Q. भारत ने कार्यान्वयन चुनौतियों का सामना करते हुए 'पंचामृत' जैसी महत्वाकांक्षी पर्यावरणीय प्रतिबद्धताएँ सुनिश्चित की हैं। आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए कि कैसे पारिस्थितिक स्थिरता को विकास संबंधी आकांक्षाओं के साथ एकीकृत किया जा सकता है जबकि भविष्य की पीढ़ियों के प्रति अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों एवं नैतिक जिम्मेदारी को पूरा किया जा सकता है। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत द्वारा निर्धारित पंचामृत लक्ष्यों पर चर्चा कीजिए।
  • इन पंचामृत लक्ष्यों को लागू करने में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • विश्लेषण कीजिए कि किस प्रकार भावी पीढ़ियों के प्रति अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करते हुए पारिस्थितिक संधारणीयता को विकास आकांक्षाओं के साथ एकीकृत किया जा सकता है।

उत्तर

ग्लासगो (वर्ष 2021) में COP-26 शिखर सम्मेलन में  भारत ने अपनी दूरदर्शी ‘पंचामृत’ प्रतिबद्धताओं की घोषणा की, जिसमें वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन, वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से 50% ऊर्जा और उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करना शामिल है। ये लक्ष्य जलवायु कार्रवाई में भारत के वैश्विक नेतृत्व को प्रदर्शित करते हैं। हालाँकि, पर्याप्त गरीबी और औद्योगीकरण की आवश्यकताओं वाले देश में आर्थिक विकास के साथ पारिस्थितिक संधारणीयता को एकीकृत करना बहुआयामी चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।

Panchamrit

भारत के पंचामृत लक्ष्य

कार्यान्वयन चुनौतियाँ

  • राज्यों में नीति कार्यान्वयन में असमानता: राज्यों के बीच भिन्न-भिन्न क्षमताओं, राजनीतिक प्राथमिकताओं और संसाधन आवंटन के कारण पर्यावरण कार्यक्रमों का क्रियान्वयन असमान है।
  • अपर्याप्त जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ गतिशीलता और जलवायु-प्रत्यास्थ बुनियादी ढांचे को बढ़ाने में वित्तपोषण की कमी है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत को वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए 10.1 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान प्रवाह कम है।
  • विकास और संरक्षण के बीच संघर्ष: शहरीकरण, बुनियादी ढांचे का विस्तार और औद्योगिकीकरण अक्सर पर्यावरण संरक्षण के साथ संघर्ष करते हैं।
  • प्रदूषण और निम्नीकरण: प्रमुख योजनाओं के बावजूद वायु, जल और मृदा प्रदूषण अभी भी जारी है, जिससे स्वास्थ्य और उत्पादकता प्रभावित हो रही है। 
    • उदाहरण के लिए: विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2023 के अनुसार, 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 9 भारत में थे।
  • वनोन्मूलन और जैव विविधता ह्वास: अतिक्रमण, अवैध कटाई और खराब योजनाबद्ध परियोजनाओं के कारण वन और आवास निरंतर कम हो रहे हैं।

विकास आकांक्षाओं के साथ पारिस्थितिक स्थिरता को एकीकृत करना

सकारात्मक

  • दीर्घकालिक आर्थिक विकास और संसाधन सुरक्षा: सतत विकास संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करता है और समय के साथ लागत को कम करता है जिससे पर्यावरणीय क्षरण से होने वाले आर्थिक नुकसान को रोका जा सकता है।
  • बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणाम: स्वच्छ वायु, जल और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र से रोग का बोझ और स्वास्थ्य देखभाल की लागत कम होती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं की पूर्ति: अंतर्राष्ट्रीय समझौतों (जैसे, पेरिस समझौता) के साथ नीतियों को संरेखित करना, भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करता है और जलवायु वित्त को आकर्षित करता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत पवन और सौर ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है और‌ वह  सौर ऊर्जा उत्पादन को दोगुना करते हुए वर्ष 2030 तक 50% स्वच्छ ऊर्जा का लक्ष्य रखता है।
  • जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का संरक्षण: प्राकृतिक आवासों का संरक्षण, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बनाए रखता है जो भोजन, जल और जलवायु विनियमन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • नैतिक प्रबंधन और अंतर-पीढ़ीगत समानता: संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करना, भावी पीढ़ियों के प्रति नैतिक जिम्मेदारी का सम्मान करता है।

चुनौतियाँ

  • आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संघर्ष: तीव्र औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और बुनियादी ढाँचे का विस्तार अक्सर संरक्षण प्रयासों में बाधा डालता है, जिसके परिणामस्वरूप पर्यावास ह्वास होता है और प्रदूषण बढ़ता है।
  • अपर्याप्त जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी पहुँच: अपर्याप्त वित्त पोषण और हरित प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुँच,  संधारणीय प्रथाओं को बड़े पैमाने पर अपनाने में बाधा डालती है।
  • कमजोर प्रवर्तन और शासन अंतराल: सीमित संस्थागत क्षमता, भ्रष्टाचार या प्रतिस्पर्धी प्राथमिकताओं के कारण पर्यावरण कानूनों को अक्सर खराब तरीके से लागू किया जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के कंट्री-वाइज प्लास्टिक डेटा से पता चला है कि भारत अपने 85 प्रतिशत प्लास्टिक अपशिष्ट का कुप्रबंधन करता है।
  • कार्यान्वयन में सामाजिक और क्षेत्रीय असमानताएँ: हरित विकास और संधारणीयता संबंधी पहलों से अक्सर शहरी क्षेत्रों को अधिक लाभ होता है, तथा ग्रामीण, जनजातीय और हाशिए पर स्थित समुदाय पीछे रह जाते हैं।
  • घरेलू आवश्यकताओं के साथ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को संतुलित करना: वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने पर अधिक ध्यान देने से गरीबी उन्मूलन, ऊर्जा पहुँच और रोजगार जैसे घरेलू मुद्दों का समाधान करने में विलम्ब और समस्या का सामना करना पड़ सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: CEA के अनुसार, मार्च 2024 तक, जीवाश्म ईंधन- कोयला, गैस और लिग्नाइट- स्थापित क्षमता का 54 प्रतिशत तक बढ़ गए, लेकिन 77 प्रतिशत बिजली उत्पन्न कर रहे थे।

आगे की राह

  • नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार को बढ़ावा देना: जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और उत्सर्जन कम करने के लिए सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश में तेजी लानी चाहिए।
  • हरित वित्तपोषण तंत्र को मजबूत करना: जलवायु वित्तपोषण अंतर को कम करने और संधारणीय बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय हरित वित्त जुटाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: भारतीय रिजर्व बैंक ने जलवायु-अनुकूल परियोजनाओं में धन लगाने के लिए वर्ष 2023 में हरित जमा के लिए एक रूपरेखा शुरू की।
  • पर्यावरण शासन और कानून प्रवर्तन को बढ़ावा देना: पर्यावरण कानूनों और लक्ष्यों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए संस्थागत क्षमता का निर्माण करना और निगरानी बढ़ाना।
  • समुदाय-आधारित और समावेशी विकास को बढ़ावा देना: समानता और स्वामित्व सुनिश्चित करने के लिए संधारणीयता पहल की योजना बनाने और कार्यान्वयन में स्थानीय समुदायों, विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों को शामिल करना चाहिए।

भारत को हरित विकास का मार्ग अपनाना चाहिए जहाँ पारिस्थितिक सीमाओं का सम्मान किया जाए, विकास समावेशी बना रहे, तथा अंतर-पीढ़ीगत समानता केंद्रीय हो। नीति सुधार, नवाचार, वित्त और नागरिक भागीदारी को मिलाकर एक सहक्रियात्मक रणनीति, महत्वाकांक्षा और कार्रवाई के बीच संतुलन बनाने की कुंजी है।

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