Q. "भारत में कुशल श्रम की कमी के साथ-साथ शिक्षित बेरोजगारी का विरोधाभास देखने को मिल रहा है।" उभरते रोजगार परिदृश्य के आलोक में इस कथन की आलोचनात्मक जाँच कीजिए और शिक्षा को बाजार की जरूरतों के साथ जोड़ने के उपाय भी सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • उभरते रोजगार परिदृश्य के आलोक में चर्चा कीजिए कि किस प्रकार भारत कुशल श्रम की कमी के साथ-साथ शिक्षित बेरोजगारी की विरोधाभासी स्थिति का सामना कर रहा है ।
  • इस विरोधाभास को दूर करने के लिए की गई प्रगति का परीक्षण कीजिए।
  • शिक्षा को बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने के उपाय सुझाइये।

उत्तर

स्नातकों की संख्या में वृद्धि के बावजूद श्रम बाजार की कौशल आवश्यकताओं के साथ तालमेल न बिठा पाने के लिए भारत की शिक्षा प्रणाली को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। वर्ष 2023-24 तक, सरकारी अनुमानों के अनुसार 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए बेरोजगारी दर 3.2% बताई गई थी। कुशल श्रम की कमी के साथ-साथ शिक्षित बेरोजगारी का यह विरोधाभास, शिक्षा और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच के अंतर को उजागर करता है।

श्रम की कमी का विरोधाभास

  • स्नातकों की अधिक संख्या: भारत में प्रतिवर्ष 10 मिलियन लोग स्नातक उत्तीर्ण हैं, लेकिन व्यावहारिक कौशल की कमी के कारण उनमें से अधिकांश रोजगार योग्य नहीं होते हैं।
    • उदाहरण के लिए: एक हालिया रिपोर्ट से पता चला है, कि ओडिशा में जिला न्यायाधीश पदों के लिए 263 विधि आवेदक, अर्हता परीक्षा उत्तीर्ण करने में असफल रहे।
  • कौशल में अनियमितता: स्नातक व्यावहारिक कौशल की अनदेखी करते हुए व्हाइट कॉलर नौकरियों की तलाश करते हैं जिसके परिणामस्वरूप व्यावहारिक भूमिकाओं के लिए श्रमिकों की कमी हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: उच्च माँग के बावजूद, ब्लू कॉलर वाले काम के प्रति सामाजिक कलंक के कारण इलेक्ट्रीशियन और बढ़ई की कमी है।
  • अकुशल शिक्षा प्रणाली: इसमें अकादमिक प्रमाण-पत्रों पर ही ध्यान दिया जाता है, तथा उद्योग-विशिष्ट व्यावहारिक प्रशिक्षण और कौशल की उपेक्षा की जाती है।
    • उदाहरण के लिए: कई कॉलेज स्नातकों में सैद्धांतिक ज्ञान को वास्तविक दुनिया की स्थितियों में लागू करने की क्षमता का अभाव होता है, जिसके कारण वे रोजगार के योग्य नहीं रह पाते।
  • प्रौद्योगिकीय विस्थापन: AI और स्वचालन कई व्हाइट कॉलर नौकरियों के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं लेकिन कुशल श्रम ऐसे परिवर्तनों के प्रति अधिक प्रत्यास्थ होता है।
    • उदाहरण के लिए: कोडिंग और डेटा विश्लेषण जैसे क्षेत्रों में AI का उदय ऐसी नौकरियों को अप्रचलित बना रहा है, जबकि इलेक्ट्रीशियन और प्लंबर अपरिहार्य बने हुए हैं।
  • अनौपचारिक क्षेत्र को कम आंकना: कई स्नातक अनौपचारिक रोजगार बाजार को नजरअंदाज कर देते हैं, जहाँ कुशल श्रमिक फलते-फूलते हैं और अच्छी कमाई करते हैं।
    उदाहरण के लिए: एक रसोइया जो स्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ देता है, कई घरों में काम करके 30,000-40,000 रुपये मासिक कमाता है, जो कई स्नातकों की कमाई से कहीं अधिक है।

विरोधाभास को दूर करने की दिशा में प्रगति 

  • कौशल विकास पहल: सरकार ने कौशल आधारित नौकरियों में प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसी योजनाएँ प्रारंभ कीं। 
    • उदाहरण के लिए: PMKVY ने प्लंबिंग, इलेक्ट्रीशियन कार्य और IT जैसे क्षेत्रों में लाखों लोगों को प्रशिक्षित किया है, जिससे ब्लू-कॉलर क्षेत्रों में रोजगार की संभावना में सुधार हुआ है।
  • स्टार्टअप और नवाचार: विशिष्ट रोजगार सृजन में वृद्धि से लोगों को परंपरागत क्षेत्रों के बाहर अपरंपरागत, अच्छे वेतन वाले अवसर मिल रहे हैं।
    • उदाहरण के लिए: कुत्ता घुमाने वाले, कबूतर जाल बनाने वाले, तथा कुत्तों की देखभाल करने वालों के लिए अब बाजार में जगह है, जो शहरी क्षेत्रों में आकर्षक आय प्रदान करते हैं।
  • निजी क्षेत्र का सहयोग: कम्पनियाँ, उद्योग जगत की आवश्यकताओं के अनुरूप होने के लिए शैक्षणिक संस्थानों के साथ साझेदारी कर रही हैं।
    • उदाहरण के लिए: TCS और Wipro, प्रौद्योगिकी से संबंधित क्षेत्रों में प्रमाणन कार्यक्रम प्रदान करते हैं जो IT उद्योग में कौशल अंतर को सीधे संबोधित करते हैं।
  • व्यावसायिक शिक्षा: व्यावसायिक प्रशिक्षण पर अधिक बल दिया जा रहा है, जिससे व्यक्ति प्रारम्भिक अवस्था में ही व्यावहारिक कौशल प्राप्त कर सकें।
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) ऐसे कार्यक्रम चलाता है जो निर्माण, स्वास्थ्य सेवा और आतिथ्य जैसे क्षेत्रों में व्यावहारिक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • ग्रामीण रोजगार योजनाएँ: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) जैसी सरकारी पहल ग्रामीण क्षेत्रों में कुशल श्रमिकों की कमी को दूर कर रही है।
    • उदाहरण के लिए:  मनरेगा अकुशल श्रमिकों के लिए नौकरी की सुरक्षा प्रदान करता है और निर्माण व बुनियादी ढांचे में कौशल विकास को प्रोत्साहित करता है।

शिक्षा को बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने के उपाय

  • उद्योग-उन्मुख पाठ्यक्रम: शिक्षा प्रणालियों को ऐसा पाठ्यक्रम अपनाना चाहिए जो सैद्धांतिक ज्ञान की अपेक्षा व्यावहारिक कौशल पर अधिक बल देता हो।
    • उदाहरण के लिए: स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रमों में कोडिंग, डिजिटल साक्षरता और व्यावसायिक विषयों को एकीकृत करने से छात्र बाजार के लिए अधिक तैयार हो सकते हैं।
  • उद्यमशीलता को प्रोत्साहन: विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को स्टार्टअप के लिए सहायता प्रदान करके छात्रों के बीच उद्यमशीलता की मानसिकता को बढ़ावा देना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: कई शीर्ष विश्वविद्यालय अब छात्रों को अपने व्यावसायिक विचारों को विकसित करने में मदद करने के लिए उद्यमिता पाठ्यक्रम और इनक्यूबेशन केंद्र प्रदान करते हैं।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सरकार को उद्योग-प्रासंगिक प्रशिक्षण और प्लेसमेंट के अवसर करने के लिए निजी क्षेत्र के साथ सहयोग करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों में छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए सीमेंस (Siemens) और कौशल विकास मंत्रालय के बीच गठजोड़ कौशल अंतर को कम कर सकता है।
  • सॉफ्ट स्किल्स का एकीकरण: तकनीकी प्रशिक्षण के साथ-साथ संचार, समस्या समाधान और टीम वर्क जैसे सॉफ्ट स्किल्स का विकास करना रोजगार के लिए आवश्यक है।
    • उदाहरण के लिए: इंफोसिस जैसी कंपनियों ने स्नातकों की रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए नेतृत्व और संचार कौशल पर केंद्रित कार्यक्रम शुरू किए हैं।
  • आजीवन शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित करना: तेजी से बदलते रोजगार बाजार के अनुकूल होने के लिए निरंतर शिक्षा और पुनः कौशल विकास को बढ़ावा देने वाली प्रणाली की आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिए: Coursera और Udemy जैसे प्लेटफॉर्म पेशेवरों को पुनः कौशल विकास के अवसर प्रदान करते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वे अपने क्षेत्र में प्रासंगिक बने रहें।

भारत में विरोधाभास की स्थिति, शिक्षा उत्पादन और बाजार की आवश्यकताओं के बीच बेमेल में निहित है। शिक्षा प्रणाली में सुधार, व्यावसायिक प्रशिक्षण, उद्योग-अकादमिक संबंधों और कौशल-आधारित शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने से युवाओं को नौकरी की आवश्यकताओं के साथ जोड़ा जा सकेगा। PMKVY, राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन और उद्यमिता कार्यक्रमों का विस्तार करने से अपार संभावनाएं खुलेंगी, जिससे सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।

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