Q. भारत में बागवानी के क्षेत्र में वैश्विक रूप से सर्वाधिक उत्पादन की महत्त्वपूर्ण क्षमता है। विश्लेषण कीजिए कि कैसे सटीक कृषि और सतत कृषि पद्धतियाँ बागवानी क्षेत्र में उत्पादकता और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ा सकती हैं।(15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • बागवानी में वैश्विक नेतृत्वकर्ता बनने के लिए भारत की क्षमताओं का परीक्षण कीजिए।
  • विश्लेषण कीजिए कि किस प्रकार परिशुद्ध खेती और संधारणीय कृषि पद्धतियाँ, बागवानी क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ा सकती हैं।
  • विश्लेषण कीजिए कि किस प्रकार परिशुद्ध खेती और संधारणीय कृषि पद्धतियाँ  बागवानी क्षेत्र में पर्यावरणीय संधारणीयता को बढ़ा सकती हैं।

उत्तर

भारत के कृषि विकास और पोषण सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण बागवानी को परिशुद्ध कृषि और संधारणीय प्रथाओं के माध्यम से बदला जा सकता है। IoT और डेटा एनालिटिक्स जैसी तकनीकों का लाभ उठाते हुए, ये दृष्टिकोण उत्पादकता बढ़ाते हैं, संसाधनों की बर्बादी को कम करते हैं और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हैं, जिससे दुनिया के दूसरे सबसे बड़े फल और सब्जी उत्पादक देश भारत के लिए इस क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व हासिल करने का मार्ग प्रशस्त होता है।

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बागवानी में वैश्विक नेतृत्वकर्ता बनने के लिए भारत की महत्त्वपूर्ण क्षमता

  • अनुकूल जलवायु क्षेत्र और कृषि क्षमता: भारत के विविध कृषि-जलवायु क्षेत्र फलों, सब्जियों और मसालों की एक विस्तृत श्रृंखला की कृषि में मदद करते हैं, जिससे पूरे वर्ष उत्पादन सुनिश्चित होता है। 
    • उदाहरण के लिए: हिमाचल प्रदेश और कश्मीर जैसे क्षेत्र उपयुक्त जलवायु के कारण सेब और चेरी उत्पादन के मामले में उत्कृष्ट हैं।
  • बागवानी के लिए उपयुक्त लघु-धारक कृषि संरचना: बागवानी, लघु-धारक कृषि के साथ अच्छी तरह से मेल खाती है, जिससे किसान छोटे भूखंडों पर उच्च-मूल्य वाली फसलें उगा सकते हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है। 
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र के किसानों ने अंगूर के निर्यात को बेहतर बनाने के लिए सह्याद्री फार्म जैसे FPO का लाभ उठाया है।
  • पौष्टिक भोजन की बढ़ती घरेलू माँग: भारत में स्वस्थ आहार के बारे में बढ़ती जागरूकता ताजा, उच्च गुणवत्ता वाले बागवानी उत्पादों की माँग को बढ़ा रही है, जिससे किसानों के लिए अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। 
    • उदाहरण के लिए: ब्रोकोली और जुकुनी जैसी विदेशी सब्जियों की बढ़ती माँग ने हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में इनकी खेती को बढ़ावा दिया है।
  • अप्रयुक्त निर्यात क्षमता: दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद, भारत वैश्विक बागवानी व्यापार के केवल 2% हिस्से का व्यापार करता है, जो निर्यात वृद्धि के अपार अवसरों को दर्शाता है। 
    • उदाहरण के लिए: बेहतर पैकेजिंग और कोल्ड चेन के कारण महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से यूरोप को होने वाले आमों के निर्यात में लगातार वृद्धि देखी गई है।
  • सरकारी सहायता और पहल: क्लस्टर विकास कार्यक्रम और गति शक्ति मिशन जैसी नीतियाँ बुनियादी ढाँचे, रसद और किसान क्षमता को मजबूत कर रही हैं, जिससे प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ रही है। 
    • उदाहरण के लिए: CDP के तहत, आंध्र प्रदेश में मैंगो क्लस्टर जैसे क्लस्टर सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से निर्यात बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

परिशुद्ध कृषि की भूमिका

  • बागवानी क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाना
    • संसाधनों का बेहतर उपयोग: ड्रिप सिंचाई और फर्टिगेशन जैसी परिशुद्ध कृषि तकनीकें जल और पोषक तत्वों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करती हैं, जिससे पैदावार बढ़ती है और बर्बादी कम होती है। 
      • उदाहरण के लिए: गुजरात के किसानों ने केले की खेती के लिए सूक्ष्म सिंचाई को अपनाया है, जिससे उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
    • वास्तविक समय पर फसल की निगरानी: IoT-आधारित सेंसर मृदा आद्रता, मौसम और फसल की गुणवत्ता की वास्तविक समय पर निगरानी करने में सक्षम हैं, जिससे सही समय पर मध्यक्षेप और बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित होता है। 
      • उदाहरण के लिए: तमिलनाडु में टमाटर उगाने वाले किसान कीटों के संक्रमण के शुरुआती लक्षणों का पता लगाने के लिए IoT सिस्टम का उपयोग करते हैं, जिससे नुकसान कम होता है।
    • ड्रोन और ऑटोमेशन से दक्षता में वृद्धि: ड्रोन बड़े खेतों की निगरानी करने और उर्वरकों या कीटनाशकों का समान रूप से छिड़काव करने में सहायता करते हैं, जिससे श्रम लागत कम होती है और उत्पादकता में सुधार होता है। 
      • उदाहरण के लिए: कर्नाटक में आम के किसान हवाई छिड़काव के लिए ड्रोन का उपयोग करते हैं, जिससे फसल सुरक्षा रसायनों का समान वितरण सुनिश्चित होता है।
  • बागवानी क्षेत्र में पर्यावरणीय संधारणीयता को बढ़ाना
    • रासायनिक उपयोग को कम करना: वैरिएबल रेट प्रौद्योगिकी का उपयोग करके, परिशुद्ध कृषि उर्वरकों और कीटनाशकों के लक्षित अनुप्रयोग को सुनिश्चित करती है, जिससे रासायनिक अपवाह और मृदा प्रदूषण कम होता है। 
      • उदाहरण के लिए: पंजाब के चावल किसानों ने परिशुद्ध कीटनाशक अनुप्रयोग के लिए ड्रोन का उपयोग करके फसल के स्वास्थ्य को बनाए रखते हुए 30% कम कीटनाशक का उपयोग हासिल किया।
    • रियलटाइम फसल निगरानी: सैटेलाइट आधारित रिमोट सेंसिंग, फसल के तनाव को पहले ही पहचान लेती है, जिससे समय रहते मध्यक्षेप संभव हो जाता है, जिससे संसाधनों का अत्यधिक उपयोग कम हो जाता है और पर्यावरण निम्नीकरण को रोका जा सकता है। 
      • उदाहरण के लिए: आंध्र प्रदेश में किसान कीटों के प्रकोप को ट्रैक करने, फसलों को बचाने और व्यापक कीटनाशकों के उपयोग से बचकर पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए रिमोट सेंसिंग का उपयोग करते हैं।
    • तकनीकी मध्यक्षेप के माध्यम से कुशल उपयोग: परिशुद्ध कृषि, मृदा की आद्रता की निगरानी करने, जल की बर्बादी को कम करने और इष्टतम सिंचाई प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिए IoT-आधारित सेंसर का उपयोग करती है, जिससे जल संसाधनों का संरक्षण होता है। 
      • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र के अंगूर के खेतों में लागू की गई स्मार्ट सिंचाई प्रणालियों ने जल के उपयोग को काफी कम कर दिया है, जिससे बेहतर फसल पैदावार और संधारणीयता सुनिश्चित होती है।

संधारणीय कृषि पद्धतियों की भूमिका

  • बागवानी क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाना
    • एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM): IPM तकनीक जैविक नियंत्रण और सांस्कृतिक प्रथाओं को मिलाकर रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करती है, जिससे संधारणीय पैदावार सुनिश्चित होती है। 
      • उदाहरण के लिए: हिमाचल प्रदेश में सेब के बागों में स्कैब रोग को नियंत्रित करने के लिए IPM का उपयोग किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च गुणवत्ता वाली उपज होती है।
    • फसल चक्र और विविधीकरण: दलहनी फसलों के साथ फसल चक्र पद्धति का उपयोग करने से मृदा की उर्वरता बढ़ती है और कीटों का प्रकोप कम होता है, जिससे दीर्घकालिक उत्पादकता सुनिश्चित होती है। 
      • उदाहरण के लिए: मध्य प्रदेश के किसान मृदा की गुणवत्ता बनाए रखने और इनपुट लागत कम करने के लिए सब्ज़ियों और दालों के बीच बारी-बारी से फसल उगाते हैं।
    • बागवानी के लिए जल संचयन: वर्षा जल संचयन करना, सूखे के दौरान सिंचाई में सहायक होता है जिससे लगातार पैदावार और संसाधन संधारणीयता सुनिश्चित होती है। 
      • उदाहरण के लिए: गुजरात की चेक-डैम पहल शुष्क क्षेत्रों में अनार के किसानों की सहायता करती है, जिससे पूरे वर्ष के दौरान जल की उपलब्धता सुनिश्चित होती है।
  • बागवानी क्षेत्र में पर्यावरणीय संधारणीयता को बढ़ाना
    • कृषि वानिकी एकीकरण: बागवानी के साथ वृक्षारोपण करने से मृदा की संरचना में सुधार होता है, अपरदन नहीं होता है, और लकड़ी, फलों व बायोमास के माध्यम से अतिरिक्त आय के स्रोत प्राप्त होते हैं। 
      • उदाहरण के लिए: केरल के मसाला खेतों में कृषि वानिकी, पहाड़ी इलाकों में मृदा अपरदन को रोकते हुए काली मिर्च और इलायची के उत्पादन को बढ़ाती है।
    • संरक्षण जुताई: खेती के दौरान मिट्टी में कम से कम गड़बड़ी से जल का रिसाव बढ़ता है, अपरदन कम होता है और दीर्घकालिक उत्पादकता के लिए मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ संरक्षित रहते हैं। 
      • उदाहरण के लिए: राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में किसान, सरसों की खेती के लिए जीरो-टिलेज पद्धतियों का उपयोग करते हैं, जिससे आद्रता का संरक्षण होता है और पैदावार में सुधार होता है।
    • माइक्रोबियल इनोक्युलेंट का उपयोग: नाइट्रोजन-फिक्सिंग बैक्टीरिया और माइकोरिज़ल कवक जैसे जैव उर्वरक पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाते हैं और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करते हैं। 
      • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र के किसान सब्जियों की खेती में एज़ोटोबैक्टर का उपयोग करके अधिक उपज प्राप्त करते हैं और इनकी इनपुट लागत भी कम होती है।

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परिशुद्ध कृषि और संधारणीय कृषि पद्धतियाँ, बागवानी क्षेत्र में भारत की क्षमता को उजागर करने की कुंजी हैं। उन्नत तकनीकों को अपनाकर और संसाधन दक्षता पर ध्यान केंद्रित करके भारत, पर्यावरणीय संधारणीयता सुनिश्चित करते हुए उत्पादकता को बढ़ा सकता है, और भविष्य के लिए बागवानी में खुद को वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित कर सकता है।

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