Q. भारत प्रायः रूस के साथ अपने संबंधों को ‘सर्वोत्तम मित्र देश’ के रूप में प्रस्तुत करता है, किंतु यह साझेदारी वास्तविक रूप से उतनी मजबूत और गतिशील नहीं बन पाई है। दोनों देशों के बीच यह दीर्घकालिक राजनीतिक सहजता व्यापक, संरचनात्मक साझेदारी में क्यों परिवर्तित नहीं हो सकी? साथ ही, वे कौन-से प्रमुख क्षेत्र हैं जहाँ भारत और रूस भविष्य में अधिक गहन एवं रणनीतिक सहयोग विकसित कर सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • राजनीतिक सहजता व्यापक साझेदारी में परिवर्तित होने में  क्यों विफल होती है। 
  • सहयोग में वृद्धि के प्रमुख क्षेत्र। 

उत्तर

भारत की ‘सर्वोत्तम मित्र देश’ की संज्ञा रूस के साथ गहरी राजनीतिक गर्मजोशी और रणनीतिक सहजता को दर्शाती है। फिर भी संबंध आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर बने हुए हैं, तथा अधिकतर रक्षा और ऊर्जा क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। संरचनात्मक असंतुलन और निजी क्षेत्र का सीमित जुड़ाव व्यापक एवं सुदृढ़ भारत-रूस साझेदारी को रोकते हैं।

राजनीतिक सहजता व्यापक साझेदारी देने में परिवर्तित होने में क्यों विफल होती है

  • संकीर्ण आर्थिक आधार: संतुलित द्विपक्षीय वाणिज्य की अपेक्षा व्यापार रूसी तेल और वस्तुओं पर केंद्रित रहता है।
    • उदाहरण: द्विपक्षीय व्यापार वित्तीय वर्ष 2025 में ~$68.7 बिलियन तक बढ़ा, जो मुख्य रूप से तेल आयात से संचालित था।
  • पश्चिमी प्रतिबंधों का प्रभाव: रूस पर पश्चिमी प्रतिबंध भारतीय फर्मों के साथ बैंकिंग, भुगतान और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को जटिल बनाते हैं।
  • रक्षा-केंद्रीयता: रक्षा संबंध सरकार-से-सरकार रक्षा सौदों पर आधारित है, जिससे व्यापक वाणिज्यिक सहभागिता सीमित होती है।
  • सीमित निजी संबंध: रूसी फर्मों और भारतीय निजी क्षेत्र का एकीकरण कम है और संयुक्त निवेश भी बहुत कम हैं।
  • प्रतिस्पर्धी रणनीतिक प्राथमिकताएँ: चीन के साथ रूस की बढ़ती निकटता और पश्चिम के साथ भारत की सहभागिता दोनों देशों के मध्य रणनीतिक असहजता उत्पन्न करती है।
    • उदाहरण: यूक्रेन के बाद की परिस्थितियों के कारण रूस चीन के और करीब आया, जिससे भारत की रणनीतिक क्षमता सीमित हुई।
  • प्रौद्योगिकी और मानक अंतर: भारतीय उद्योगों को पश्चिमी तकनीक और मानकों की आवश्यकता होती है, जबकि रूसी तकनीक अक्सर नागरिक बाजारों में पिछड़ जाती है।
  • आवागमन बाधाएँ: भारत और रूस के बीच परिवहन मार्ग  और व्यापार सुविधा अविकसित हैं, जिससे लागत बढ़ जाती है।

गहन सहयोग निर्माण हेतु प्रमुख क्षेत्र

  • ऊर्जा और तेल: दीर्घकालिक अनुबंध और तेलशोधन साझेदारियाँ आपूर्ति को स्थिर कर सकती हैं और आर्थिक संबंधों को गहरा कर सकती हैं।
    • उदाहरण: सखालिन में हिस्सेदारी को पुनर्जीवित करने और दीर्घकालिक ऊर्जा सौदों पर चर्चाएँ शामिल हैं।
  • नागरिक परमाणु सहयोग: भारत की बढ़ती परमाणु महत्त्वाकांक्षाओं के लिए रिएक्टर निर्माण, ईंधन चक्र और संयुक्त अनुसंधान एवं विकास का विस्तार किया जा सकता है।
    • उदाहरण: रोसाटॉम बड़े रिएक्टरों का प्रस्ताव रखता है और कुडनकुलम तथा भविष्य की परियोजनाओं के लिए साझेदार बना  हुआ है।
  • संयुक्त रक्षा उत्पादन: प्लेटफॉर्म का सह-विकास, निर्माण का स्थानीयकरण और ऑफसेट्स को प्रोत्साहन देकर भारतीय रोजगार और रूसी बाजार दोनों विकसित किए जा सकते हैं।
    • उदाहरण: प्रस्तावों में Su-57/S-400 ऑफसेट्स और भारत में संयुक्त स्पेयर्स निर्माण शामिल है।
  • अंतरिक्ष और उच्च तकनीक: मानव अंतरिक्ष उड़ान, उपग्रह प्रणालियाँ और संयुक्त वैज्ञानिक मिशनों पर सहयोग पारस्परिक लाभ प्रदान कर सकता है।
    • उदाहरण: इसरो और रास्कोस्मोस सहयोग अंतरिक्षयात्री प्रशिक्षण और संयुक्त मिशनों का समर्थन करता है।
  • व्यापार सुविधा और मुक्त व्यापार समझौता (FTA): द्विपक्षीय वाणिज्य में विविधता लाने के लिए व्यावहारिक व्यापार समझौते, भुगतान तंत्र और लॉजिस्टिक्स पर संवाद स्थापित किए जाने चाहिए।
  • महत्त्वपूर्ण खनिज और दुर्लभ मृदा तत्त्व: इनके लिए संयुक्त खनन, प्रसंस्करण और आपूर्ति शृंखला साझेदारियाँ दोनों देशों की आयात निर्भरता को कम कर सकती हैं।
  • विज्ञान और जन-स्तरीय संबंध: विश्वविद्यालयों की साझेदारी, संस्कृति और पर्यटन को बढ़ावा देकर संबंधों की सामाजिक नींव को व्यापक बनाया जा सकता है।

निष्कर्ष

भारत–रूस संबंधों को अब ऐतिहासिक भावनात्मकता से आगे बढ़कर व्यावहारिकता और भविष्य उन्मुखता पर आधारित नए ढाँचे की आवश्यकता है। ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, रक्षा सह-उत्पादन, महत्त्वपूर्ण खनिज तथा बहु-क्षेत्रीय कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में गहन सहयोग, तेजी से परिवर्तित होती वैश्विक शक्ति-संरचना के अनुरूप दोनों देशों संबंधों को संतुलित, नवोन्मेष-प्रधान और भू-राजनीतिक रूप से सुदृढ़ साझेदारी में बदल सकता है।

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