प्रश्न की मुख्य माँग
- इस बात पर प्रकाश डालिये कि किस प्रकार भारत-अमेरिका प्रौद्योगिकी साझेदारी, विशेष रूप से iCET के माध्यम से, द्विपक्षीय संबँधों में एक रणनीतिक परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करती है।
- AI उद्योग की बढ़ती माँग के बावजूद परमाणु ऊर्जा सहयोग में नियामक बाधाओं जैसी चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
- इस उभरती हुई साझेदारी में अवसरों का परीक्षण कीजिए।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
भारत-अमेरिका प्रौद्योगिकी साझेदारी, जिसका उदाहरण महत्त्वपूर्ण और उभरती हुई प्रौद्योगिकियों पर पहल (iCET) है, का उद्देश्य AI और रक्षा जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाना है। हालाँकि, परमाणु ऊर्जा सहयोग के संबंध में विनियामक जटिलताएँ बनी हुई हैं। उदाहरण के लिए, भारत के महत्त्वाकांक्षी असैन्य परमाणु ऊर्जा लक्ष्य देयता संबंधी चिंताओं से बाधित हैं, जो इस रणनीतिक गठबंधन की क्षमता और चुनौतियों को उजागर करता है।
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ICET के माध्यम से भारत-अमेरिका प्रौद्योगिकी साझेदारी
- मजबूत तकनीकी सहभागिता: iCET सरकार-से-सरकार संबंधों से आगे बढ़कर, AI, अर्धचालक, अंतरिक्ष और जैव प्रौद्योगिकी में गहन सहयोग को बढ़ावा देता है।
- चीन से डीकपलिंग: iCET चीन पर वैश्विक निर्भरता को कम करने और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में क्षेत्रीय संतुलन स्थापित करने की अमेरिकी रणनीति के अनुरूप है।
- उदाहरण के लिए: यह सेमीकंडक्टर जैसी महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में आपूर्ति श्रृंखला प्रत्यास्थता को बढ़ावा देता है, जिससे चीनी विनिर्माण पर निर्भरता कम होती है।
- नागरिक अंतरिक्ष सहयोग: iCET नागरिक अंतरिक्ष परियोजनाओं पर अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाता है, तथा द्विपक्षीय अंतरिक्ष अन्वेषण और प्रौद्योगिकी पहलों को बढ़ावा देता है।
- वार्ताओं की विरासत: दशकों के विश्वास पर आधारित, iCET रणनीतिक तकनीकी साझेदारी को औपचारिक रूप देता है, जिससे उन्नत प्रौद्योगिकियों में दीर्घकालिक द्विपक्षीय जुड़ाव बढ़ता है।
- उदाहरण के लिए: iCET का उदय भारत और अमेरिका के बीच प्रशासनिक और नीतिगत सुधारों से जुड़ी जटिल वार्ताओं के परिणामस्वरूप हुआ।
- AI और परमाणु तालमेल: iCET भारत की बढ़ती AI ऊर्जा माँगों को परमाणु प्रौद्योगिकी में अमेरिकी प्रगति के साथ जोड़ता है, जिससे स्वच्छ और विश्वसनीय ऊर्जा स्रोतों के लिए अवसर उत्पन्न होते हैं।
- उदाहरण के लिए: स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकता वाले AI डेटा सेंटर परमाणु को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिससे तकनीक और ऊर्जा संबंधों को बढ़ावा मिलता है।
परमाणु ऊर्जा सहयोग में चुनौतियाँ
- विनियामक बाधाएँ: भारत का परमाणु क्षति के लिए नागरिक देयता अधिनियम, 2010, परमाणु ऊर्जा विकास में विदेशी निवेश को सीमित करता है।
- उदाहरण के लिए: अस्पष्ट देयत मानदंडों के कारण अमेरिकी कंपनियाँ निवेश करने में हिचकिचाती हैं, जिससे परमाणु ऊर्जा संयंत्र समझौते रुक जाते हैं।
- नीतिगत सुधारों में विलम्ब: परमाणु समझौते की संभावनाओं के बावजूद, भारत को रूस से परे अंतर्राष्ट्रीय आपूर्तिकर्ताओं को आकर्षित करने के लिए अभी भी महत्त्वपूर्ण नीतियों में संशोधन करना बाकी है।
- प्रशासनिक विलंब: भिन्न राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और प्रक्रियागत जटिलताओं के कारण परमाणु ऊर्जा सहयोग पर वार्ताओं की समयसीमा बढ़ जाती है ।
- परमाणु अप्रसार से जुड़ी चिंताएँ: परमाणु अप्रसार पर पिछले प्रतिबंधों और वैश्विक मानदंडों, का परमाणु ऊर्जा समझौतों पर प्रभाव जारी है।
- उदाहरण के लिए: अमेरिका ने भारत के प्रमुख परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को ब्लैकलिस्ट में डाल दिया, जिससे असैन्य परमाणु सहयोग जटिल हो गया।
- ऊर्जा बाजार की गतिशीलता: अक्षय ऊर्जा जैसे प्रतिस्पर्धी ऊर्जा स्रोत परमाणु ऊर्जा को अपनाने को चुनौती देते हैं, भले ही यह AI-संचालित बिजली की माँग के लिए उपयुक्त हो।
- उदाहरण के लिए: स्वच्छ और स्केलेबल ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता वाले AI डेटा सेंटर परमाणु ऊर्जा पर निर्भर हैं, लेकिन बाजार की नीतियाँ प्रतिकूल बनी हुई हैं।
विकासशील साझेदारी में अवसर
- महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में मजबूत सहयोग: AI, सेमीकंडक्टर, अंतरिक्ष और जैव प्रौद्योगिकी में बढ़ा हुआ सहयोग भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंधों को मजबूत करता है।
- उदाहरण के लिए: iCET उद्योग-से-उद्योग सहयोग को सुगम बनाता है, जिससे दोनों देशों में उन्नत प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिलता है।
- चीन पर निर्भरता कम करना: संयुक्त पहल का उद्देश्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाना और महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों व विनिर्माण के लिए चीन पर निर्भरता कम करना है ।
- उदाहरण के लिए: iCET का ध्यान प्रौद्योगिकी साझेदारी को जोखिम मुक्त करने और सहयोगी देशों में उत्पादन बढ़ाने पर है।
- स्वच्छ ऊर्जा विकास को बढ़ावा: परमाणु ऊर्जा सहयोग, AI उद्योग की स्वच्छ ऊर्जा की माँग के अनुरूप है , जिससे परमाणु अवसंरचना में निवेश को प्रोत्साहन मिलता है।
- वैश्विक प्रभाव में वृद्धि: भारत और अमेरिका संयुक्त प्रयासों के माध्यम से वैश्विक तकनीकी शासन और नेतृत्व को नया आकार दे सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोगी ढाँचे क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देते हैं और चीन के प्रभुत्व को कम करते हैं।
- भारत के घरेलू प्रौद्योगिकी क्षेत्रों की उन्नति: अमेरिकी विशेषज्ञता और निवेश तक बेहतर पहुँच से भारत की तकनीकी नवाचार और विनिर्माण क्षमताओं में तेजी आती है।
- उदाहरण के लिए: उन्नत प्रौद्योगिकी साझेदारी पर दिल्ली का ध्यान स्टार्टअप्स की सहायता करता है, जिससे राष्ट्रीय आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
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आगे की राह
- परमाणु देयता अधिनियम के मुद्दों का समाधान: परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में निजी और अंतर्राष्ट्रीय निवेश को आकर्षित करने के लिए परमाणु क्षति के लिए नागरिक दैयता अधिनियम, 2010 को संशोधित करना।
- iCET का दायरा बढ़ाना: साइबर सुरक्षा और हरित प्रौद्योगिकियों को शामिल करने के लिए iCET का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए,जिससे समग्र विकास को बढ़ावा मिले।
- उदाहरण के लिए: AI-सक्षम साइबर सुरक्षा पर संयुक्त अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएँ दोनों देशों में डिजिटल लचीलेपन को मज़बूत कर सकती हैं।
- प्रौद्योगिकी संगठनों को संस्थागत बनाना: प्रशासन बदलने से परे उन्नत प्रौद्योगिकी सहयोग में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए दीर्घकालिक संस्थागत तंत्र विकसित करना चाहिए।
- उद्योग-संचालित पहलों को ख: क्वांटम कंप्यूटिंग और जैव प्रौद्योगिकी जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: भारतीय स्टार्टअप और अमेरिकी कंपनियों के बीच संयुक्त उद्यम उभरते बाजारों में महत्त्वपूर्ण नवाचारों को बढ़ावा दे सकते हैं।
- AI-संचालित ऊर्जा माँगों का लाभ उठाना: सतत विकास के लिए भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को पुनर्जीवित करने हेतु AI-संबंधित स्वच्छ ऊर्जा आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
iCET द्वारा सहायता प्राप्त भारत-अमेरिका प्रौद्योगिकी साझेदारी, नवाचार और विकास के लिए अपार संभावनाएँ प्रदान करती है। हालाँकि परमाणु ऊर्जा बाधाओं को दूर करने के लिए, सुव्यवस्थित विनियामक ढाँचे और उन्नत तकनीकी सहयोग आवश्यक हैं। AI और ग्रीन टेक में संयुक्त निवेश स्थायी प्रगति सुनिश्चित कर सकता है, एक भविष्य के लिए तैयार गठबंधन को बढ़ावा दे सकता है जो वैश्विक चुनौतियों का समाधान करता हो और आपसी समृद्धि के लिए द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करता है।
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