Q. भारत की पेंशन प्रणाली अनौपचारिक क्षेत्र में कम कवरेज, राजकोषीय स्थिरता के प्रश्न और प्रशासनिक अक्षमताओं सहित महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रही है। इस संदर्भ में, आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए कि क्या हालिया सुधार एक सार्वभौमिक और वहनीय सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की ओर बढ़ने के लिए पर्याप्त हैं। आगे कौन से संरचनात्मक परिवर्तन आवश्यक हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • सार्वभौमिक और वहनीय सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की ओर बढ़ने के लिए हालिया सुधार पर्याप्त क्यों हैं?
  • सार्वभौमिक और वहनीय सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की ओर बढ़ने के लिए हालिया सुधार पर्याप्त क्यों नहीं हैं?
  • आवश्यक संरचनात्मक परिवर्तन लिखिए।

उत्तर

भारत के पेंशन सुधारों ने एक गतिशील श्रम बाजार में समावेशन और वहनीयता के दोहरे लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से विकास किया है। यद्यपि अनेक पहलों ने पहुँच और डिजिटल संपर्क को बढ़ाया है, फिर भी सार्वभौमिक और सतत् सामाजिक सुरक्षा प्राप्त करने में उनकी प्रभावशीलता का आलोचनात्मक परीक्षण आवश्यक है।

हाल के सुधार सार्वभौमिक और वहनीय सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की दिशा में पर्याप्त क्यों हैं:

  • उन्नत डिजिटल पोर्टेबिलिटी और इंटरऑपरेबिलिटी:  UAN (EPFO) और PRAN (NPS) जैसी पहलों के साथ e-KYC, आधार लिंकिंग और डिजीलॉकर जैसे डिजिटल साधनों ने विभिन्न नियोक्ताओं और भौगोलिक क्षेत्रों में खातों के निर्बाध स्थानांतरण को संभव बनाया है।
    • उदाहरण: कोई मजदूर यदि फैक्टरी से स्टार्ट-अप में स्थानांतरित होता है तो वह अब उसी NPS/EPF पहचान को बनाए रख सकता है, जिससे अंशदान की निरंतरता सुनिश्चित होती है।
  • असंगठित और गिग श्रमिकों का समावेशन:  सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 ने औपचारिक रूप से गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को लाभार्थी के रूप में मान्यता दी, जिससे अंशदायी पेंशन व्यवस्था औपचारिक क्षेत्र से परे विस्तृत हुई।
  • स्वैच्छिक सूक्ष्म-पेंशन कवरेज का विस्तार:  अटल पेंशन योजना (APY) और NPS-लाइट जैसी योजनाओं ने कम आय वाले असंगठित श्रमिकों में भागीदारी बढ़ाई है, जिससे बुनियादी वृद्धावस्था सुरक्षा सुनिश्चित हुई है।
    • उदाहरण: APY के अंतर्गत अब 6 करोड़ से अधिक ग्राहक शामिल हैं, जिन्हें न्यूनतम सरकारी गारंटी वाली पेंशन प्राप्त होती है।
  • राजकोषीय और प्रशासनिक तार्किकीकरण:  OPS से NPS में बदलाव ने गैर-वित्तपोषित पेंशन देनदारियों को कम किया और राजकोषीय स्थिरता में सुधार किया है।
    • PFRDA के अंतर्गत केंद्रीकृत निगरानी ने प्रशासनिक दक्षता भी बढ़ाई है।
      • उदाहरण: NPS के तहत परिसंपत्तियों का प्रबंधन (AUM) वर्ष 2025 तक ₹12 लाख करोड़ को पार कर गया, जो संस्थागत विश्वास और वित्तीय अनुशासन को दर्शाता है।

हाल के सुधार सार्वभौमिक और वहनीय सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की दिशा में पर्याप्त क्यों नहीं हैं:

  • असंगठित क्षेत्र का सीमित कवरेज: APY और NPS-Lite के बावजूद, भारत के 85% से अधिक श्रमिक औपचारिक पेंशन कवरेज से बाहर हैं क्योंकि उनकी आय अनियमित है और नियोक्ता संबंध कमजोर हैं।
    • उदाहरण: दिहाड़ी मजदूर और प्रवासी निर्माण श्रमिक नियमित अंशदान नहीं करते क्योंकि स्वचालित पंजीकरण या आय-आधारित कटौती का कोई तंत्र नहीं है।
  • विखंडित संस्थागत ढाँचा:  EPFO, PFRDA, राज्य कल्याण बोर्डों और श्रम विभागों जैसी कई एजेंसियाँ अलग-अलग कार्य करती हैं, जिससे ओवरलैप, भ्रम और डेटा पोर्टेबिलिटी की कमजोरी उत्पन्न होती है।
  • अपर्याप्त पेंशन कोष और लाभ स्तर:  APY जैसी योजनाओं में कम और अनियमित अंशदान के कारण पेंशन राशि अपर्याप्त रहती है, जो वृद्धावस्था में न्यूनतम जीवनयापन सुनिश्चित नहीं करती।
    • उदाहरण: ₹200 प्रतिमाह जमा करने वाले APY ग्राहक को मात्र ₹1,000–₹2,000 मासिक पेंशन मिलती है, जो शहरी जीवन लागत से काफी कम है।
  • लैंगिक और गिग श्रमिक असमानता बनी हुई है:  महिलाएँ, स्व-रोजगार और गिग श्रमिक संरचनात्मक रूप से वंचित हैं क्योंकि उनके कॅरियर में व्यवधान, नियोक्ता अंशदान की कमी और अस्पष्ट एग्रीगेटर अनुपालन है।
    • उदाहरण: सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020) ने गिग श्रमिकों को कानूनी मान्यता दी, परंतु अंशदायी ढाँचा और प्रवर्तन तंत्र अभी पूरी तरह लागू नहीं हुआ है।

आवश्यक संरचनात्मक परिवर्तन

  • एकीकृत सामाजिक सुरक्षा पहचान (SSN–India) की स्थापना:  EPFO, NPS, APY और राज्य कल्याण योजनाओं को एक आजीवन डिजिटल खाते में एकीकृत किया जाए, जिससे अंशदान और लाभों की वास्तविक वहनीयता सुनिश्चित हो सके।
  • लचीले अंशदान के साथ स्वचालित पंजीकरण अनिवार्य किया जाए: सभी श्रमिकों (औपचारिक, असंगठित, और गिग) के लिए डिफॉल्ट पंजीकरण की व्यवस्था हो, जिसमें आय के अनुसार अंशदान का प्रावधान हो और योगदान को रोकने या पुनः प्रारंभ करने का विकल्प भी मिले।
    • उदाहरण: गिग प्लेटफॉर्म प्रत्येक लेन-देन से एक छोटा प्रतिशत पेंशन अंशदान के रूप में स्वतः काट सकते हैं, जिसमें सरकार आंशिक मिलान कर सकती है।
  • लैंगिक एवं देखभाल-संवेदनशील पेंशन क्रेडिट्स का परिचय:  गैर-भुगतान वाली देखभाल कार्य और रोजगार में रुकावट को मान्यता देते हुए महिलाओं एवं अनौपचारिक देखभालकर्ताओं के लिए विशेष सरकारी सह-अंशदान और ‘केयर क्रेडिट’ प्रदान किए जाएँ।
  • शासन को सुदृढ़ किया जाए:  OPS जैसी देनदारियों से बचने हेतु मध्यम अवधि का राजकोषीय ढाँचा बनाया जाए और EPFO, PFRDA एवं राज्य एजेंसियों के लिए एक संयुक्त नियामक समन्वय परिषद स्थापित की जाए।
    • उदाहरण: वित्त आयोग उन राज्यों को प्रोत्साहन अनुदान दे सकता है, जो उच्च पेंशन कवरेज और शिकायत निवारण दक्षता प्राप्त करें।

निष्कर्ष

भारत विश्व की सबसे बड़ी कार्यशक्ति (~607.7 मिलियन, 2024) में से एक रखता है, फिर भी सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। सार्वभौमिक और वहनीय पेंशन प्रणाली की ओर बढ़ना न केवल कल्याण की भावना को सुदृढ़ करेगा बल्कि सामाजिक-आर्थिक अधिकारों की नींव को भी मजबूत करेगा।

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