प्रश्न की मुख्य माँग
- चर्चा कीजिए कि किस प्रकार भारत का स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन विकास, प्रौद्योगिकी के संबंध में आत्मनिर्भरता को प्रदर्शित करता है।
- भारत के स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन विकास में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में आई भू-राजनीतिक चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- विश्लेषण कीजिए कि यह उपलब्धि भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं, वैश्विक साझेदारी और रणनीतिक स्वायत्तता पर किस प्रकार प्रभाव डालती है।
- महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी विकास में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
|
उत्तर
भारत का स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन विकास जिसकी शुरुआत गगनयान के CE-20 इंजन हॉट टेस्ट से हुई, भारी-भरकम प्रक्षेपण क्षमताओं में तकनीकी आत्मनिर्भरता को दर्शाता है। यह दशकों के प्रतिबंधों के बाद हुआ है, विशेष रूप से वर्ष 1992 में रूसी इंजन हस्तांतरण पर अमेरिका के नेतृत्व वाली MTCR द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बाद क्रायोजेनिक्स पर महारत हासिल करने से अब अंतरिक्ष मिशन और डीप-स्पेस अन्वेषण में भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करती है।
स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन विकास के माध्यम से तकनीकी आत्मनिर्भरता
- स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास तथा विनिर्माण: भारत ने घरेलू स्तर पर CE20 क्रायोजेनिक इंजन विकसित किया, जिससे प्रणोदन प्रौद्योगिकी में इंजीनियरिंग उत्कृष्टता और आत्मनिर्भरता का प्रदर्शन हुआ, तथा विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम हुई।
- उदाहरण के लिए: ISRO के CE20 इंजन ने चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 को संचालित किया, जिससे डीप-स्पेस मिशनों के लिए उन्नत प्रणोदन प्रणाली के निर्माण में भारत की क्षमता का प्रदर्शन हुआ।
- लागत-प्रभावी और स्केलेबल नवाचार: CE20 इंजन महंगे विदेशी क्रायोजेनिक इंजनों का एक लागत-प्रभावी विकल्प है, जो बार-बार होने वाले अंतरिक्ष मिशनों के लिए आर्थिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण के लिए: भारत के क्रायोजेनिक इंजन की विकास लागत अमेरिकी और रूसी विकल्पों की तुलना में काफी कम थी, जिससे किफायती अंतरिक्ष अन्वेषण संभव हुआ।
- पेलोड क्षमता में वृद्धि: क्रायोजेनिक इंजन पेलोड दक्षता को बढ़ाते हैं, जिससे भारी उपग्रहों को भूस्थिर और डीप स्पेस कक्षाओं में स्थापित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: CE20 द्वारा संचालित LVM3 प्रक्षेपण यान ने GSAT-19 को भूस्थिर कक्षा में सफलतापूर्वक पहुँचाया जिससे भारत के संचार उपग्रह बुनियादी ढाँचे में सुधार हुआ।
- मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए सहायता: CE20 का मानव-रेटेड संस्करण भारत के पहले मानवयुक्त मिशन को गगनयान के तहत आगे बढ़ाएगा जिससे भारत की अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ावा मिलेगा।
- उदाहरण के लिए: गगनयान में उन्नत CE20 का उपयोग किया जाएगा जिससे भारत, मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता वाले देशों के विशिष्ट समूह में शामिल हो जाएगा।
- उन्नत अंतरग्रहीय क्षमताएँ: CE20 की पुनः प्रज्वलन क्षमता दीर्घावधि के मिशनों में सहायता करती है, जो अंतरग्रहीय अन्वेषण के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिए: मंगल और उससे आगे के भविष्य के भारतीय मिशनों में CE20-U का उपयोग किया जायेगा, जिससे मिड कोर्स करेक्शन और सटीक लैंडिंग की अनुमति मिलेगी।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में भू-राजनीतिक चुनौतियाँ
- अमेरिका-रूस दबाव ने हस्तांतरण को रोका: अमेरिका ने रूस पर भारत को क्रायोजेनिक तकनीक हस्तांतरण से इनकार करने का दबाव बनाया, जिसमें प्रसार संबंधी चिंताओं का हवाला दिया गया जबकि उसने स्वयं, भारत को उच्च लागत पर अपने स्वयं के इंजन की पेशकश की थी।
- उदाहरण के लिए: KVD-1 इंजन पर रूस-भारत सौदा अमेरिकी प्रतिबंधों के तहत प्रतिबंधित था, जिससे ISRO को अपनी क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
- बाधाओं के रूप में प्रतिबंध: पश्चिमी देश अक्सर रणनीतिक क्षेत्रों में भारत की प्रगति को रोकने के लिए
प्रौद्योगिकी प्रतिबंधों का उपयोग करते हैं, जिससे अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की प्रगति धीमी हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) प्रतिबंधों ने भारत की विदेशी क्रायोजेनिक प्रणोदन प्रणालियों तक पहुंच में देरी की।
- सीमित विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता: उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुंच के कारण भारत को आयातित इंजनों पर निर्भर होना पड़ा, जिससे महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में देरी हुई।
- उदाहरण के लिए: ISRO ने शुरू में जापान और अमेरिका से क्रायोजेनिक इंजन खरीदने की योजना बनाई थी, लेकिन उच्च लागत और प्रौद्योगिकी प्रतिबंधों ने आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाने को मजबूर कर दिया।
- अंतरिक्ष कार्यक्रमों में रणनीतिक स्वायत्तता: क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी का भारत का स्वदेशी विकास, विदेशी देशों पर निर्भरता को कम करता है और आपूर्ति श्रृंखला की सुभेद्यताओं को कम करता है।
- उदाहरण के लिए: CE20– संचालित LVM3 ने विदेशी प्रक्षेपण वाहनों पर निर्भरता को समाप्त कर दिया, जिससे स्वतंत्र उपग्रह प्रक्षेपण संभव हो गया।
- बाह्य बाधाओं पर काबू पाना: ISRO ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिए रिवर्स इंजीनियरिंग और स्वदेशी विशेषज्ञता का लाभ उठाया, जिससे एक सशक्त घरेलू अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिला।
- उदाहरण के लिए: छह रूसी KVD-1 इंजनों से सीखते हुए ISRO ने CE20 विकसित किया जिससे एक संधारणीय और स्वतंत्र क्रायोजेनिक इंजन कार्यक्रम सुनिश्चित हुआ।
भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं, वैश्विक साझेदारी और सामरिक स्वायत्तता पर प्रभाव
- भारी पेलोड क्षमता में वृद्धि: स्वदेशी CE20 इंजन, भारत को भूस्थिर कक्षा में भारी पेलोड लॉन्च करने की अनुमति देता है, जो उन्नत उपग्रह तैनाती और डीप-स्पेस मिशनों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिए: CE20 द्वारा संचालित LVM3 ने उच्च-डेटा संचार उपग्रह GSAT–19 को प्रक्षेपित किया , जिससे भारत की आर्बिटल असेट (Orbital Asset) मजबूत हुई।
- डीप स्पेस और ह्यूमन स्पेसफ्लाइट एडवांसमेंट: क्रायोजेनिक री-इग्निशन, मल्टी-ऑर्बिट मिशन की सुविधा प्रदान करता है, जो अंतरग्रहीय यात्रा, लूनर लैंडिंग और गगनयान जैसे मानवयुक्त मिशन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिए: CE20-U इंजन का री-इग्निशन परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि भविष्य के मंगल और चंद्रमा मिशनों में मिड-कोर्स करेक्शन क्षमताएँ होंगी।
- अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष सहयोग को मजबूत करना: स्वदेशी क्रायोजेनिक सफलता वैश्विक अंतरिक्ष गठबंधनों में भारत की विश्वसनीयता को बढ़ाती है व संयुक्त मिशनों और उपग्रह प्रक्षेपणों में साझेदारी को बढ़ावा देती है ।
-
- उदाहरण के लिए: NASA-ISRO सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR) एक संयुक्त पृथ्वी अवलोकन मिशन है, जो भारत की प्रक्षेपण क्षमताओं का लाभ उठाएगा।
- वाणिज्यिक अंतरिक्ष नेतृत्व: लागत प्रभावी क्रायोजेनिक इंजनों के साथ, भारत वाणिज्यिक उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए वैश्विक ग्राहकों को आकर्षित कर सकता है, जिससे इसकी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।
- उदाहरण के लिए: ISRO द्वारा सह-लॉन्च किया गया वनवेब उपग्रह समूह, वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भारत के प्रतिस्पर्धी लाभ को दर्शाता है।
- विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करना: स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ, भारत अब विदेशी प्रणोदन तकनीक पर निर्भर नहीं है, जिससे निर्बाध अंतरिक्ष संचालन सुनिश्चित होता है।
-
- उदाहरण के लिए: गगनयान मिशन मानव-रेटेड CE20 इंजन का उपयोग करेगा, जिससे पूर्ण स्वदेशी तकनीक की तैनाती सुनिश्चित होगी।
- राष्ट्रीय सुरक्षा के स्तंभ के रूप में अंतरिक्ष: क्रायोजेनिक प्रणोदन भारत की सैन्य निगरानी, नेविगेशन और रणनीतिक प्रतिरोध को बढ़ाता है, जिससे विदेशी प्रक्षेपण प्रदाताओं पर निर्भरता कम होती है।
- उदाहरण के लिए: भारतीय प्रक्षेपण वाहनों का उपयोग करके तैयार की गई NavIC उपग्रह प्रणाली , रक्षा और नागरिक उपयोग के लिए स्वतंत्र GPS क्षमता प्रदान करती है।
महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी विकास में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भूमिका
- ज्ञान के आदान-प्रदान के माध्यम से नवाचार में तेजी लाना: राष्ट्रों के बीच सहयोग, अंतरिक्ष, AI और जैव प्रौद्योगिकी जैसे उच्च तकनीक क्षेत्रों में ज्ञान-साझाकरण, संयुक्त प्रयोगों और विशेषज्ञता हस्तांतरण को सक्षम करके अनुसंधान और विकास को बढ़ाता है।
- विकास लागत और जोखिम कम करना: संसाधनों और विशेषज्ञता को एकत्रित करने से अनुसंधान और विकास लागत कम होती है, विफलताएं कम होती हैं, और तेजी से प्रौद्योगिकी सफलताएं मिलती हैं, विशेषकर अंतरिक्ष और रक्षा जैसे उच्च लागत वाले क्षेत्रों में।
- उदाहरण के लिए: ITER (अंतर्राष्ट्रीय तापनाभिकीय प्रायोगिक रिएक्टर), परमाणु संलयन अनुसंधान में वैश्विक प्रयासों को एकजुट करता है, जिससे व्यक्तिगत राष्ट्रीय निवेश का बोझ कम होता है।
- तकनीकी बाधाओं पर काबू पाना: राष्ट्रों को महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी तक पहुँच प्राप्त होती है जो अन्यथा भू-राजनीतिक कारणों या तकनीकी अंतराल के कारण प्रतिबंधित हो सकती है, जिससे आपसी प्रगति को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण के लिए: फ्रांस के साथ भारत के सहयोग से ISRO को विकास इंजन विकसित करने में मदद मिली जो भारत के प्रक्षेपण वाहनों का एक प्रमुख घटक है।
- वैश्विक मानकों और विनियमों को मजबूत करना: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, सीमाओं के पार प्रौद्योगिकी के मानकीकरण को सुनिश्चित करता है व उभरते क्षेत्रों में अंतर-संचालन, सुरक्षा और नैतिक अनुपालन को बढ़ाता है।
- उदाहरण के लिए: MTCR (मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था), मिसाइल प्रौद्योगिकी के प्रसार को विनियमित करने में मदद करता है तथा सुरक्षा और नवाचार को संतुलित करता है।
क्रायोजेनिक इंजन में महारत हासिल करने से भारत की अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी, विदेशी लॉन्चरों पर निर्भरता कम होगी और आर्टेमिस समझौते जैसी पहलों के तहत वैश्विक साझेदारी को बढ़ावा मिलेगा। हालाँकि, पुन: प्रयोज्य रॉकेट, अंतरग्रहीय प्रणोदन और क्वांटम संचार में सफलता के लिए सहयोगी अनुसंधान और विकास महत्त्वपूर्ण बना हुआ है। आत्मनिर्भरता और सहयोग के बीच संतुलन, भारत के भविष्य के अंतरिक्ष नेतृत्व और रणनीतिक स्वायत्तता को परिभाषित करेगा ।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments