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Q. भारत को जल प्रबंधन में विशेष रूप से मूल्य निर्धारण और विनियमन में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत में वर्तमान जल मूल्य निर्धारण नीतियों, उनकी कमियों की आलोचनात्मक जाँच कीजिए और सभी क्षेत्रों में सतत जल उपयोग सुनिश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं से सुधार का सुझाव दीजिए। (15 अंक , 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में वर्तमान जल मूल्य निर्धारण नीतियों का परीक्षण कीजिए।
  • उनकी कमियों का परीक्षण कीजिए।
  • सभी क्षेत्रों में जल का सतत उपयोग सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं से सुधार का सुझाव दीजिए।

 

उत्तर:

भारत में दुनिया की 18% आबादी है परंतु जल संसाधन सिर्फ 4% है। इसको देखते हुए यह कहा जा सकता है, कि भारत, जल प्रबंधन के गंभीर संकट का सामना कर रहा है। नीति आयोग के अनुसार, वर्ष 2030 तक भारत की जल माँग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है, जो आसन्न जल संकट का संकेत है। यह सभी क्षेत्रों में संधारणीय और न्यायसंगत उपयोग के लिए जल मूल्य निर्धारण नीतियों में सुधार की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है।

भारत में वर्तमान जल मूल्य निर्धारण नीतियाँ

  • सब्सिडी वाला कृषि जल: भारत में कृषि जल पर अत्यधिक सब्सिडी दी जाती है, जिसके कारण जल की अत्यधिक खपत होती है और भूजल का असंतुलित दोहन होता है।
    • उदाहरण के लिए: पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य, जल पम्प करने के लिए मुफ्त या लगभग अल्प राशि में बिजली देते हैं जिसके कारण भूजल का अत्यधिक दोहन होता है और दीर्घकालिक रूप से जल स्तर में कमी आती है।
  • फ्लैट-रेट शहरी टैरिफ: कई शहरी क्षेत्रों में फ्लैट-रेट जल टैरिफ, मूल्य निर्धारण को वास्तविक जल उपयोग से न जोड़कर, संरक्षण को हतोत्साहित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक खपत और बर्बादी होती है।
    • उदाहरण के लिए: दिल्ली अपने आवासीय उपभोक्ताओं को प्रति माह 20 किलोलीटर मुफ्त जल उपलब्ध कराती है, जिससे शहर में पानी की बढ़ती माँग के बावजूद जल संरक्षण के प्रति प्रोत्साहन कम हो जाता है।
  • राज्य स्तरीय मूल्य निर्धारण मॉडल: भारत में राज्य, विभिन्न मूल्य निर्धारण प्रणालियों का पालन करते हैं जिसके कारण विभिन्न क्षेत्रों में जल प्रबंधन और दक्षता के संबंध में असमानताएँ पैदा होती हैं।
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र सिंचाई के लिए वॉल्यूमेट्रिक मूल्य निर्धारण प्रणाली लागू करता है, जबकि तमिलनाडु एक समान दर प्रणाली का उपयोग करता है जिसके कारण असमान और अकुशल जल संसाधन प्रबंधन होता है।
  • सब्सिडीयुक्त औद्योगिक जल उपयोग: उद्योग, विशेष रूप से विशेष आर्थिक क्षेत्रों में स्थित उद्योग, अक्सर सब्सिडीयुक्त जल दरों से लाभान्वित होते हैं, जिससे अकुशल और अत्यधिक जल उपयोग को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिए: गुजरात में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) उद्योगों को रियायती दरों पर जल उपलब्ध कराते हैं, जिससे औद्योगिक जल की बर्बादी होती है और पुनर्चक्रण पर कम ध्यान दिया जाता है।
  • राष्ट्रीय जल नीति (वर्ष 2012): राष्ट्रीय जल नीति में जल के तर्कसंगत मूल्य निर्धारण और उसके कुशल उपयोग सुनिश्चित करने के लिए जल को एक आर्थिक वस्तु के रूप में मानने पर जोर दिया गया है

भारत में वर्तमान जल मूल्य निर्धारण नीतियों की कमियाँ

  • लागत वसूली का अभाव: जल उपयोगिताओं को भारी सब्सिडी के कारण परिचालन लागत वसूलने में कठिनाई होती है, जिसके कारण बुनियादी ढाँचे का रखरखाव और सेवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: पंजाब और राजस्थान में जल संयंत्रों को दीर्घकालिक वित्तीय घाटे का सामना करना पड़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप बुनियादी ढाँचे में कम निवेश हो रहा है और जलापूर्ति में बार-बार रुकावट आ रही है।
  • भूजल का अत्यधिक दोहन: भूजल विनियमन का अभाव अनियंत्रित दोहन को बढ़ावा देता है, जिससे जलभृत में जल की कमी आती है और दीर्घकालिक संसाधन की कमी होती है।
    • उदाहरण के लिए: पंजाब में, जहाँ सिंचाई के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भरता है, अत्यधिक दोहन के कारण जल स्तर प्रति वर्ष 1 मीटर कम हो रहा है ।
  • शहरी जल की बर्बादी: एकसमान जल शुल्क और अपर्याप्त मीटरिंग के कारण शहरी घरों में आवश्यकता से अधिक जल की खपत होती है, तथा संरक्षण के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता।
    • उदाहरण के लिए: बैंगलोर और दिल्ली जैसे शहरों में गैर-राजस्व जल ह्वास बहुत अधिक होता है, जहाँ अकुशल मूल्य निर्धारण प्रणालियों के कारण घरों में जल की बड़ी मात्रा बर्बाद होती है।
  • जल अवसंरचना में कम निवेश: जल की कम दरें पाइपलाइनों और उपचार संयंत्रों जैसे आवश्यक अवसंरचना में पर्याप्त निवेश को रोकती हैं, जिससे समय-समय पर संकट उत्पन्न होता है।
    • उदाहरण के लिए: चेन्नई का वर्ष 2019 का जल संकट जल अवसंरचना में कम निवेश के कारण और भी गंभीर हो गया, जिससे पूरे शहर में जल की भारी कमी हो गई।
  • औद्योगिक दक्षता पर सीमित ध्यान: जल मूल्य निर्धारण नीतियाँ उद्योगों को जल-कुशल प्रथाओं को अपनाने या जल का पुनः उपयोग करने के लिए प्रेरित करने में विफल रहती हैं, जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक खपत और प्रदूषण होता है।
    • उदाहरण के लिए: भारत में कपड़ा और रसायन क्षेत्र में पानी की खपत बहुत अधिक होती है, तथा उन्हें जल के पुनर्चक्रण या उपयोग को कम करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता।

सुधार और अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • स्तरीकृत मूल्य निर्धारण प्रणालियाँ: स्तरीकृत जल मूल्य निर्धारण को लागू करने से यह सुनिश्चित होता है, कि उच्च खपत पर उच्च टैरिफ होगी, जिससे सभी क्षेत्रों में जल संरक्षण और सतत उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।
    • उदाहरण के लिए: इजराइल और ऑस्ट्रेलिया स्तरीकृत मूल्य निर्धारण का उपयोग करते हैं , तथा घरों और उद्योगों को अत्यधिक जल खपत को कम करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
  • जल मीटरिंग: सार्वभौमिक जल मीटरिंग, जल उपयोग का सटीक माप प्रदान करती है जिससे उचित बिलिंग और अधिक जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
    • उदाहरण के लिए: सिंगापुर ने सार्वभौमिक मीटरिंग को सफलतापूर्वक लागू किया है जिससे जल की बर्बादी कम हुई है और संरक्षण को बेहतर प्रोत्साहन मिला है।
  • कृषि जल प्रबंधन: ड्रिप सिंचाई जैसी कुशल सिंचाई तकनीकें कृषि में जल की बर्बादी को कम करती हैं, जो कि जल की खपत करने वाला एक प्रमुख क्षेत्र है।
    • उदाहरण के लिए: इजरायल ने ड्रिप सिंचाई को व्यापक रूप से अपनाया है, जिसके परिणामस्वरूप कृषि दक्षता में वृद्धि हुई है और जल का उपयोग कम हुआ है।
  • विकेन्द्रीकृत विनियमन: स्थानीयकृत जल प्रबंधन क्षेत्रीय एजेंसियों को स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर उचित मूल्य निर्धारण और संसाधनों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
    • उदाहरण के लिए: ऑस्ट्रेलिया का मुरे-डार्लिंग बेसिन मॉडल जल विनियमन को विकेन्द्रित करता है, तथा यह सुनिश्चित करता है, कि जल की कीमतें और नीतियाँ स्थानीय आवश्यकताओं और स्थितियों के अनुरूप हों।
  • प्रदूषक भुगतान सिद्धांत: प्रदूषक भुगतान सिद्धांत को लागू करने से उद्योग अपने पर्यावरणीय प्रभाव के प्रति जवाबदेह बन जाते हैं, तथा उन्हें स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
    • उदाहरण के लिए: यूरोपीय संघ, औद्योगिक जल प्रदूषण को विनियमित करने के लिए इस सिद्धांत को लागू करता है, तथा यह सुनिश्चित करता है कि उद्योग अपने पर्यावरणीय प्रभाव के लिए जिम्मेदारी लें।

जल के सतत उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए, भारत को जल मूल्य निर्धारण हेतु एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए जो समानता, दक्षता और संरक्षण पर जोर देता है । जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था, ‘पृथ्वी हर व्यक्ति की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है, लेकिन हर व्यक्ति के लालच को पूर्ण नहीं कर सकती।’ भारत के जल भविष्य की सुरक्षा और सभी क्षेत्रों के लिए जल सुरक्षा हासिल करने के लिए जल मूल्य निर्धारण में सुधार आवश्यक है।

 

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