प्रश्न की मुख्य माँग
- भारतीय राज्य को ‘संसाधन की कमी और जटिल प्रक्रियाओं की समस्या से जूझने वाले देश के रूप में वर्णित करने का क्या अर्थ है, स्पष्ट कीजिए।
- परीक्षण कीजिए कि यह शासन और सार्वजनिक सेवा वितरण को किस प्रकार प्रभावित करता है।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
भारतीय राज्य को अक्सर संसाधन की कमी और जटिल प्रक्रियाओं की समस्या से जूझने वाले देश के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसका तात्पर्य बड़े प्रशासनिक तंत्र और प्रभावी शासन के लिए उपलब्ध सीमित मानव संसाधनों के बीच असंतुलन से है। हालाँकि भारत में प्रशासनिक प्रक्रियाएँ सुस्थापित हैं, कर्मियों की कमी कुशल कार्यान्वयन में बाधा डालती है। यह विरोधाभास देरी, अक्षमताओं और अपर्याप्त सार्वजनिक सेवा वितरण के कारण शासन को प्रभावित करता है, जिससे नागरिकों की आवश्यकताओं के प्रति राज्य की जवाबदेही कम हो जाती है।
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भारतीय राज्य को संसाधन की कमी और जटिल प्रक्रियाओं की समस्या से जूझने वाले देश के रूप में जाना जाता है
- सिविल सेवकों की सीमित संख्या: भारतीय राज्य में प्रति व्यक्ति सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों की संख्या कम है, जिसके परिणामस्वरूप जटिल शासन चुनौतियों से निपटने के लिए कर्मियों की संख्या कम है।
- उदाहरण के लिए: भारत में प्रति दस लाख लोगों पर केवल 1,600 केन्द्रीय सरकारी कर्मचारी हैं, जबकि अमेरिका में यह संख्या प्रति दस लाख लोगों पर 7,500 है जिससे राज्य की कार्यकुशलता प्रभावित होती है।
- अत्यधिक विनियामक प्रक्रियाएँ: सिविल सेवकों की कम संख्या होने के बावजूद, प्रशासनिक व्यवस्था लाइसेंसिंग, परमिट और मंजूरी जैसी जटिल प्रक्रियाओं में उलझी हुई है ।
- उदाहरण के लिए: व्यवसाय शुरू करने के लिए मंजूरी, परमिट और अनुमोदन की जटिल प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है, जो प्रगति में बाधा डालता है और परिणामों में देरी करता है।
- अधिकारियों में अपर्याप्त विशेषज्ञता: भारतीय राज्य में स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और पुलिसिंग जैसे प्रमुख क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की पर्याप्त संख्या नहीं है।
- उदाहरण के लिए: भारतीय रिजर्व बैंक के पास केवल 7,000 कर्मचारी हैं, जबकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व में 22,000 कर्मचारी हैं, जिससे राष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता के प्रबंधन में प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
- विकेंद्रीकृत नीति निर्माण परंतु केंद्रीकृत क्रियान्वयन : नीति निर्माण अत्यधिक केंद्रीकृत है परंतु क्रियान्वयन अभी भी सीमित फ्रंटलाइन कर्मियों द्वारा ही किया जा रहा है।
- उदाहरण के लिए: भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण परियोजनाओं को क्रियान्वित करता है, जबकि नीति निर्माण मंत्रालय स्तर पर होता है, जिससे परियोजनाओं में देरी होती है और लागत भी अधिक हो जाती है।
- नीति कार्यान्वयन में अक्षमता: सरकारी कर्मचारियों की कम संख्या अधिकारियों पर अत्यधिक बोझ डालती है जिससे प्रभावी नीति कार्यान्वयन मुश्किल हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: स्वास्थ्य नीति कार्यान्वयन जैसे कार्यों को सलाहकारों को सौंपना, सरकार की ओर से महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाओं के लिए आंतरिक विशेषज्ञता की कमी को दर्शाता है।
इससे शासन और सार्वजनिक सेवा वितरण प्रभावित होता है
- सार्वजनिक सेवा वितरण में देरी: अपर्याप्त जनशक्ति और बोझिल प्रक्रियाओं के कारण सेवाओं के निष्पादन में देरी होती है, क्योंकि अधिकारी कार्य-भार को संभालने में संघर्ष करते हैं।
- उदाहरण के लिए: बोझिल विनियामक मंजूरी और अग्रिम पंक्ति के निर्णय लेने वाले प्राधिकरण की कमी के कारण बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को लागत में वृद्धि और देरी का सामना करना पड़ता है।
- कम जवाबदेही: नीति निर्माण और क्रियान्वयन का विभाजन निर्णयकर्ताओं और सेवा कार्यान्वयनकर्ताओं के बीच एक लगाव उत्पन्न करता है, जिससे खराब प्रदर्शन के लिए जवाबदेही कम हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: जब सड़क निर्माण परियोजनाओं में समस्याएँ आती हैं, तो मंत्रालयों और कार्यान्वयनकर्ताओं के बीच निगरानी के लिए स्पष्ट जिम्मेदारी के अभाव के परिणामस्वरूप दोषारोपण और अक्षमताएँ उत्पन्न होती हैं।
- बाह्य सलाहकारों पर अत्यधिक निर्भरता: सरकारी प्रशासन में कौशल की कमी के कारण महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए निजी सलाहकार फर्मों पर निर्भरता बढ़ जाती है, जिससे सार्वजनिक व्यय बढ़ जाता है।
- उदाहरण के लिए: भारत सरकार ने उन कार्यों के लिए परामर्श शुल्क पर 500 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए, जिन्हें बेहतर प्रशिक्षित अधिकारियों के साथ आंतरिक रूप से प्रबंधित किया जा सकता था।
- प्रशासनिक जड़ता: जटिल प्रशासनिक प्रक्रियाएं जोखिम लेने और विवेकाधीन निर्णय लेने के प्रति अरुचि उत्पन्न करती हैं , जिसके परिणामस्वरूप नवाचार अवरुद्ध होता है और अनुकूलन धीमा होता है।
- भ्रष्टाचार का बढ़ता जोखिम: सार्वजनिक क्षेत्र के उच्च वेतन और नौकरी की सुरक्षा के साथ प्रोत्साहनों का गलत संरेखण , ऐसे लोगों को आकर्षित करता है जो सामाजिक सेवा के बजाय वित्तीय लाभ से प्रेरित होते हैं।
आगे की राह
- सिविल सेवकों की भर्ती और प्रशिक्षण को बढ़ावा देना: लोगों की कमी को दूर करने के लिए विभिन्न स्तरों पर योग्य पेशेवरों की भर्ती बढ़ाना चाहिए व कुशल कार्यबल सुनिश्चित करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: लैटरल एंट्री कार्यक्रम और मिशन कर्मयोगी जैसी विशिष्ट प्रशिक्षण पहल सिविल सेवकों के कौशल और दक्षता में सुधार कर सकती है।
- निर्णयन प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण: कार्यान्वयन से संबंधित निर्णय लेने के लिए अग्रिम पंक्ति के कर्मियों को अधिकार सौंपकर उन्हें सशक्त बनाना, जवाबदेही में सुधार करना और प्रक्रियाओं को गति देना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की तरह अग्रिम पंक्ति के कर्मियों को नीतियों के क्रियान्वयन में अधिक नियंत्रण देने से परियोजना में होने वाली देरी कम होती है और दक्षता में सुधार होता है।
- विनियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाना: लाइसेंस और मंज़ूरी के बोझ को कम करने के लिए नौकरशाही प्रक्रियाओं को सरल बनाना चाहिये जिससे नागरिकों और व्यवसायों को सार्वजनिक सेवाओं का लाभ प्राप्त हो सके।
- उदाहरण के लिए: परमिट और मंज़ूरी के लिए वन-स्टॉप समाधान प्रदान करने वाले ऑनलाइन प्लेटफार्म जटिलता को कम कर सकते हैं और प्रक्रियाओं को गति दे सकते हैं।
- सार्वजनिक क्षेत्र के पारिश्रमिक सुधार को बढ़ावा देना: मध्यम वेतन सुधार लागू करना चाहिए जो सार्वजनिक क्षेत्र के वेतन को निजी क्षेत्र के मुआवजे के साथ संरेखित करें, भ्रष्टाचार को हतोत्साहित करें और सामाजिक सेवा से प्रेरित व्यक्तियों को आकर्षित करें।
- उदाहरण के लिए: प्रदर्शन से जुड़े प्रोत्साहनों को लागू करना और प्रतिस्पर्धी परंतु उचित वेतन सुनिश्चित करना सामाजिक विचारधारा वाले पेशेवरों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के आकर्षण को बढ़ा सकता है।
- निरीक्षण और जवाबदेही तंत्र को मजबूत करना: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसी एजेंसियों में सुधार लागू करने चाहिए ताकि ऑडिट और जांच प्रक्रिया को अधिक प्रासंगिक बनाया जा सके और केवल अनुपालन के बजाय नीति उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
- उदाहरण के लिए: निरीक्षण एजेंसियों को नीतिगत निर्णयों की जटिलताओं के प्रति संवेदनशील बनाने से यह सुनिश्चित होगा कि वे संदर्भ को बेहतर तरीके से समझें, जिससे मुकदमेबाजी और परियोजना निष्पादन में देरी कम होगी।
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भारत में ‘संसाधन की कमी और जटिल प्रक्रियाओं’ (People thin but process thick ) की बहुलता होने के कारण शासन में अधिक जवाबदेही और दक्षता की आवश्यकता है। मानव संसाधनों को सशक्त करना, निर्णय लेने को विकेंद्रीकृत करना और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना सार्वजनिक सेवा वितरण को सुव्यवस्थित कर सकता है , जिससे बेहतर पहुँच और जवाबदेही सुनिश्चित हो सकती है । भविष्य-केंद्रित दृष्टिकोण को क्षमता निर्माण और पारदर्शिता पर जोर देना चाहिए, जिससे अधिक जन-केंद्रित और प्रभावी शासन मॉडल को बढ़ावा मिले।
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