Q. विश्लेषण कीजिए कि भारत के समतावादी समाज के संवैधानिक दृष्टिकोण को बढ़ती आर्थिक असमानता और सामाजिक विषमताओं के साथ इसके अंतर्संबंध से किस तरह चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। समकालीन भारत में उदारवादी सिद्धांतों को सामाजिक न्याय के साथ संतुलित करने में राज्य के हस्तक्षेप की भूमिका पर चर्चा कीजिए।(15 अंक , 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • समतावादी समाज के लिए भारत के संवैधानिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  • आर्थिक असमानताओं और सामाजिक विषमताओं के अंतर्संबंध के कारण आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
  • उदारवादी सिद्धांतों को सामाजिक न्याय के साथ संतुलित करने में राज्य के मध्यक्षेप की भूमिका पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारत के संविधान में समानता, न्याय और सम्मान पर आधारित समाज बनाने की परिकल्पना की गई है। हालाँकि, बढ़ती आय अंतर और सामाजिक असमानता जैसी चुनौतियाँ इस दृष्टिकोण में बाधा डालती रहती हैं। जैसे-जैसे भारत सामाजिक और आर्थिक रूप से विकसित होगा, राज्य को व्यक्तिगत अधिकारों को सामाजिक कल्याण के साथ संतुलित करने के लिए सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संविधान आधुनिक चुनौतियों का समाधान करने में प्रासंगिक बना रहे।

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समतावादी समाज के लिए भारत का संवैधानिक दृष्टिकोण

  • कानूनी और सामाजिक समानता: संविधान, समानता को एक मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी नागरिक के साथ उसकी जाति, लिंग या धर्म के आधार पर गलत व्यवहार न किया जाए। 
    • उदाहरण के लिए: अनुच्छेद 14 और 15 समान अधिकार प्रदान करते हैं तथा भेदभाव का निषेध करते हैं, साथ ही ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों के लिए सकारात्मक कार्रवाई को सक्षम बनाते हैं।
  • आर्थिक न्याय: राज्य को आय के अंतर को कम करने और संसाधनों तक उचित पहुँच सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है, ताकि धन कुछ ही हाथों में केंद्रित न रहे। 
    • उदाहरण के लिए: अनुच्छेद 39(b), आम लोगों के कल्याण के लिए संसाधनों के न्यायसंगत वितरण पर जोर देता है।
  • हाशिए पर स्थित समुदायों का समावेश: विशेष प्रावधान वंचित समुदायों को शिक्षा, नौकरियों और शासन में भाग लेने में मदद करते हैं, जिससे सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा मिलता है। 
    • उदाहरण के लिए: अनुच्छेद 15(4) और 16(4) अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए सार्वजनिक संस्थानों में आरक्षण प्रदान करते हैं।
  • सामाजिक प्रथाओं का उन्मूलन: कानूनों और नीतियों का उद्देश्य अस्पृश्यता और बंधुआ मजदूरी जैसी प्रथाओं को खत्म करना है जो शोषण को बढ़ावा देती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है तथा किसी भी रूप में इसके अभ्यास को अपराध घोषित करता है।
  • बंधुत्व के माध्यम से एकता: यह सुनिश्चित करते हुए कि विविधता बाधा के बजाय शक्ति बने, संविधान नागरिकों के बीच एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए बंधुत्व को बढ़ावा देता है। 
    • उदाहरण के लिए: सहकारी संघवाद का सिद्धांत स्थानीय पहचानों का सम्मान करते हुए क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने में मदद करता है।

आर्थिक असमानताओं और सामाजिक विषमताओं के अंतर्संबंध के कारण आने वाली चुनौतियाँ

  • बढ़ती संपत्ति असमानताएँ: आर्थिक विकास के लाभ समान रूप से वितरित नहीं होते हैं, जिससे वंचित समूहों के पास सीमित अवसर रह जाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: ऑक्सफैम इंडिया रिपोर्ट (2023) से पता चला है कि शीर्ष 1% भारतीयों के पास 40.5% संपत्ति है, जबकि निचले 50% भारतीयों  के पास सिर्फ़ 3% संपत्ति है।
  • जाति-आधारित भेदभाव: सामाजिक पदानुक्रम, अक्सर दलितों और जनजातियों को समान अवसरों से वंचित करते हैं, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और नौकरियों तक उनकी पहुँच प्रभावित होती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय दलित अध्ययन संस्थान द्वारा वर्ष 2013 में किये गए सर्वेक्षण में पाया गया कि जातिगत पूर्वाग्रह के कारण 41% अनुसूचित जाति के कृषि श्रमिकों को, विशेषकर अनाज कटाई के काम में, काम नहीं दिया गया ।
  • लैंगिक असमानताएँ: महिलाओं को शिक्षा, रोजगार और आय के संबंध में गंभीर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने की उनकी क्षमता को सीमित करता है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2023-24 में महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) बढ़कर 41.7% हो गई, फिर भी श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 40.3% ही है।
  • ग्रामीण-शहरी विभाजन: ग्रामीण क्षेत्र बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के मामले में पिछड़े हुए हैं, जिससे शहरी केंद्रों की तुलना में असमान विकास के अवसर उत्पन्न होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: ग्रामीण भारत में, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अक्सर डॉक्टरों और उपकरणों की कमी होती है, जबकि शहरी क्षेत्रों में लोगों को मल्टी-स्पेशलिटी अस्पतालों का लाभ मिलता है, जो स्वास्थ्य सेवा तक असमान पहुँच को उजागर करता है।
  • संदिग्ध कार्यदशा: भारत के कार्यबल का अधिकांश हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्न है, जिसके परिणामस्वरूप कई लोग बिना नौकरी की सुरक्षा या सामाजिक सुरक्षा के रह जाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2020 के कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, नौकरी छूटने और रोजगार सुरक्षा के अभाव में दिल्ली के हजारो प्रवासी मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार की ओर पैदल चले गए।

उदारवादी सिद्धांतों और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन बनाने में राज्य के हस्तक्षेप की भूमिका

  • पुनर्वितरण नीतियाँ: राज्य, आय के अंतर को कम करने के लिए कराधान और कल्याणकारी कार्यक्रमों का उपयोग करता है, जिससे भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसी बुनियादी आवश्यकतायें पूरी होती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: PM-किसान योजना ग्रामीण आय असमानताओं को दूर करते हुए 12 करोड़ से अधिक किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रम: शिक्षा और रोजगार में कोटा यह सुनिश्चित करता है, कि वंचित  समुदायों को अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए समान अवसर मिलें। 
    • उदाहरण के लिए: 103 वें संविधान संशोधन ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10% कोटा का प्रावधान किया।
  • स्थानीय शासन को मजबूत करना: विकेंद्रीकृत प्रणालियाँ स्थानीय समुदायों को उनकी विशिष्ट चुनौतियों के अनुरूप समाधान तैयार करने में सक्षम बनाती हैं, जिससे जमीनी स्तर पर समानता को बढ़ावा मिलता है। 
    • उदाहरण के लिए: 73वें और 74 वें संशोधन, वंचित समुदायों और महिलाओं को स्थानीय निर्णयन प्रक्रिया में भाग लेने में सक्षम बनाते हैं।
  • सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा: स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आवास के लिए कार्यक्रमों का विस्तार करने से यह सुनिश्चित होगा कि समाज के सबसे गरीब वर्गों को भी आवश्यक सेवाओं तक पहुँच प्राप्त हो पायेगी 
    • उदाहरण के लिए: आयुष्मान भारत योजना ने 50 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को मुफ्त स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया है, जिससे स्वास्थ्य सेवा असमानताएँ कम हुई हैं।
  • डिजिटल सशक्तिकरण: डिजिटल विभाजन को कम करने से ग्रामीण और वंचित समुदायों को आधुनिक संसाधनों तक पहुँच मिलती है, जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। 
    • उदाहरण के लिए: डिजिटल इंडिया पहल ने 6 लाख से अधिक गांवों को ब्रॉडबैंड इंटरनेट से जोड़ा है ।

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भारत के समतावादी समाज के संवैधानिक दृष्टिकोण को बढ़ती आय के अंतर और स्थाई रूप से व्याप्त सामाजिक असमानताओं के कारण गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि, सकारात्मक कार्रवाई, पुनर्वितरण कराधान और जमीनी स्तर पर सशक्तिकरण जैसी नीतियों के माध्यम से, राज्य इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान कर सकता है। उदार सिद्धांतों को समावेशी नीतियों के साथ संतुलित करने से यह सुनिश्चित होगा कि भारत एक ऐसे राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ेगा जहाँ प्रत्येक नागरिक को समान अवसर मिलेगा, जिससे संविधान में निहित, सभी के लिए न्याय और समानता की परिकल्पना साकार हो पायेगी। 

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