प्रश्न की मुख्य माँग
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने महाद्वीपीय और समुद्री सुरक्षा हितों को संतुलित करने में भारत की रणनीतिक चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
- चर्चा कीजिए कि भौगोलिक बाधाएं और संसाधन आवंटन, भारत की नौसैनिक आकांक्षाओं को कैसे प्रभावित करते हैं।
- भूमि सुरक्षा से समझौता किए बिना अपनी समुद्री क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक रोडमैप सुझाएँ।
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उत्तर
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महाद्वीपीय और समुद्री सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने में भारत की रणनीतिक दुविधा चीन और पाकिस्तान जैसे शत्रुओं के साथ भूमि सीमाओं पर उसके दोहरे फोकस और महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों पर उसके समुद्री हितों से उत्पन्न हुई है। भौगोलिक बाधाओं और सीमित संसाधनों के कारण इसकी रक्षा प्राथमिकताएँ निर्धारित होती हैं, इसलिए भारत को दोनों क्षेत्रों की प्रभावी रूप से सुरक्षा करने के लिए अपने दृष्टिकोण को अनुकूलित करना चाहिए।
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हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महाद्वीपीय और समुद्री सुरक्षा हितों को संतुलित करने में भारत की रणनीतिक चुनौतियाँ
- समुद्री आवश्यकताओं पर भूमि सुरक्षा को प्राथमिकता देना: भारत की विवादित भूमि सीमाओं को, विशेष रूप से हिमालय में, भूमि बलों के लिए महत्वपूर्ण आवंटन की आवश्यकता है, जिससे समुद्री सुरक्षा गौण हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: भारत ने लद्दाख क्षेत्र में चीन के साथ बार-बार होने वाले गतिरोधों के कारण अपनी 85% सैन्य शक्ति, भूमि सुरक्षा के लिए समर्पित कर दी है।
- चीन का दोहरा खतरा: भारत की भूमि सीमाओं पर चीन की आक्रामकता और हिंद महासागर में उसकी बढ़ती उपस्थिति, भारत को अपना ध्यान विभाजित करने के लिए मजबूर करती है।
- उदाहरण के लिए: चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) और हिंद महासागर में PLA नौसेना की गतिविधियाँ भारत को दोहरे खतरों से निपटने के लिए मजबूर करती हैं।
- इंडो-पैसिफिक प्रतिद्वंद्विता और गठबंधन: क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखते हुए चीन के साथ तनाव को बढ़ाने के जोखिम के बिना QUAD जैसी रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: भारत, मालाबार अभ्यास में भाग लेता है लेकिन इंडो-पैसिफिक में अत्यधिक ध्रुवीकरण से बचने के लिए AUKUS का पूरी तरह से समर्थन करने से परहेज करता है।
- सैन्य विस्तार पर आर्थिक बाधाएँ: बजटीय सीमाएँ, भारत की अपनी नौसेना को बढ़ाने की क्षमता को सीमित करती हैं और इसके साथ ही थल सेना में पर्याप्त निवेश सुनिश्चित करती हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत अपने रक्षा बजट का केवल 14-17% नौसेना को आवंटित करता है, जिससे उसकी समुद्री आधुनिकीकरण योजनाएँ बाधित होती हैं।
- सीमित समुद्री प्रभाव: भारत को अपनी समुद्री पहुंच को पूर्व की ओर प्रशांत महासागर में विस्तारित करने में कठिनाई हो रही है, क्योंकि दोनों देशों की प्राथमिकताएं एक दूसरे से अलग हैं और नौसेना की क्षमता सीमित है।
- उदाहरण के लिए: भारत का नौसैनिक ध्यान हिंद महासागर पर केंद्रित है, जबकि अमेरिका या जापान की तुलना में दक्षिण चीन सागर में भारत का सीमित संचालन होता है।
भौगोलिक बाधाएं और संसाधन आवंटन, भारत की नौसेना आकांक्षाओं को प्रभावित कर रहे हैं
- स्थलरुद्ध पड़ोसी देश और प्रायद्वीपीय आकार: भारत की भौगोलिक स्थिति के कारण उसे लंबी भूमि सीमा और विशाल समुद्र तट की सुरक्षा की आवश्यकता है, जिससे उसके संसाधनों पर दबाव पड़ता है।
- उदाहरण के लिए: भारत की रणनीतिक प्राथमिकतायें, विस्तारित नौसैनिक अभियानों की तुलना में हिमालयी रक्षा को प्राथमिकता देती है।
- द्वीपीय क्षेत्रों में चुनौतियाँ: अंडमान और निकोबार जैसे द्वीपों में तटीय और बंदरगाह सुरक्षा के लिए भारी निवेश की आवश्यकता है, जिससे ओपेन-सी क्षमताओं के लिए उपलब्ध संसाधन कम हो जाते हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत की अंडमान और निकोबार कमान (ANC) IOR सुरक्षा को मजबूत करती है , लेकिन ब्लू-वाटर नेवी विस्तार के लिए फंडिंग को सीमित करती है।
- मलक्का जलडमरूमध्य और चोकपॉइंट: व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण चोकपॉइंट पर भारत की निर्भरता, समुद्री व्यवधानों के प्रति सुभेद्यता को बढ़ाती है।
- उदाहरण के लिए: मलक्का जलडमरूमध्य को सुरक्षित करना, ऊर्जा आयात के लिए महत्वपूर्ण है, जिसके लिए नौसेना की मौजूदगी बढ़ाने की आवश्यकता है।
- आयातित तकनीक पर निर्भरता: भारत का स्वदेशी नौसैनिक उत्पादन पीछे रह जा रहा है। भारत को अभी भी उन्नत जहाजों और पनडुब्बियों के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे इसकी समुद्री क्षमता वृद्धि धीमी हो रही है।
- उदाहरण के लिए: घरेलू उत्पादन में देरी के कारण भारत ने फ्रांस से स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियाँ खरीदीं।
- तटीय अवसंरचना की कमी: अपर्याप्त बंदरगाह सुविधाएँ और पुराने शिपयार्ड, नौसेना की परिचालन तत्परता और समुद्री महत्वाकांक्षाओं में बाधा डालते हैं।
- उदाहरण के लिए: मुंबई और वाइजैग में आधुनिक बंदरगाह सुविधाओं की कमी के कारण संकट के समय बेड़े की तैनाती में देरी होती है।
भूमि सुरक्षा से समझौता किए बिना समुद्री क्षमताओं को उन्नत करने का रोडमैप
- तटीय रक्षा प्रणालियों पर ध्यान केन्द्रित करना: नौसेना की संपत्तियों पर दबाव डाले बिना समुद्र के निकट प्रभुत्व सुनिश्चित करने के लिए तटीय निगरानी, मिसाइल प्रणालियों और नौसेना के हवाई अड्डों को मजबूत करना।
- उदाहरण के लिए: भारत ने तटीय और बंदरगाह सुरक्षा बढ़ाने के लिए सागर प्रहरी बल की तैनाती की है।
- नौसेना बजट में क्रमिक वृद्धि: सेना संचालन में दक्षता के माध्यम से संसाधनों का पुनर्वितरण करके नौसेना आधुनिकीकरण को बढ़ावा देना चाहिए और संतुलित संसाधन आवंटन को सक्षम करना।
- उदाहरण के लिए: INS विक्रांत का शामिल होना, भारत की नौसेना बेड़े के आधुनिकीकरण के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- रणनीतिक साझेदारी: समुद्री संचालन और क्षमता निर्माण की एकतरफा लागत को कम करने के लिए QUAD और लाजिस्टिक समझौतों जैसी साझेदारियों का लाभ उठाना।
- उदाहरण के लिए: भारत ने संयुक्त समुद्री अभ्यास के लिए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ रसद समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
- दोहरे उपयोग वाले बुनियादी ढांचे का विकास करना: समुद्री उपस्थिति को लागत प्रभावी ढंग से बढ़ाने के लिए वाणिज्यिक और सैन्य उपयोग दोनों के लिए बंदरगाहों और एयरस्ट्रिप का निर्माण करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: चाबहार बंदरगाह फारस की खाड़ी में भारत के प्रभाव को सुरक्षित करते हुए आर्थिक लाभ प्रदान करता है।
- स्वदेशी क्षमताओं को मजबूत करना: आयात पर निर्भरता कम करने के लिए नौसेना के जहाज निर्माण और पनडुब्बी उत्पादन के लिए आत्मनिर्भर भारत पहल में निवेश करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: भारत की स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी INS अरिहंत, मेक इन इंडिया पहल का एक उत्पाद है।
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भारत की सुरक्षा के लिए संतुलित दृष्टिकोण हेतु मजबूत समुद्री और महाद्वीपीय रणनीतियों को एकीकृत करना आवश्यक है। स्वदेशी रक्षा उत्पादन को प्राथमिकता देना, QUAD भागीदारी जैसे क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना और संसाधन आवंटन को अनुकूलित करना व्यापक सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है। AI-संचालित निगरानी और बहु-डोमेन क्षमताओं में भविष्य-केंद्रित निवेश भारत की भूमिका को इंडो-पैसिफिक में एक विश्वसनीय शक्ति के रूप में मजबूत करेगा।
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