां यथार्थ के साथ जिम्मेदारी और संप्रभुता के साथ वैश्विक एकता हो।
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