Q. जाँच कीजिए कि भारत के मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र को वैश्विक केंद्र बनने के लिए कानून से परे सुधारों की आवश्यकता कैसे है। मध्यस्थ चयन में चुनौतियों पर चर्चा कीजिए और भारत में विश्व स्तरीय मध्यस्थता मानव पूंजी विकसित करने के लिए एक रोडमैप सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • यह बताइए कि किस प्रकार से भारत के मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र को वैश्विक केंद्र बनने के लिए कानून से परे सुधारों की आवश्यकता है।
  • भारत में मध्यस्थ चयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • भारत में विश्व स्तरीय मध्यस्थता मानव पूँजी विकसित करने के रोडमैप पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारत ने वर्ष 2015 और 2019 के मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियमों और भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (IIAC) जैसी पहलों के माध्यम से विधायी प्रगति की है। हालाँकि, यह अभी भी सिंगापुर और लंदन जैसे वैश्विक केंद्रों से पीछे है। इस दिशा में सच्ची प्रगति के लिए वैधानिक परिवर्तनों से परे मध्यस्थ की गुणवत्ता, प्रशिक्षण और संस्थागत संस्कृति में व्यवस्थित सुधार की आवश्यकता होती है।

भारत के मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र को वैश्विक केंद्र बनने के लिए कानून से परे सुधारों की आवश्यकता है

  • कमजोर संस्थागत बुनियादी ढाँचा: सिंगापुर या लंदन जैसे केंद्रों की तुलना में भारतीय मध्यस्थता संस्थाओं में वैश्विक विश्वसनीयता, पेशेवर प्रबंधन और प्रवर्तनीय मानकों का अभाव है।
  • स्थायी न्यायिक मध्यक्षेप और देरी: मध्यस्थों की नियुक्ति, अंतरिम राहत और पंचाट प्रवर्तन में निरंतर होने‌ वाला अदालती मध्यक्षेप, स्वायत्तता और दक्षता को ‌प्रभावित  करता है। 
    • उदाहरण के लिए: मध्यस्थता संशोधन अधिनियम (2019) के बावजूद, अदालतें मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत अत्यधिक चुनौतियों को स्वीकार करना जारी रखती हैं।
  •  मध्यस्थता पंचाटों का असंगत प्रवर्तन: भारत में मध्यस्थता पंचाटों (Arbitral Awards) के प्रवर्तन में दीर्घकालिक विलंब, विदेशी पक्षों को भारत को मध्यस्थता स्थल (Seat of Arbitration) के रूप में चुनने से हतोत्साहित करते हैं।
    • उदाहरण: देवास मल्टीमीडिया बनाम एंट्रिक्स वाद (2022) ने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पंचाटों (International Arbitral Awards) का सम्मान करने की भारत की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े किए।
  • विशेषज्ञता और विविधता का अभाव: महिलाएँ, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और उद्योग विशेषज्ञ मध्यस्थों के बीच कम प्रतिनिधित्व रखते हैं, जिससे क्षेत्र-विशिष्ट विवादों में विश्वास प्रभावित होता है। 
    • उदाहरण के लिए: वैश्विक स्तर पर, निवेश विवादों के निपटान के लिए अंतरराष्ट्रीय केंद्र (ICSID) जैसी संस्थाओं ने विविधता लक्ष्य पेश किए हैं, जो भारत में प्रचलन में नहीं है।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण और प्रमाणन पर अपर्याप्त ध्यान: मध्यस्थों के लिए कोई अनिवार्य व्यावसायिक मान्यता नहीं है, जिसके कारण मध्यस्थता कार्यवाही में असंगत गुणवत्ता होती है।
  • संस्थागत मध्यस्थता संस्कृति के लिए कमजोर पारिस्थितिकी तंत्र: भारतीय संस्थाओं में सीमित विश्वास के कारण पक्षकार अभी भी तदर्थ मध्यस्थता को प्राथमिकता देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप खंडित प्रथाएँ और अकुशलताएँ उत्पन्न होती हैं।

भारत में मध्यस्थ चयन में चुनौतियाँ

  • अपारदर्शी और अपारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया: मध्यस्थों का चयन अक्सर योग्यता के बजाय व्यक्तिगत संबंधों या पार्टी की प्राथमिकताओं के आधार पर किया जाता है, जिससे निष्पक्षता और तटस्थता प्रभावित होती है।
  • योग्य मध्यस्थों की सीमित संख्या: इस क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले पेशेवर रूप से प्रशिक्षित‌ और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित मध्यस्थों की कमी है।
  • विविधता का अभाव (लिंग, क्षेत्रीय, पीढ़ीगत): मध्यस्थता पैनल में महिला मध्यस्थों और युवा पेशेवरों का प्रतिनिधित्व काफी कम है। 
    • उदाहरण के लिए: पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने इस बात पर दुख जताया है कि विभिन्न अंतरराष्ट्रीय पैनलों में सभी भारतीय मध्यस्थों में से 10% से भी कम महिलाएँ हैं, उन्होंने इस स्थिति को ‘विविधता विरोधाभास’ करार दिया है।
  • सेवानिवृत न्यायाधीशों और नौकरशाहों का प्रभुत्व: मध्यस्थ समुदाय में सेवानिवृत न्यायाधीशों और सिविल सेवकों का प्रभुत्व है, जिनके पास अक्सर वाणिज्यिक या तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव होता है।
  • उच्च लागत और सामर्थ्य संबंधी मुद्दे: वरिष्ठ मध्यस्थ, विशेष रूप से सेवानिवृत न्यायाधीश, उच्च शुल्क लेते हैं, जिससे SMEs और लोग मध्यस्थता का विकल्प चुनने से हतोत्साहित होते हैं।

भारत में विश्व स्तरीय मध्यस्थता मानव पूँजी विकसित करने का रोडमैप

  • मध्यस्थता प्रशिक्षण के लिए एक राष्ट्रीय अकादमी की स्थापना: CIArb और ICC जैसी वैश्विक संस्थाओं के साथ साझेदारी में प्रमाणन, कौशल विकास और विशेष डोमेन प्रशिक्षण प्रदान करने वाली एक समर्पित मध्यस्थता अकादमी की स्थापना की जानी चाहिए।
  • विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता को बढ़ावा देना: निर्माण कार्य, ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे, प्रौद्योगिकी और समुद्री विवादों जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में विशेषज्ञता को प्रोत्साहित करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: MCIA (मुंबई सेंटर फॉर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन) अपनी वर्ष 2024-25 सुधार योजनाओं में क्षेत्र-केंद्रित मध्यस्थ पैनल विकसित कर रहा है।
  • लॉ स्कूल पाठ्यक्रम और प्रारंभिक कॅरियर अनुभव को मजबूत करना: कानूनी शिक्षा में उन्नत मध्यस्थता पाठ्यक्रम, नैदानिक कार्यक्रम और मध्यस्थता संस्थानों के साथ इंटर्नशिप को शामिल करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: NLU दिल्ली का मध्यस्थता और अनुसंधान केंद्र (2023), मध्यस्थता कानून में विशेष L.L.M और डिप्लोमा कार्यक्रम प्रदान करता है।
  • वैश्विक इंटर्नशिप और संस्थागत सहयोग को प्रोत्साहित करना: युवा पेशेवरों को SIAC, HKIAC, LCIA और ICC में इंटर्नशिप करने के लिए सरकार द्वारा प्रायोजित फेलोशिप प्रदान करना चाहिए ताकि उन्हें अंतरराष्ट्रीय अनुभव प्राप्त हो सके। 
    • उदाहरण के लिए: सिंगापुर-भारत व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA) प्रशिक्षण आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है, जिसे मजबूत किया जा सकता है।
  • मध्यस्थ पैनल में विविधता और समावेशन को बढ़ाना: महिलाओं, युवा पेशेवरों और गैर-कानूनी पृष्ठभूमि जैसे इंजीनियरिंग, वित्त और प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञों के समावेशन को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिए।

ग्लोबल साउथ का मध्यस्थता केंद्र बनने के लिए कानून से आगे बढ़कर मध्यस्थों का एक विश्वसनीय, कुशल और विविधतापूर्ण समूह बनाने की दिशा में प्रयास करना  होगा। घरेलू नवाचार के साथ वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं का संयोजन भारत के विवाद समाधान पारिस्थितिकी तंत्र को वैश्विक बेंचमार्क में बदल सकता है।

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