प्रश्न की मुख्य माँग
- वर्ष 2030 तक 23 राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्यों को प्राप्त करने में वर्तमान चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
- इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की व्यवहार्यता का आकलन करना संस्थागत क्षमताओं का आकलन कीजिए।
- इन चुनौतियों का सामना करने के लिए आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा (KM-GBF) के अनुरूप भारत द्वारा प्रस्तुत 23 राष्ट्रीय लक्ष्य जैव विविधता संरक्षण के प्रति एक महत्त्वपूर्ण प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। हालाँकि, वर्ष 2030 तक इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में कई चुनौतियाँ हैं जिनमें आवास विनाश, वित्तीय बाधाएँ आदि भी शामिल हैं।
वर्ष 2030 तक 23 राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्यों को प्राप्त करने में वर्तमान चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
- आवास विनाश और विखंडन: तीव्र शहरीकरण और औद्योगिक विस्तार के कारण प्राकृतिक पर्यावास नष्ट होते जा रहे हैं, जिससे जैव विविधता के लिए उपलब्ध स्थान कम होता जा रहा है। पारिस्थितिकी तंत्र के विखंडन से विविध प्रजातियों को सहारा देने की उनकी क्षमता कमजोर होती जा रही है।
- उदाहरण के लिए: ग्लोबल फ़ॉरेस्ट वॉच (GFW) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2001 और वर्ष 2023 के बीच लगभग 23,300 वर्ग किलोमीटर वृक्ष क्षेत्र का ह्वास हुआ है।
- आक्रामक प्रजातियाँ: गैर-देशी प्रजातियों का जानबूझकर या गलती से प्रवेश, स्थानीय प्रजातियों से प्रतिस्पर्धा करके या उनका शिकार करके स्वदेशी जैव विविधता को खतरे में डालता है।
- उदाहरण के लिए: भारत की मीठे पानी वाले जलाशयों में अफ्रीकी कैटफिश (क्लेरियस गैरीपिनस) के प्रवेश से देशी मछली प्रजातियों की संख्या में कमी आई है।
- प्रदूषण: औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि अपवाह और अनुपचारित सीवेज वायु, जल और मिट्टी को प्रदूषित कर रहे हैं जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और प्रजातियों का ह्वास हो रहा है।
- उदाहरण के लिए: भारत में गंगा, यमुना और अन्य प्रमुख नदियाँ उच्च प्रदूषण स्तर की समस्या से ग्रस्त हैं, जिसने गंगा डॉल्फ़िन जैसी जलीय प्रजातियों की जैव विविधता को चिंताजनक रूप से प्रभावित किया है।
- पर्यावरण कानूनों का कमजोर प्रवर्तन: यद्यपि भारत में जैव विविधता संरक्षण के लिए एक मजबूत कानूनी ढाँचा है (जैसे, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 जैव विविधता अधिनियम, 2002), संस्थागत अक्षमताओं और समन्वय की कमी के कारण प्रवर्तन कमजोर बना हुआ है।
- विकास और संरक्षण के बीच संघर्ष: खनन, बुनियादी ढाँचे का विस्तार और कृषि गहनता जैसी विकास परियोजनाएं अक्सर पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को नुक़सान पहुँचाती हैं।
- उदाहरण के लिए: शहरी विकास के लिए हैदराबाद में 400 एकड़ जंगल का डॉयवर्जन, प्रगति और पर्यावरण संरक्षण के बीच संघर्ष को रेखांकित करता है। यह जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को जोखिम में डालता है, जिससे संधारणीय विकल्पों के लिए विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाते हैं।
संस्थागत क्षमताओं का आकलन
- वित्तीय बाधाएँ और संसाधन जुटाना: वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा कोष में कमी के कारण भारत को जैव विविधता संरक्षण के लिए पर्याप्त धनराशि प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- डेटा की कमी और निगरानी की चुनौतियाँ: जैव विविधता से जुड़े मजबूत डेटा और निगरानी प्रणालियों की कमी से प्रभावी संरक्षण में बाधा आती है।
- उदाहरण के लिए: 85% से अधिक देश प्रकृति के प्रति वचनबद्धता प्रस्तुत करने की संयुक्त राष्ट्र की समय-सीमा से चूक जाते हैं।
- संस्थागत क्षमता और समन्वय: संस्थागत विखंडन और सीमित स्थानीय क्षमता, समन्वय और प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डालती है।
- उदाहरण के लिए: केरल राज्य जैव विविधता बोर्ड के एकीकरण के प्रयास मजबूत स्थानीय ढाँचे की आवश्यकता को उजागर करते हैं।
- सामाजिक-सांस्कृतिक और आजीविका संबंधी विचार: जैव विविधता रणनीतियों के अंतर्गत स्थानीय समुदायों की आजीविका और सांस्कृतिक प्रथाओं के साथ संरक्षण पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: प्रभावी संरक्षण के लिए पारंपरिक ज्ञान का एकीकरण महत्वपूर्ण है।
- नीतिगत सुसंगति और शासन: परस्पर विरोधी विकासात्मक प्राथमिकताएँ और शासन संबंधी मुद्दे व्यापक नीतियों में जैव विविधता के एकीकरण को जटिल बनाते हैं।
- जन सहभागिता और जागरूकता: जैव विविधता संरक्षण में सक्रिय सार्वजनिक भागीदारी, अपर्याप्त जागरूकता और क्षमता के कारण सीमित है।
- उदाहरण के लिए: समुदाय-आधारित निगरानी को स्थानीय भागीदारी के संदर्भ में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
आगे की राह
- वित्तीय बाधाएँ और संसाधन संवर्धन: निजी क्षेत्र के निवेश को संवर्धित करना, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सहायता बढ़ाना और जैव विविधता बांड जैसे अभिनव वित्तपोषण तंत्र स्थापित करने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: वित्तीय अंतर को कम करने के लिए हरित वित्तपोषण निकायों और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कोषों के साथ साझेदारी को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- डेटा अंतराल और निगरानी चुनौतियाँ: राष्ट्रीय डेटा संग्रह तंत्र को मजबूत करना चाहिए, उन्नत निगरानी तकनीकों (जैसे, उपग्रह इमेजिंग) को अपनाना चाहिए और डेटा साझा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: डेटा को समेकित करने और नियमित रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के लिए जैव विविधता सूचना प्रणाली (BIS) जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करना चाहिए।
- संस्थागत क्षमता और समन्वय: जैव विविधता से संबंधित भूमिकाओं के लिए प्रशिक्षण, संसाधन और स्पष्ट आदेश प्रदान करके अंतर-विभागीय समन्वय और स्थानीय सरकार की क्षमताओं को मजबूत करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: निर्बाध समन्वय और कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए राज्य और जिला स्तर पर समर्पित जैव विविधता प्रकोष्ठों की स्थापना करनी चाहिए।
- सामाजिक-सांस्कृतिक और आजीविका संबंधी विचार: निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों और स्वदेशी समूहों को शामिल करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संरक्षण प्रयास पारंपरिक ज्ञान और आजीविका के साथ संरेखित हों।
- उदाहरण के लिए: केरल के पवित्र उपवन जैसी समुदाय-आधारित संरक्षण परियोजनाओं को लागू करना चाहिए, जहाँ स्थानीय ज्ञान जैव विविधता संरक्षण में सहायक सिद्ध होता है।
- नीतिगत सुसंगतता और शासन: जैव विविधता लक्ष्यों को व्यापक विकास नीतियों के साथ संरेखित करना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि आर्थिक विकास के दौरान पारिस्थितिक संधारणीयता से समझौता न हो।
- उदाहरण के लिए: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) और अन्य नीतिगत ढाँचों में जैव विविधता संबंधी विचारों को एकीकृत करना चाहिए।
- सार्वजनिक सहभागिता और जागरूकता: मीडिया अभियानों, स्कूल कार्यक्रमों और समुदाय स्तर पर जागरूकता पहलों के माध्यम से जैव विविधता से संबंधित सार्वजनिक शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: “सेव द टाइगर” अभियान के समान, संरक्षण गतिविधियों में नागरिकों को शामिल करने के लिए राष्ट्रीय जैव विविधता जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिये।
हालाँकि कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढाँचे के प्रति भारत की प्रतिबद्धता मजबूत इरादे को दर्शाती है परंतु वर्ष 2030 तक 23 राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए नीति घोषणाओं से कहीं अधिक की आवश्यकता है। इसके लिए मजबूत संस्थागत समन्वय, अधिक फंडिंग, प्रभावी प्रवर्तन और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता है। कार्यान्वयन और क्षमता में मौजूदा अंतराल को संबोधित किए बिना, लक्ष्य को प्राप्त करना असम्भव के समान है। इस जैव विविधता दृष्टिकोण को वास्तविकता में बदलने के लिए एक सतत, समावेशी और विज्ञान समर्थित दृष्टिकोण आवश्यक है।
विशेष
भारत के कुछ जैव विविधता लक्ष्य
संरक्षण और सतत प्रबंधन
1. क्षेत्रों का संरक्षण: जैव विविधता की रक्षा के लिए 30% क्षेत्रों को प्रभावी ढंग से संरक्षित किया गया है।
2. जैव विविधता एकीकरण: सभी स्तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में जैव विविधता के विविध मूल्यों को एकीकृत करना चाहिए।
3. उच्च जैवविविधता वाले क्षेत्रों के लिए योजना बनाना: यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उच्च जैवविविधता वाले क्षेत्रों के ह्वास को कम करने के लिए सभी क्षेत्रों की योजना बनाई जानी चाहिए या उनका प्रबंधन किया जाना चाहिए।
समानता और भागीदारी
4. सामुदायिक भागीदारी: स्वदेशी लोगों, स्थानीय समुदायों, महिलाओं और युवाओं के लिए भागीदारी, न्याय और अधिकार सुनिश्चित करना चाहिए।
5. न्यायसंगत लाभ: आनुवंशिक संसाधनों, डिजिटल अनुक्रम जानकारी और संबंधित पारंपरिक ज्ञान से उत्पन्न होने वाले लाभों के निष्पक्ष और न्यायसंगत बंटवारे को बढ़ावा देना चाहिए।
संधारणीय प्रथाएँ
6. सतत उपभोग: विभिन्न क्षेत्रों में सतत उपभोग विकल्पों को सक्षम बनाना चाहिये।
7. खाद्य अपशिष्ट में कमी: संसाधनों की बर्बादी को कम करने के लिए खाद्य अपशिष्ट में कमी रानी चाहिए।
प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य
8. प्रदूषण में कमी: प्रदूषण में कमी लानी होगी, जिसमें पोषक तत्वों के ह्वास और कीटनाशक जोखिम को कम करने पर ध्यान देना होगा।
9. आक्रामक प्रजातियों पर नियंत्रण: आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रवेश और स्थापना की दर को 50% तक कम करना। |
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