प्रश्न की मुख्य माँग
- समझाइए कि आर्थिक वियोजन किस प्रकार सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि के संबंध में उत्सर्जन वृद्धि को कम करता है।
- वर्ष 1990 के बाद से भारत के कृषि क्षेत्र द्वारा वियुग्मन प्राप्त करने में की गई प्रगति का विश्लेषण कीजिए।
- वर्ष 1990 के बाद से भारत के विनिर्माण क्षेत्र द्वारा डिकॉप्लिंग प्राप्त करने में की गई प्रगति का विश्लेषण कीजिए।
- भारत के कृषि और विनिर्माण क्षेत्रों में उत्सर्जन को और कम करने के लिए अपनाए जा सकने वाले उपायों का सुझाव दीजिए।
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उत्तर
आर्थिक वियोजन का तात्पर्य आर्थिक विकास और पर्यावरणीय ह्वास, विशेष रूप से GHG उत्सर्जन के बीच संबंध को कम करने की प्रक्रिया से है। यह भारत जैसे देशों को जलवायु परिवर्तन की समस्या को बढ़ाए बिना आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाता है, जिससे सतत विकास होता है। यह दृष्टिकोण पर्यावरणीय निम्नीकरण से संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों को दूर करने और लोगों के लिए एक स्वच्छ, स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
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आर्थिक वियोजन (Decoupling) किस प्रकार GDP वृद्धि के संबंध में उत्सर्जन वृद्धि को कम करता है।
- नियंत्रित उत्सर्जन के साथ आर्थिक विकास: सापेक्ष वियोजन तब होता है, जब आर्थिक विकास उत्सर्जन वृद्धि से आगे निकल जाता है, जिससे सकल घरेलू उत्पाद की प्रति इकाई उत्सर्जन की तीव्रता कम हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2005 से 2019 तक, भारत की GDP 7% CAGR से बढ़ी, जबकि उत्सर्जन 4% CAGR से बढ़ा, जो आर्थिक विकास की तुलना में धीमी उत्सर्जन वृद्धि दर्शाता है।
- तकनीकी नवाचारों से दक्षता में वृद्धि: ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा में नवाचारों से उत्सर्जन में कमी आती है और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण के लिए: भारत का नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र तेजी से विकास कर रहा है, सौर ऊर्जा भारत के ऊर्जा मिश्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो रही है।
- उत्पादन में क्षेत्र-विशिष्ट बदलाव: जैसे-जैसे उद्योग अधिक कुशल होंगें और स्वच्छ तकनीकें अपनाई जायेंगी, उत्सर्जन को क्षेत्रीय विकास से अलग करने में मदद मिल सकती है।
- उदाहरण के लिए: भारत में विनिर्माण प्रक्रिया अधिक ऊर्जा-कुशल तकनीकों की ओर स्थानांतरित हो गई है, जिससे उत्पादन प्रक्रियाओं की कार्बन तीव्रता कम हो गई है।
- शहरीकरण और स्वच्छ बुनियादी ढाँचा: शहरीकरण, बेहतर बुनियादी ढाँचे और स्मार्ट शहरों के साथ, उत्सर्जन वृद्धि के GDP वृद्धि से विनियोजित होने की उम्मीद है क्योंकि शहर अधिक संधारणीय प्रथाओं को अपना रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: आर्थिक विकास में सहायता करते हुए दिल्ली, कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक बसों के साथ अपने सार्वजनिक परिवहन में सुधार कर रही है।
- नीतिगत बदलाव और सतत विकास मॉडल: स्वच्छ ऊर्जा अपनाने और हरित विकास पर ध्यान केंद्रित करने वाली भारत की नीतियाँ, अर्थव्यवस्था के विकास के साथ-साथ उत्सर्जन को कम करने में भी मदद करती हैं।
- उदाहरण के लिए: FAME II योजना इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने को बढ़ावा देती है, जो उत्सर्जन बढ़ाए बिना विकास का समर्थन करती है।
भारत के कृषि क्षेत्र द्वारा आर्थिक विनियोजन को प्राप्त करने में की गई प्रगति
- संधारणीय कृषि पद्धतियाँ: जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने से उत्पादकता में सुधार के साथ-साथ उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती है।
- उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों को बढ़ावा देती है, जो जल के उपयोग को कम करने और पैदावार में सुधार करने में मदद करती है, जिससे कृषि क्षेत्र में उत्सर्जन कम होता है।
- जैविक खेती की ओर परिवर्तन: भारत का कृषि क्षेत्र धीरे-धीरे जैविक खेती को अपना रहा है, जिससे रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भरता कम हो रही है, जिससे उत्सर्जन कम हो रहा है।
- उदाहरण के लिए: सिक्किम, भारत का पहला पूर्ण जैविक कृषि राज्य बन गया, जो कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने का एक सफल मॉडल है।
- कृषि वानिकी को बढ़ावा देना: कृषि प्रणालियों में कृषि वानिकी का एकीकरण, कार्बन पृथक्करण में योगदान देता है जिससे कृषि विकास से उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती है।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति के तहत कृषि वानिकी पहल, कृषि के कार्बन फुटप्रिंट को कम करते हुए संधारणीय कृषि को बढ़ावा देती है।
- बेहतर पशुधन प्रबंधन: बेहतर पशुधन प्रबंधन पद्धतियों को अपनाने से मीथेन उत्सर्जन में कमी आती है और पशुधन उत्पादकता बढ़ती है।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) कम उत्सर्जन वाली डेयरी फॉर्मिंग को बढ़ावा देता है, जिससे डेयरी क्षेत्र में उत्पादकता और संधारणीयता बढ़ती है।
- संसाधनों का कुशल उपयोग: परिशुद्ध कृषि तकनीकें उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे इनपुट के उपयोग को अनुकूलित करके उत्सर्जन को कम करती हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत सरकार का राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA), परिशुद्ध कृषि को बढ़ावा देता है और बेहतर संसाधन प्रबंधन के माध्यम से कृषि दक्षता में सुधार करता है व उत्सर्जन को कम करता है।
भारत के विनिर्माण क्षेत्र द्वारा आर्थिक विनियोजन हासिल करने में की गई प्रगति
- ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों को अपनाना: भारत का विनिर्माण क्षेत्र ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों को अपना रहा है, जो उत्पादन की प्रति इकाई उत्सर्जन को कम करती हैं।
- उदाहरण के लिए: ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) भारतीय उद्योगों में ऊर्जा-कुशल मानकों को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है, जिससे विनिर्माण क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन कम हो रहा है।
- हरित विनिर्माण पद्धतियाँ: हरित विनिर्माण प्रौद्योगिकियों को अपनाने से औद्योगिक उत्सर्जन में कमी आती है, जबकि उत्पादन में वृद्धि होती है।
- उदाहरण के लिए: टाटा स्टील ने अपने संयंत्रों में कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना शुरू किया है , जिससे इस्पात विनिर्माण प्रक्रिया से होने वाले उत्सर्जन में कमी आई है।
- नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना: कारखानों में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता ,विनिर्माण प्रक्रियाओं की कार्बन तीव्रता को कम करती है।
- उदाहरण के लिए: डाबर इंडिया अपनी विनिर्माण इकाइयों के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग कर रहा है, जिससे उत्पादन वृद्धि को बनाए रखते हुए इसके कार्बन फुटप्रिंट को कम किया जा रहा है।
- अपशिष्ट न्यूनीकरण और पुनर्चक्रण: अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण प्रक्रियाओं में सुधार करके, विनिर्माण अपशिष्ट से उत्सर्जन कम किया जाता है।
- उदाहरण के लिए: JSW समूह शून्य-अपशिष्ट विनिर्माण और पुनर्चक्रण प्रक्रियाओं को बढ़ावा दे रहा है, जो उत्पादन वृद्धि से उत्सर्जन को कम करने में मदद करता है।
- बेहतर आपूर्ति श्रृंखला रसद: आपूर्ति श्रृंखला रसद को बढ़ाना और परिवहन उत्सर्जन को कम करना, विनिर्माण क्षेत्र में उत्सर्जन को कम करने का एक प्रभावी तरीका है।
- उदाहरण के लिए: मारुति सुजुकी ने परिवहन उत्सर्जन को कम करने के लिए अपने रसद नेटवर्क को अनुकूलित किया है, जिससे इसके विनिर्माण कार्यों की कार्बन तीव्रता कम हो गई है।
भारत के कृषि और विनिर्माण क्षेत्र में विनियोजन के लिए नवीन उपाय
विनिर्माण क्षेत्र
- चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: विनिर्माण में चक्रीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने से अपशिष्ट और उत्सर्जन में कमी आ सकती है, साथ ही संसाधन दक्षता में भी वृद्धि हो सकती है।
- निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों में निवेश: निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए उद्योगों की सहायता करने से विनिर्माण में उत्सर्जन कम होगा।
- उदाहरण के लिए: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, निम्न-कार्बन औद्योगिक प्रक्रियाओं में परिवर्तन को बढ़ावा देती है।
- उन्नत कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र : विनिर्माण उद्योगों के लिए कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र शुरू करने से उन्हें स्वच्छ तकनीक अपनाने हेतु प्रोत्साहन मिलेगा।
- उदाहरण के लिए: यूरोपीय संघ की उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (EU ETS) उद्योगों को संधारणीय प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु कार्बन मूल्य निर्धारण का उपयोग करती है, जिससे स्वच्छ उत्पादन प्रौद्योगिकियों की ओर संक्रमण को बढ़ावा मिलता है।
- स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना: विनिर्माण में AI, IoT और बिग डेटा जैसी इंडस्ट्री 4.0 प्रौद्योगिकियों के उपयोग का विस्तार करने से दक्षता में सुधार होगा और उत्सर्जन में कमी आएगी।
- उदाहरण के लिए: बॉश इंडिया दक्षता में सुधार और उत्सर्जन को कम करने के लिए AI-संचालित स्मार्ट विनिर्माण का उपयोग करता है ।
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कृषि क्षेत्र
- जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देना: जलवायु-स्मार्ट कृषि पद्धतियाँ जो उत्सर्जन को कम करती हैं और प्रत्यास्थता बढ़ाती हैं, को प्रोत्साहित करने से कृषि विकास से होने वाले उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी।
- जैविक और संधारणीय कृषि को प्रोत्साहित करना: जैविक कृषि की पहल का विस्तार करने से सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों से होने वाले उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सकती है।
- निम्न उत्सर्जन वाली कृषि मशीनरी का विकास: निम्न उत्सर्जन वाली कृषि मशीनरी के उपयोग को बढ़ावा देने से मशीनीकृत कृषि से जुड़े उत्सर्जन में कमी आएगी।
- उदाहरण के लिए: फिनलैंड, इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर और निम्न उत्सर्जन वाले हार्वेस्टर को बढ़ावा देता है , जो कृषि मशीनीकरण के कार्बन फुटप्रिंट को काफी हद तक कम करता है।
- कृषि वानिकी पद्धतियों को सुदृढ़ बनाना: कृषि वानिकी पद्धतियों का विस्तार करने से कार्बन को संग्रहित करने में मदद मिलेगी तथा कृषि उत्पादकता में भी सुधार होगा।
सापेक्ष वियोजन के संबंध में भारत द्वारा की गई प्रगति उल्लेखनीय है, लेकिन पूर्ण वियोजन प्राप्त करने के लिए और अधिक नवाचारों की आवश्यकता है। कृषि और विनिर्माण में हरित प्रौद्योगिकी, जलवायु-स्मार्ट कृषि और ऊर्जा दक्षता उपायों को अपनाना, सतत विकास के लिए अति महत्त्वपूर्ण है। जर्मनी की इंडस्ट्री 4.0 और स्वीडन की निम्न कार्बन निवेश जैसी नीतियाँ भारत को एक सतत भविष्य के निर्माण के लिए वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखित करने में मदद कर सकती हैं।
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