Q. भारत का ताप विद्युत उत्सर्जन विनियमन ढाँचा पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक विचारों और शासन चुनौतियों के बीच जटिल अंतर्संबंध को दर्शाता है। विभिन्न हितधारकों की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये और पर्यावरणीय एवं विकासात्मक दोनों लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • बताइए कि किस प्रकार भारत की ताप विद्युत उत्सर्जन विनियमन गाथा पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक विचारों और शासन चुनौतियों के बीच जटिल अंतर्संबंध को प्रतिबिंबित करती है।
  • विभिन्न हितधारकों की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
  • उनकी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
  • पर्यावरणीय और विकासात्मक दोनों लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण का सुझाव दीजिए।

उत्तर

भारत का थर्मल पावर सेक्टर प्रदूषण का एक अहम स्रोत भी है। थर्मल पावर उत्सर्जन जीवाश्म ईंधन के दहन के दौरान निकलने वाली हानिकारक गैसें हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 में, भारत के थर्मल पावर प्लांट ने 950 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक CO₂ उत्सर्जित किया, जो देश के कुल उत्सर्जन का लगभग एक तिहाई है। यह सरकार, उद्योग और समुदायों जैसे हितधारकों के बीच प्रभावी विनियमन और सहयोग की आवश्यकता को उजागर करता है ।

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भारत का ताप विद्युत उत्सर्जन विनियमन: पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक विचारों और शासन चुनौतियों के बीच जटिल अंतर्संबंध

  • कार्यान्वयन में देरी: MoEFCC द्वारा बार-बार समय-सीमा बढ़ाने से कमजोर विनियामक प्रवर्तन और नीति अनिश्चितता का संकेत मिलता है, जिससे पर्यावरण शासन तंत्र में भरोसा कम होता है। 
    • उदाहरण के लिए: सघन आबादी वाले क्षेत्रों के पास 20 गीगावाट संयंत्रों के लिए SO₂ उत्सर्जन की समय-सीमा वर्ष 2027 तक के लिए टाल दी गई, जो पहले वर्ष 2024 तक थी।
  • उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ: उपभोक्ताओं को अप्रयुक्त प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों का वित्तीय बोझ उठाने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जबकि वायु गुणवत्ता में तत्काल कोई सुधार या उत्सर्जन में कमी नहीं होती है। 
    • उदाहरण के लिए: लगभग 22 गीगावाट क्षमता वाले संयंत्रों ने FGD स्थापित कर लिए हैं, लेकिन परिचालन लागत संबंधी चिंताओं और अनुपालन के लिए विस्तारित समय-सीमा के कारण इनका उपयोग होने की संभावना नहीं है।
  • खंडित समय-सीमाएँ: संयंत्र स्थानों पर विभिन्न प्रदूषकों के लिए भिन्न -भिन्न समय-सीमाओं ने प्रशासनिक जटिलताएँ उत्पन्न की हैं, जिससे प्रवर्तन और निगरानी तंत्र की दक्षता कम हुई है। 
    • उदाहरण के लिए: पार्टिकुलेट मैटर के लिए अंतिम समय-सीमा दिसंबर 2024 थी, फिर भी SO₂ मानदंडों को 2027 तक टाल दिया गया, जिससे प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों में असंगति हुई।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और औद्योगिक लागतों के बीच संघर्ष: सख्त SO₂ उत्सर्जन मानदंडों का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों को कम करना है, लेकिन उनके लागू होने से थर्मल पावर प्लांट पर उच्च अनुपालन लागत लागू होती है, जिससे आर्थिक संघर्ष उत्पन्न होता है। 
    • उदाहरण के लिए: FGD की स्थापना से परिचालन लागत में वृद्धि हुई, जिससे उपभोक्ताओं के लिए बिजली के शुल्क में वृद्धि हुई, जैसा कि बिजली नियामकों द्वारा अनिवार्य किया गया है।

इस घटना में विभिन्न हितधारकों की भूमिका

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC): MoEFCC ने मानदंडों का प्रारूप तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन मानकों को कमजोर करके और बार-बार समय सीमा बढ़ाकर इसकी विश्वसनीयता को कमजोर कर दिया। 
    • उदाहरण के लिए: दिसंबर 2024 की अधिसूचना SO₂ मानदंडों के लिए चौथा विस्तार था, जिसने वर्ष 2015 में की गई पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं को कमजोर कर दिया।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA): CEA ने एकसमान मानदंडों पर सवाल उठाकर, चरणबद्ध कार्यान्वयन का प्रस्ताव देकर और अध्ययन शुरू करके, उत्सर्जन नियंत्रण रणनीतियों पर आम सहमति में देरी करते हुए चर्चा को प्रभावित किया। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2022 में, IIT दिल्ली द्वारा CEA के अध्ययन में उच्च FGD लागत और कोयले की बढ़ती खपत को SO₂ मानदंड अनुपालन में देरी के कारणों के रूप में उद्धृत किया गया।
  • नीति आयोग और शोध संस्थान: नीति आयोग ने SO2 मानदंडों के महत्त्व पर सवाल उठाने वाले अध्ययनों का आदेश दिया, जिससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई और पर्यावरण संबंधी प्राथमिकताएँ कमज़ोर हुईं। 
    • उदाहरण के लिए: CSIR-NEERI के 2024 के अध्ययन में SO2 की तुलना में पार्टिकुलेट इमिशंस (PM कणों) पर ज़ोर दिया गया, जिससे उत्सर्जन विनियमन के व्यापक उद्देश्यों को चुनौती मिली।
  • बिजली विनियामक और ताप विद्युत संयंत्र: विनियामकों ने FGD स्थापनाओं के लिए कॉस्ट पास-थ्रू (Cost pass through) की सुविधा प्रदान की , जबकि संयंत्रों ने कमजोर प्रवर्तन के कारण पर्यावरणीय अनुपालन के बजाय वित्तीय हितों को प्राथमिकता दी। 
    • उदाहरण के लिए: 50% से अधिक संयंत्रों में FGD इंस्टॉलेशन के लगभग पूरा होने के बावजूद, संचालक उच्च उत्पादन लागत से बचने के लिए उनका उपयोग नहीं कर रहे हैं, और लाभ को प्राथमिकता दे रहे हैं।
  • नागरिक समाज और स्थानीय समुदाय: संयंत्रों के आस-पास रहने वाले समुदायों को देरी से अनुपालन के कारण स्वास्थ्य संबंधी खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जो सार्वजनिक जवाबदेही तंत्र की कमी को उजागर करता है। 
    • उदाहरण के लिए: सिंगरौली जैसे सघन आबादी वाले क्षेत्रों में थर्मल प्लांट के आस-पास के निवासियों को नियामक मानदंडों के बावजूद SO₂ उत्सर्जन के दीर्घकालिक जोखिम का सामना करना पड़ता है।

भारत के ताप विद्युत उत्सर्जन को विनियमित करने में चुनौतियाँ

  • कमजोर नीति प्रवर्तन: उत्सर्जन मानदंडों के लिए बार-बार विस्तार, कमजोर नियामक प्रवर्तन और जवाबदेही की कमी का संकेत देता है, जो पर्यावरणीय लक्ष्यों की दिशा में प्रगति को कमजोर करता है।
  • अनुपालन की उच्च लागत: FGDs को इंस्टॉल करने और उसका संचालन करने से लागत बढ़ जाती है, जिससे संयंत्र अनुपालन को प्राथमिकता देने से हतोत्साहित होते हैं और इस क्षेत्र पर आर्थिक दबाव बनता है। 
    • उदाहरण के लिए: CEA द्वारा शुरू किए गए IIT दिल्ली के अध्ययन ने FGDs की उच्च इंस्टॉलेशन लागत और परिचालन व्यय को प्रमुख चुनौतियों के रूप में उजागर किया।
  • मानदंडों पर गलत ध्यान:  कम सल्फर वाले भारतीय कोयले के लिए अनुकूल वैकल्पिक, लागत प्रभावी तरीकों की खोज करने के बजाय चर्चायें, FGD को लागू करने पर केंद्रित थी। 
    • उदाहरण के लिए: SO₂ मानदंडों में FGD को अनिवार्य न किए जाने के बावजूद, अधिकांश चर्चाएँ इस तकनीक के इर्द-गिर्द केंद्रित रहीं और सरल समाधानों को नजरअंदाज किया गया।
  • हितधारकों की सहमति का अभाव: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और नीति आयोग के बीच अलग-अलग दृष्टिकोणों ने भ्रम पैदा किया है और उत्सर्जन संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए एकीकृत कार्रवाई में देरी की है। 
    • उदाहरण के लिए: जहां पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने SO₂ मानदंडों पर जोर दिया, वहीं नीति आयोग और CSIR-NEERI अध्ययनों ने उनके महत्त्व को कम करके आंका और पार्टिकुलेट मैटर पर ध्यान केंद्रित करने की वकालत की।
  • उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ: परिचालन लाभ के बिना FGD लागत उपभोक्ताओं पर डालने से बिजली के बिल बढ़ गए हैं, जबकि आस-पास के समुदायों के लिए वायु गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ है। 
    • उदाहरण के लिए: उपभोक्ता, इंस्टाल्ड  FGD के लिए भुगतान कर रहे हैं, लेकिन संयंत्र बढ़ी हुई उत्पादन लागत के कारण उनका संचालन नहीं कर रहे हैं, जैसा कि विस्तारित वर्ष 2027 अनुपालन समय सीमा से देखा जा सकता है।

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पर्यावरणीय और विकासात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संतुलित दृष्टिकोण

  • समयबद्ध प्रवर्तन: उत्सर्जन अनुपालन के लिए सख्त समय-सीमा होनी चाहिए और उसकी निगरानी पारदर्शी और सार्वजनिक रूप से सुलभ तंत्र के माध्यम से होनी चाहिए जिससे समय पर कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: FGD इंस्टॉलेशन और परिचालन स्थिति के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध ट्रैकिंग प्रणाली जवाबदेही और प्रवर्तन को बढ़ा सकती है।
  • अनुपालन को प्रोत्साहित करना: उत्सर्जन नियंत्रण प्रौद्योगिकी के लिए सब्सिडी या कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करने से थर्मल प्लांट पर वित्तीय दबाव कम हो सकता है और साथ ही इसे जल्दी अपनाने को प्रोत्साहित किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: सरकार उन थर्मल प्लांट को कर लाभ दे सकती है जो समय से पहले SO₂ मानदंडों का अनुपालन करते हैं।
  • शोध और नवाचार को बढ़ावा देना: भारतीय कोयले की कम सल्फर सामग्री के अनुकूल स्वदेशी प्रौद्योगिकियों में निवेश करने से महंगी FGD पर निर्भरता कम हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय कोयले के अनुरूप इन-हाउस फ्लू गैस उपचार प्रौद्योगिकियों का विकास करने से अनुपालन लागत और परिचालन संबंधी बाधाएँ कम हो सकती हैं।
  • हितधारक समन्वय और आम सहमति निर्माण: हितधारकों-MoEFCC, CEA, नीति आयोग और स्थानीय समुदायों के बीच एक एकीकृत दृष्टिकोण नीतियों को सुव्यवस्थित कर सकता है और परस्पर विरोधी आख्यानों को रोक सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: सभी हितधारकों को शामिल करने वाला एक सहयोगी कार्य बल उत्सर्जन नियंत्रण के लिए पर्यावरणीय और आर्थिक प्राथमिकताओं को संरेखित कर सकता है।
  • क्षेत्रीय प्राथमिकता के साथ चरणबद्ध अनुपालन: सघन आबादी वाले क्षेत्रों के पास स्थित संयंत्रों के लिए सख्त मानदंड लागू करना और कम महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए विस्तारित समयसीमा प्रदान करना, सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक लक्ष्यों को संतुलित कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: सिंगरौली जैसे उच्च प्रदूषण वाले क्षेत्रों में संयंत्रों के लिए उत्सर्जन नियंत्रण को प्राथमिकता देना, तत्काल लाभ प्रदान कर सकता है।

भारत के ताप विद्युत क्षेत्र में सतत विकास प्राप्त करने के लिए सरकारी निकायों, उद्योग जगत के नेतृत्वकर्ताओं और नागरिक समाज के बीच सहयोगात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है। कड़े उत्सर्जन मानकों को लागू करके, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश करके और जन जागरूकता को बढ़ावा देकर भारत, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकता है ।

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