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प्रश्न की मुख्य माँग
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भारत में पोषण संबंधी विरोधाभास बढ़ रहा है, जहाँ किशोरों में कुपोषण और मोटापा दोनों एक साथ मौजूद हैं। जीवनशैली में तेजी से हो रहे बदलाव, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन और आहार के प्रति कम जागरूकता ने इस दोहरे बोझ को और बढ़ा दिया है।
आयाम | मुख्य मुद्दा |
कुपोषण का दोहरा बोझ | किशोरों में कुपोषण और बढ़ते मोटापे का सह-अस्तित्व।
उदाहरण: व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (CNNS) – भारत में 5% से अधिक किशोर अधिक वजन या मोटापे की समस्या से ग्रस्त हैं, लगभग 10 राज्यों में यह आंकड़ा 10-15% है। |
अति-प्रसंस्कृत खाद्य पर्यावरण | आक्रामक विपणन और व्यापक उपलब्धता के कारण उच्च वसा, लवण और शर्करा (HFSS) वाले खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ गया है।
उदाहरण: वर्ल्ड ओबेसिटी एटलस 2024– भारत में वैश्विक स्तर पर बाल मोटापे में सबसे तीव्र वार्षिक वृद्धि हो रही है। |
सामाजिक-सांस्कृतिक और मीडिया प्रभाव | साथियों का दबाव, सोशल मीडिया के रुझान और खाद्य विज्ञापन, किशोरों की भोजन संबंधी पसंद को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं।
उदाहरण: लेट्स फिक्स अवर फूड कंसोर्टियम ने मीडिया और साथियों के प्रभाव को खराब आहार विकल्पों के प्रमुख कारणों के रूप में उजागर किया है। |
सीमित खाद्य साक्षरता | किशोरों में अक्सर लेबल पढ़ने, स्वस्थ भोजन की पहचान करने, या आहार संबंधी आवश्यकताओं को समझने के लिए जागरूकता और कौशल की कमी होती है।
उदाहरण: NCERT और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के दिशा-निर्देशों में स्कूल के भोजन में शर्करा/लवण की निगरानी करने का आग्रह किया गया है। |
विखंडित संस्थागत उत्तरदायित्व | कई मंत्रालय पर्याप्त समन्वय या एकीकृत रणनीति के बिना पोषण के विभिन्न पहलुओं पर काम करते हैं। |
भारत के पोषण विरोधाभास के लिए समग्र प्रतिक्रिया को खंडित मध्यक्षेपों से आगे जाना होगा। शिक्षा, विनियमन और लक्षित कल्याण को एकीकृत करने वाला एक व्यापक, अंतर-मंत्रालयी दृष्टिकोण दीर्घकालिक व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने, समान खाद्य पहुँच सुनिश्चित करने और एक स्वस्थ व उचित पोषण प्राप्त करने वाली पीढ़ी का निर्माण करने के लिए आवश्यक है।
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